Monday, 3 November 2014

               ''  नेह ''
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*** कि , जब   भी   चुरुगन   के   पंख   होते   हैं  मजबूत
       मेरी बालकनी से भरता है  उड़ान वो, पंख फड़फड़ाते हुए --
                 मेरे जीवन में चलती  है  बसंती बयार |
कि ,जब भी  पोंछती हूँ किसी बच्चे की  आँख से बहते आंसू
वो      खिलखिला      देता       है      ताली      बजा      के --
                 चंदामामा    खेलते हैं मेरे आंगन में  |
कि, झरता है नेह   आंचल से झर-झर जब भी
 मन के जुगनू आंगन में टिमटिमाते हैं |
कि , बांटती  हूँ  दर्द किसी का जब भी
  जीवन में इक  सूर्य नया   उग आता है |
कि , जब भी खिलाती हूँ खाना   किसी भूखे को
 अंगना में  डोलने लगता है प्रेम का डोला |
         कि , किसी बूढ़े रिक्शेवाले के रिक्शे में बैठ के .
          चढाई में उतर जाती हूँ जब भी
         उसकी आँखों की चमक से, मन में सुकूं होता है |
         कि , लाल बत्ती पे   भीख मांगते किसी बच्चे को
         पैसे की जगह चाकलेट पकडाने पे
वो ले आता है  पूरे झुण्ड कोअपने
सभी को  एक-एक  चाकलेट देने का सुख
उनकी आखों की चटकीली ख़ुशी
मन प्रेम का निर्झर  ही बन जाता है ||आभा ||



        

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