'' नेह ''
*******
*** कि , जब भी चुरुगन के पंख होते हैं मजबूत
मेरी बालकनी से भरता है उड़ान वो, पंख फड़फड़ाते हुए --
मेरे जीवन में चलती है बसंती बयार |
कि ,जब भी पोंछती हूँ किसी बच्चे की आँख से बहते आंसू
वो खिलखिला देता है ताली बजा के --
चंदामामा खेलते हैं मेरे आंगन में |
कि, झरता है नेह आंचल से झर-झर जब भी
मन के जुगनू आंगन में टिमटिमाते हैं |
कि , बांटती हूँ दर्द किसी का जब भी
जीवन में इक सूर्य नया उग आता है |
कि , जब भी खिलाती हूँ खाना किसी भूखे को
अंगना में डोलने लगता है प्रेम का डोला |
कि , किसी बूढ़े रिक्शेवाले के रिक्शे में बैठ के .
चढाई में उतर जाती हूँ जब भी
उसकी आँखों की चमक से, मन में सुकूं होता है |
कि , लाल बत्ती पे भीख मांगते किसी बच्चे को
पैसे की जगह चाकलेट पकडाने पे
वो ले आता है पूरे झुण्ड कोअपने
सभी को एक-एक चाकलेट देने का सुख
उनकी आखों की चटकीली ख़ुशी
मन प्रेम का निर्झर ही बन जाता है ||आभा ||
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*** कि , जब भी चुरुगन के पंख होते हैं मजबूत
मेरी बालकनी से भरता है उड़ान वो, पंख फड़फड़ाते हुए --
मेरे जीवन में चलती है बसंती बयार |
कि ,जब भी पोंछती हूँ किसी बच्चे की आँख से बहते आंसू
वो खिलखिला देता है ताली बजा के --
चंदामामा खेलते हैं मेरे आंगन में |
कि, झरता है नेह आंचल से झर-झर जब भी
मन के जुगनू आंगन में टिमटिमाते हैं |
कि , बांटती हूँ दर्द किसी का जब भी
जीवन में इक सूर्य नया उग आता है |
कि , जब भी खिलाती हूँ खाना किसी भूखे को
अंगना में डोलने लगता है प्रेम का डोला |
कि , किसी बूढ़े रिक्शेवाले के रिक्शे में बैठ के .
चढाई में उतर जाती हूँ जब भी
उसकी आँखों की चमक से, मन में सुकूं होता है |
कि , लाल बत्ती पे भीख मांगते किसी बच्चे को
पैसे की जगह चाकलेट पकडाने पे
वो ले आता है पूरे झुण्ड कोअपने
सभी को एक-एक चाकलेट देने का सुख
उनकी आखों की चटकीली ख़ुशी
मन प्रेम का निर्झर ही बन जाता है ||आभा ||
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