[ स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पे ]
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अस्त होते सूर्य की सुनहरी लालिमा ,शांत नीरव संध्या ,प्रकृति में चहुं -ओर शांति और स्थिरता ,सरिता भी मंथर गति से बह रही है , उसके ऊपर सूर्य का प्रकाश मानो दुल्हन ने लाल रंग का लहंगा पहनलिया हो , उठती -गिरती चंचल लहरों पे झलमल करती भुवन -भास्कर की सुनहरी किरणे, अठखेली करती सरिता को मानो सोने की करधनी पहना दी हो ...अदभुत विस्मयकारी समय और ऊपर से .लजीला बाल-चन्द्र वृक्षों की ओट से झांकता हुआ ,,सायं जब भी पुल के ऊपर से गाड़ी गुजरती है तो ये एक ऐसा दृश्य और समय होता है जब हर वस्तु का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है .......नदी का लजीली दुल्हन की तरह बलखाके बहना ,चाँद का लजाना ,झलमलाते तारों का आकाश में उदय होना .................पर इस दृश्य को देखने और अनुभूत करने को आपके पास होना चाहिए एक स्वतंत्र ,पूर्वाग्रहों से मुक्त मन , चिंताओं ,संघर्षों ,और अनुमानों से बोझिल मन ये सब नहीं देख सकता ,..............सम्भवत:यही स्वतंत्रता का मूल मन्त्र है .................पूर्वाग्रहों से मुक्त मन अपने स्व में रहने वाला .... वो स्व नहीं जो विद्यालय जाता है कार्यालय जाता है ,झगड़ता है ,भयभीत है ,जो पुस्तकों ,समाचार -पत्रों ,या समाज और रुढियों से मिलकर बना है ,वरन जो चेतन है अपने प्रति और संवेदनशील है वातावरण के प्रति ....
अपनी इच्छा से सारे काम करना और अपने अनुसार जीवन जीना ही क्या स्वतंत्रता है .यह तो अधिकांश लोग करते ही हैं ,किसी के आश्रित न होना ही स्वतंत्रता नहीं है ...स्वतंत्रता का अर्थ है मेधावी [intelligent] होना .अपने संस्कार ,सरोकार .धरोहर ,संस्कृति ,रीति -रिवाज ,माता -पिता और गुरुजनों तथा पूर्वजों की सीखों और परम्परा को सहजता ,समग्रता और अपनी मेधा का उपयोग करके जानना .समझना और गहरी अंतरदृष्टि के साथ अपनाना . कहाँ कितना बंधन में बंधना है .कितना मुक्त होना है ,बिना किसी पूर्वाग्रह ,समाज के भय ,या बदनामी के डर से अपने स्व को पोषित करना .
हम जैसे हैं, उसे पहचाने, और वैसे ही रहें ....कुछ और बनने की कोशिश न करें .यदि हम रुक्ष हैं तो ,क्रोधी हैं तो ,संवेदनशील हैं तो वैसे ही रहें ...बस सहजता और समग्रता से अपने को पढने की कोशिश करें ....हमारा व्यवहार किसी बड़े और प्रतिष्ठित व्यक्ति के साथ विनम्र है और अपने अधीन के साथ रुक्ष है ,,,हम मजबूरी में ही संवेदनशीलता दिखाते हैं ,,ये सब जब हम अपने में अनुभव करेंगे तो पायेंगे कि धीरे -धीरे हम अपने व्यक्तित्व के पूर्वाग्रहों से मुक्त होकरएक स्वतंत्र व्यक्तित्व की और बढ़ते जा रहे हैं .......वहां पहुँच रहे हैं जो हमारा लक्ष्य है ........
केवल पद -प्रतिष्ठा ,कुछ पदक ,कुछ सर्टिफिकेट या अर्थोपार्जन ही शिक्षा का उद्देश्य नहीं है ...हम महान बनना चाहते हैं, धन कमाना चाहते हैं ,प्रसिद्धि पाना चाहते हैं ,बुद्धि मान कहलाना चाहते हैं , जहाँ हम ये सब प्राप्त करलेते हैं वहीँ असुरक्षित हो जाते हैं और बन्धनों में जकड जाते हैं , स्वतंत्रता को खो देते है ...जो व्यक्ति इन उपाधियों की व्यर्थता को समझता है , अपनी क्षमता को पहचान के सहजता और समग्रता से जीता है ....जिसके लिए शिक्षा का उद्देश्य जीने की कला सीखना है ....जो कुछ बनना नहीं चाहता ,जो किसी का अनुकरण करने की कोशिश नहीं करता ,वही स्वतंत्र है .....इस स्वतंत्रता में एक विलक्षण सौन्दर्य है ...कुछ न बनने की इच्छा यानी एक नया आयाम विकसित होना ,यानि क्रांति होना ,,,और कुछ नया प्रस्फुटित होना बिना बंधन के! यही स्वतंत्रता है ...
हमें अपने बच्चों को एक ऐसा ही वातावरण देना होगा जहाँ, उनपे कोई आग्रह न हो किसी को भी अनुकरण करने का ,एक ऐसी अंतर दृष्टि देनी होगी जहाँ वे अपने स्व को विकसित कर सकें बिना किसी पूर्वाग्रह के ,ऐसी शिक्षा देनी होगी जो उन्हें इन्सान बनाये न कि पैसा और प्रतिष्ठा कमाने की मशीन ,हमें उन्हें कुछ बनने को नही कहना है ,,वरन ऐसा माहौल देना है जहाँ वो अपनी वास्तविकता को क्षण प्रतिक्षण समझेंऔर बांधने और कुचलने वाले संस्कारों से मुक्त हो मानवता के विकास की ओर बढ़ें , ,अराजकता ,विद्रोह ,जय पराजय से मुक्त सरल,सहज , संवेदनशील ,और समग्र मन के स्वामी हों ................और करें एक नूतन विश्व का निर्माण जो किसी आदर्शवादी , दार्शनिक , की सनक पे नहीं खड़ा होगा वरन,,निश्छल प्रकृति की छाँव तले सुन्दरता का मानदंड होगा ....हम प्रकृति की सुन्दरता का अनुभव करें ,स्वयं भी सुंदर बनें .............सहज सुंदर प्रकृति जैसे एक नियम और बंधन में बंधी हुई भी स्वतंत्र है ..वही हमें भी बनना है और अपने बच्चों को भी वही वातावरण देना है ..तभी हम सही अर्थों में स्वतंत्र कहलायेंगे ....और मानवता की रक्षा कर पायेंगे ............................................
[[वीर शहीदों की शहादत से मिली स्वतंत्रता की आप सब को बहुत बहुत बधाई ]]................आभा .......
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अस्त होते सूर्य की सुनहरी लालिमा ,शांत नीरव संध्या ,प्रकृति में चहुं -ओर शांति और स्थिरता ,सरिता भी मंथर गति से बह रही है , उसके ऊपर सूर्य का प्रकाश मानो दुल्हन ने लाल रंग का लहंगा पहनलिया हो , उठती -गिरती चंचल लहरों पे झलमल करती भुवन -भास्कर की सुनहरी किरणे, अठखेली करती सरिता को मानो सोने की करधनी पहना दी हो ...अदभुत विस्मयकारी समय और ऊपर से .लजीला बाल-चन्द्र वृक्षों की ओट से झांकता हुआ ,,सायं जब भी पुल के ऊपर से गाड़ी गुजरती है तो ये एक ऐसा दृश्य और समय होता है जब हर वस्तु का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है .......नदी का लजीली दुल्हन की तरह बलखाके बहना ,चाँद का लजाना ,झलमलाते तारों का आकाश में उदय होना .................पर इस दृश्य को देखने और अनुभूत करने को आपके पास होना चाहिए एक स्वतंत्र ,पूर्वाग्रहों से मुक्त मन , चिंताओं ,संघर्षों ,और अनुमानों से बोझिल मन ये सब नहीं देख सकता ,..............सम्भवत:यही स्वतंत्रता का मूल मन्त्र है .................पूर्वाग्रहों से मुक्त मन अपने स्व में रहने वाला .... वो स्व नहीं जो विद्यालय जाता है कार्यालय जाता है ,झगड़ता है ,भयभीत है ,जो पुस्तकों ,समाचार -पत्रों ,या समाज और रुढियों से मिलकर बना है ,वरन जो चेतन है अपने प्रति और संवेदनशील है वातावरण के प्रति ....
अपनी इच्छा से सारे काम करना और अपने अनुसार जीवन जीना ही क्या स्वतंत्रता है .यह तो अधिकांश लोग करते ही हैं ,किसी के आश्रित न होना ही स्वतंत्रता नहीं है ...स्वतंत्रता का अर्थ है मेधावी [intelligent] होना .अपने संस्कार ,सरोकार .धरोहर ,संस्कृति ,रीति -रिवाज ,माता -पिता और गुरुजनों तथा पूर्वजों की सीखों और परम्परा को सहजता ,समग्रता और अपनी मेधा का उपयोग करके जानना .समझना और गहरी अंतरदृष्टि के साथ अपनाना . कहाँ कितना बंधन में बंधना है .कितना मुक्त होना है ,बिना किसी पूर्वाग्रह ,समाज के भय ,या बदनामी के डर से अपने स्व को पोषित करना .
हम जैसे हैं, उसे पहचाने, और वैसे ही रहें ....कुछ और बनने की कोशिश न करें .यदि हम रुक्ष हैं तो ,क्रोधी हैं तो ,संवेदनशील हैं तो वैसे ही रहें ...बस सहजता और समग्रता से अपने को पढने की कोशिश करें ....हमारा व्यवहार किसी बड़े और प्रतिष्ठित व्यक्ति के साथ विनम्र है और अपने अधीन के साथ रुक्ष है ,,,हम मजबूरी में ही संवेदनशीलता दिखाते हैं ,,ये सब जब हम अपने में अनुभव करेंगे तो पायेंगे कि धीरे -धीरे हम अपने व्यक्तित्व के पूर्वाग्रहों से मुक्त होकरएक स्वतंत्र व्यक्तित्व की और बढ़ते जा रहे हैं .......वहां पहुँच रहे हैं जो हमारा लक्ष्य है ........
केवल पद -प्रतिष्ठा ,कुछ पदक ,कुछ सर्टिफिकेट या अर्थोपार्जन ही शिक्षा का उद्देश्य नहीं है ...हम महान बनना चाहते हैं, धन कमाना चाहते हैं ,प्रसिद्धि पाना चाहते हैं ,बुद्धि मान कहलाना चाहते हैं , जहाँ हम ये सब प्राप्त करलेते हैं वहीँ असुरक्षित हो जाते हैं और बन्धनों में जकड जाते हैं , स्वतंत्रता को खो देते है ...जो व्यक्ति इन उपाधियों की व्यर्थता को समझता है , अपनी क्षमता को पहचान के सहजता और समग्रता से जीता है ....जिसके लिए शिक्षा का उद्देश्य जीने की कला सीखना है ....जो कुछ बनना नहीं चाहता ,जो किसी का अनुकरण करने की कोशिश नहीं करता ,वही स्वतंत्र है .....इस स्वतंत्रता में एक विलक्षण सौन्दर्य है ...कुछ न बनने की इच्छा यानी एक नया आयाम विकसित होना ,यानि क्रांति होना ,,,और कुछ नया प्रस्फुटित होना बिना बंधन के! यही स्वतंत्रता है ...
हमें अपने बच्चों को एक ऐसा ही वातावरण देना होगा जहाँ, उनपे कोई आग्रह न हो किसी को भी अनुकरण करने का ,एक ऐसी अंतर दृष्टि देनी होगी जहाँ वे अपने स्व को विकसित कर सकें बिना किसी पूर्वाग्रह के ,ऐसी शिक्षा देनी होगी जो उन्हें इन्सान बनाये न कि पैसा और प्रतिष्ठा कमाने की मशीन ,हमें उन्हें कुछ बनने को नही कहना है ,,वरन ऐसा माहौल देना है जहाँ वो अपनी वास्तविकता को क्षण प्रतिक्षण समझेंऔर बांधने और कुचलने वाले संस्कारों से मुक्त हो मानवता के विकास की ओर बढ़ें , ,अराजकता ,विद्रोह ,जय पराजय से मुक्त सरल,सहज , संवेदनशील ,और समग्र मन के स्वामी हों ................और करें एक नूतन विश्व का निर्माण जो किसी आदर्शवादी , दार्शनिक , की सनक पे नहीं खड़ा होगा वरन,,निश्छल प्रकृति की छाँव तले सुन्दरता का मानदंड होगा ....हम प्रकृति की सुन्दरता का अनुभव करें ,स्वयं भी सुंदर बनें .............सहज सुंदर प्रकृति जैसे एक नियम और बंधन में बंधी हुई भी स्वतंत्र है ..वही हमें भी बनना है और अपने बच्चों को भी वही वातावरण देना है ..तभी हम सही अर्थों में स्वतंत्र कहलायेंगे ....और मानवता की रक्षा कर पायेंगे ............................................
[[वीर शहीदों की शहादत से मिली स्वतंत्रता की आप सब को बहुत बहुत बधाई ]]................आभा .......
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