Monday, 20 July 2015

[              [सावन --शिवार्चन को समर्पित ऋतु ]
सावन  में  ,सभी को बाबा विश्वनाथजी का आशीष मिले
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**** शिव को समर्पित ऋतु ,शिव ,जो सत्य है ,वही शिव है -वही सुंदर है | ,सत्य नेति -नेति करके जो शेष बचे ,ज्ञान से परे __जो केवल होने का अहसास मात्र है जब! सब कुछ मिल जाए -वही शिव है जिसे ब्रह्मा -विष्णु महेश सब पूजते हैं ,जिसे राम भी अपना आराध्य मानते हैं -___
" लिंग थापी विधिवत करी पूजा |शिव सामान प्रिय मोहि न दूजा "-----
मानस में तुलसी ने प्रत्येक काण्ड का प्रारंभ शिवार्चन से ही किया है _________
_"भवानीशंकरौवन्दे श्रद्धा विश्वास रुपिणौ |
याभ्यां बिना न पश्यन्ति सिद्धा: स्वान्तःस्थमीशवरम " ||_____
शिव ---जिसके स्वरूप को जानने के लिए कृष्ण भी हिमालय पर्वत पे गए तपस्या करने और उमा का आशीष लेके आये ---
कृष्ण कहते है ---
नमोस्तु ते शाश्वत सर्वयोनो 
ब्रह्माधिपं त्वामृषयो वदन्ति 
तपश्च सत्त्वं च रजस्तमश्च 
त्वामेव सत्यं च वदन्ति संत:।। 
शिव जिसको सृष्टि में केवल कृष्ण ही जानते है ---
न ही शक्तो भवं ज्ञातुं मद्विध:परमेश्वरम्।
ऋते नारायणात् पुत्र शंखचक्रगदाधरात्।। 
शिव जो ब्रह्मा विष्णु इंद्र ,भूत पिशाच सबके आराध्य हैं --
ब्रह्मा विष्णु सुरेशानां स्रष्टा च प्रभुरेव च। 
ब्रह्माद्य पिशाचान्ता यं ही देवा उपासयते।।---
शिव जिसके बिना हम अपने अंत:करण में स्थित ईश्वर को देख ही नहीं सकते |
***कंकर -कंकर में है शंकर | शिवोहम -शिवोहम | सारी जगति ,जगती के सारे क्रिया कलाप सब शिव का ही स्वरूप हैं ,शिव को ही समर्पित हैं और शिव की ही अर्चना हैं | गौर वर्ण शिव ,__________
शंखेन्द्वाममतीव सुन्दरतनुम् शार्दूलचर्माम्बरं |
कालव्यालकरालभूषणधरं गंगा शशांक प्रियम ||
काशीशं,कलिकल्मशौघशमनम कल्याणकल्पद्रुमं |
नौमीयम ! गिरिजापतिं गुणनिधिम कन्दर्पहं शंकरम।।
***यही तो है शिव का स्वरूप जो दैनिक जीवन को चरितार्थ करता हुआ ,विपरीत में भी शांत और स्थिर रहने का मार्ग दिखाता है | सुंदर गौर वर्ण ,कमल से नयन , आजन बाहू ,कोमल गात संग में , उमा -पार्वती -अम्बिका भवानी -जिनकी सुन्दरता --
''छबि गृह दीप शिखा जनु बरईं '' है
इसपर भी जोगी जटिल अकाम मन नग्न अमंगल वेष | घोर विपरीततायें जैसे संसार को हर पल याद दिला रहे है शिव कि जीवन हलाहल है , पर विष रोक लो कंठ में ही ,न अपनेशरीर को विष की बेली बनने दो और न ही विष को समाज पे उगलो , कि वो कंठ में जाय और दवा बन जाए ताकि रोग दूर हों और तुम भी नीलकंठ का सुंदर मनभावन रूप ले के जियो | कितनी अदभुत सीख है ,पर कहाँ हम देख पाते हैं हम तो केवल जल चढ़ा के ही कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं |
*** आस्तीन में ही नहीं शिव के तो गले में और सर पे भी सर्पों की माला है | हम तो आसपास आस्तीन का एक सांप होने से ही विचलित हो जाते हैं ,पर जहाँ धोखे ही धोखे हो ---अपने भोलेपन में भोले बाबा ने वर दिया भस्मासुर को वो उन्ही को भस्म करने की सोचने लगा ,रावण ने शिव के आराध्य राम से ही बैर मोल ले लिया ,
दक्ष ने अपने घमंड में जग करता को नहीं पहचाना ,यहाँ तक कि सती ने भी राम की परीक्षा के समय दुराव किया -तो भी विवेक रूपी समुंद्र को आनंद देने वाले ,पाप रूपी घोर अन्धकार का नाश करने वाले ,तीनों तापों को हरने वाले ,मोह रूपी बादल को छिन्न -भिन्न करने वाले ,वैराग्य रूपी कमल के सूर्य कभी विचलित नहीं हुए अपितु संसार के कल्याण हेतु समाधिष्ट होगये और समाधि की अवधि पूर्ण होने पे सकल जगत के कल्याण के कार्यों में प्रविष्ठ हुए | क्या शिव का ये स्वरूप क्षमा सिखाने के लिए ही नहीं है ?पर कहाँ सीख पाते हैं हम ?
*** शिव के वस्त्र ,व्याघ्र चर्म और वल्कल वस्त्र जो कहीं से भी सुखदायी नहीं हैं ,हर परिस्थिति में समायोजित होने और प्रसन्न रहनेकी सीख देते से प्रतीत होते हैं | मस्तक पे आधा चन्द्रमा , कलंकित को भी आश्रय देने की सीख सर्पों का संग यानी आप चन्दन बन जाओ और अपने शीतल व्यवहार से अपने दुश्मनों को भी शांत करने की कला सीखो ! कमंडल अर्थात संचय की प्रवृति का त्याग ,केवल जीने लायक संचय, जटाओं में गंगा ( गंगा को अपने वेग और पवित्रता पे बड़ा अभिमान था ,वो स्वर्ग से नीचे नहीं आना चाहती थीं उन्होंने शिव की जटाओं में समाना स्वीकार किया क्यूंकि गंगाजी को पूरा विश्वास था कि वो अपने वेग से शिव को पातळ में ढकेल देंगी पर शिव ने उन्हें संभाला और सात धाराओं में बाँट दिया ) शिव की दृढ़ता ,कठोरता संयम और तीक्ष्ण बुद्धिमता की एक झलक ,कठिनाई में भी विवेक मत खोओ ,स्थिर बुद्धि और दृढ संकल्प हर परिस्थिति में राह दिखाते हैं पर कहाँ समझ पाते हैं हम ?| समस्त कठिनाइयों को ,अशुभ को ,अशौच को , भय विद्वेष कलंक को ,दुःख -दाह को ,आत्मसाध कर सरल ,शांत ,निर्लिप्त ,बैरागी और लोककल्याणकारी जीवन शैली --यही शिव है ! जो जगतपिता है कल्याणकारी है ,जो दूसरे के हित हेतु विषपान करता है ------
जरत सकल सुर वृन्द विषम गरल जेंहि पान किया |
तेहिं न भजसि मन मंद को कृपालु संकर सरिस ||
जिस भीषण हलाहल से देव- दानव सब जल रहे थे उसको जिन्होंने स्वयं पान किया ,रे मन तू उस शंकरजी को क्यूँ नहीं भजता --उनके सामान कृपालु और कौन है | सावन की इस   पावन ऋतु  में अपने आराध्य शिव को उनके स्वरूप की विशेषताओं और कल्याणकारी भावनाओं को अपने अंदर उतारने का संकल्प ! यही है आजका मेरा सावन का  शिवार्चन | हर हर महादेव ,बम -बम भोले |
*** पर शिव के अर्चन का कोई विशेष दिन विशेष ऋतु  ही क्यूँ ? क्यूँ न प्रतिदिन हम उन्हें ध्यायें ? हाँ ! हम प्रति दिन प्रतिपल शिव के ध्यान में रहें पर कभी अतिरिक्त ऊर्जा की भी आवश्यकता होती है |ये मानव मन बहुत शीघ्र विचलित हो जाता है इस की नीव बहुत ही कमजोर है ,अब एक मजबूत और पक्के मकान के लिए तो नीव का मजबूत होना बहुत आवश्यक है तो समय समय पे ये व्रत -त्यौहार हमारी नीव को पुख्ता करने का ही कार्य करते हैं ताकि हम आंधी तूफान और भूकम्प में भी डगमगाएं नहीं,चिन्तित न हों ,विचलित न हों | कलयुग में तो विचलित करने वाली घटनाएँ साथ-साथ ही चलती है | मीरा का जीवन नहीं हिला -नीव पक्की थी ,ध्यान की भक्ति की नीव थी मजबूत ! जैसे हम मोबाइल को रोज चार्ज करते हैं वैसे ही मन की चार्जिंग भी बहुत जरुरी है |मन को परमात्मा से कनेक्ट करना ,ये व्रत त्यौहार हमारे जीवन में सौकेट का काम करते हैं ,अपने मन की डोरी लगाइए और कई दिनों के लिए चार्ज हो जाइए | भगवान कहाँ खाते हैं वो तो भाव के ही भूखे हैं ,शिव ही सत्य है ये भाव कहीं गहरे हमारे भीतर पैंठ रहा है | हम शिवोहम को पहचान पा रहे हैं | नेति नेति करना हमें आने लगा है हम ज्ञान से परे जाने लगे हैं फिर जो बचता है वही कल्याणकारी शिव है।
पार्वती पति हर हर शंकर ,कण -कण शंकर ,शिवोहम ||
*** सावन  कल्याणकारी हो ,मंगलमयी हो ,स्वयं से स्वयं की पहचान करवाए .. सावन में कांवड़ आने वाले दिनों में ----

दक्ष प्रजापति मंदिर हरिद्वार ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

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