श्रद्धांजली
*********
उर में भावों की उछल-कूद
दुःख तम से आलोकित जीवन
स्मृतियों के चल- चित्र सजा
मानस मेरा वह काव्य रचे
हों ध्वनित जहाँपे बीते क्षण
औ वर्तमान संभाव्य बने |
लूटा सुहाग तूने मेरा
दारुण -प्रचंड उर में भर के ,
तंम सागर में जीवन नैया
पर आदेश लेखनी को दो दो !
संसृति की तपती धरती को
ये राम-कृष्ण संभाव्य बने |
हों ध्वनित जहाँ पे बीते क्षण
औ वर्तमान संभाव्य बने |
दो आशीष मुझे प्रियतम
जब गाऊं गान प्रभाती का
तीनों काल ध्वनित होंवें
औ राम कृष्ण संभाव्य बने |
सागर की उठती- गिरती लहरें
मेरी साँसों का नर्तन होवें
हिमगिरि के मस्तक की किरणों में
मेरे आखर की चमक रहे |
उर के छाले वरदान बनें
गाने को गान प्रभाती का
ये राम -कृष्ण संभाव्य बने |
झर चुके वृक्ष के पीले पत्ते
चर-मर ,चर गान सुनाते हैं
औ राह भविष्य को दिखलाने
मिल मिट्टी में खाद बनाते है
यादों के पावस निर्झर बन
आगत को पोषित करने
सरिता बन बह जाऊं मैं
मिट सागर में मिल जाऊं मैं |
गाने को गान प्रभाती का
दो आशीष मुझे प्रियतम
वर्तमान के कोरे कागज पे
भूतकाल का गान सजे, औ
राम-कृष्ण संभाव्य बनें |
वरदान लेखनी को दे दो
निविड़ निशा से तपते उर को
प्राची की इंगुरी आभा दूँ -
सरिता की अल्हड गति औ
नव सुमनों-विहगों का गान मधुर
भर- भर अंजुरी उलीच चलूं
फिर भी न उऋण मैं हो पाऊं
जो प्रेम दिया तूने मुझको
निर्बल का संबल बन कर मै
प्राणों में अंगारे भर दूँ
जब गाऊं गान प्रभाती का
तो वो भविष्य का गान बने
तीनों काल ध्वनित होवें
औ राम कृष्ण संभाव्य बने || आभा || ...२५ नवम्बर ,अजय की पुण्यतिथि ... जो चले गये उनकी तलाश में तो उनके लोक में ही जाना होगा ज्वाल-रथ पे चढ़ के ,पर ये सौभाग्य और शुभ घड़ी कब मिलेगी ईश्वर किसी को भी नहीं बताता है ,सत्य को आवरण में रखा है उसने | जो कल तक एक जगह थे वो आज कई दिलों में रहते हैं यही सत्य है |
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उर में भावों की उछल-कूद
दुःख तम से आलोकित जीवन
स्मृतियों के चल- चित्र सजा
मानस मेरा वह काव्य रचे
हों ध्वनित जहाँपे बीते क्षण
औ वर्तमान संभाव्य बने |
लूटा सुहाग तूने मेरा
दारुण -प्रचंड उर में भर के ,
तंम सागर में जीवन नैया
पर आदेश लेखनी को दो दो !
संसृति की तपती धरती को
ये राम-कृष्ण संभाव्य बने |
हों ध्वनित जहाँ पे बीते क्षण
औ वर्तमान संभाव्य बने |
दो आशीष मुझे प्रियतम
जब गाऊं गान प्रभाती का
तीनों काल ध्वनित होंवें
औ राम कृष्ण संभाव्य बने |
सागर की उठती- गिरती लहरें
मेरी साँसों का नर्तन होवें
हिमगिरि के मस्तक की किरणों में
मेरे आखर की चमक रहे |
उर के छाले वरदान बनें
गाने को गान प्रभाती का
ये राम -कृष्ण संभाव्य बने |
झर चुके वृक्ष के पीले पत्ते
चर-मर ,चर गान सुनाते हैं
औ राह भविष्य को दिखलाने
मिल मिट्टी में खाद बनाते है
यादों के पावस निर्झर बन
आगत को पोषित करने
सरिता बन बह जाऊं मैं
मिट सागर में मिल जाऊं मैं |
गाने को गान प्रभाती का
दो आशीष मुझे प्रियतम
वर्तमान के कोरे कागज पे
भूतकाल का गान सजे, औ
राम-कृष्ण संभाव्य बनें |
वरदान लेखनी को दे दो
निविड़ निशा से तपते उर को
प्राची की इंगुरी आभा दूँ -
सरिता की अल्हड गति औ
नव सुमनों-विहगों का गान मधुर
भर- भर अंजुरी उलीच चलूं
फिर भी न उऋण मैं हो पाऊं
जो प्रेम दिया तूने मुझको
निर्बल का संबल बन कर मै
प्राणों में अंगारे भर दूँ
जब गाऊं गान प्रभाती का
तो वो भविष्य का गान बने
तीनों काल ध्वनित होवें
औ राम कृष्ण संभाव्य बने || आभा || ...२५ नवम्बर ,अजय की पुण्यतिथि ... जो चले गये उनकी तलाश में तो उनके लोक में ही जाना होगा ज्वाल-रथ पे चढ़ के ,पर ये सौभाग्य और शुभ घड़ी कब मिलेगी ईश्वर किसी को भी नहीं बताता है ,सत्य को आवरण में रखा है उसने | जो कल तक एक जगह थे वो आज कई दिलों में रहते हैं यही सत्य है |