Monday, 28 March 2016



खाली समय और बैठे ठाले ---मन के लड्डू खाना-----
श्रीमद्भागवतगीता,पराशरगीता,अनुगीता,मंकीगीता ,अष्टावक्रगीता, रामगीता---और भी कई ऋषि -महात्माओं केप्रवचन गीता रूप में ,और इनमें से अधिकतर का महाभारत के ही विभिन्न पर्वों में उल्लेख है | कुछ मैंने पढ़ीं हैं कुछ अभी मेरे सामने प्रकट नही हुयीं | पर जब एक सबसे छोटी गीता--कामगीता ; जिसमें श्रीकृष्ण ममता को त्यागने को ही सबसे महत्वपूर्ण बताते हैं ; का दर्शन हुआ --महाभारत परायण के वक्त तो जैसे मन को मजबूती मिली और मिली एक नई दिशा -------------------
भीष्म को जलांजलि देने के पश्चात ,धृतराष्ट्र शोक से व्याकुल होगये--बाकी सारे कार्य करने का भार युधिष्ठर पे डाल दिया ये कह के कि शोक तो केवल मेरा और गांधारी का है --तुम तो अब अपने भाइयों और सुह्रिद्यों केसाथ मनोवांछित फल भोगो --बस ये व्यंग भरे वचन सुनके युधिष्ठर भी ग्लानिर्भवति वाली स्टेज में आगये --शायद धृतराष्ट्र यही चाहते थे ,वो पांडवों को अब भी प्रसन्न नही देख पा रहे थे और इसी लिए उन्होंने सबसे कमजोर कड़ी युधिष्ठर पे शब्द बाण चलाए |
युधिष्ठर ग्लानि से भर उठे , वो अपने को सभी गुरुजनों , बन्धु-बांधवों का कातिल समझने लगे तथा राजा बनने की जगह संन्यास लेने की जिद पे अड़ गये --तब कृष्ण ने जैसे अर्जुन को युद्ध में गीतोपदेश दिया था वैसे ही युधिष्ठर को भी --कामगीता का उपदेश दिया ---बहुत छोटी सी गीता --पर जीने के लिये बहुत महत्वपूर्ण--यदि इसके सार को जान लें तो जीवन ही कृष्णमय हो जाये ---
एक दो श्लोक सभी की नजर --कहते हैं कुछ भी अच्छा मिले तो बांटने में कोताही नही करनी चाहिये---तो निज के जीवन में उतारने की कोशिस के साथ आज लिखने की भी धृष्टता--
----जब युधिष्ठर मरे हुए सम्बन्धियों के शोक में संतप्त होकर विलाप करने लगे तो कई धर्म को जानने वाले तत्ववेदा मुनियों ने उन्हें उपदेश दिए पर युधिष्ठर को तो धृतराष्ट्र के शब्दों ने मोह लिया था , वो मरने वालों के लिये विलाप किये जा रहे थे तथा समस्त कामनाओं से मुक्त होके संन्यास धारण की जिद लगा बैठे थे |अंत में व्यासजी ने भी हाथ खड़े कर दिए तथा उनको कहना पड़ा--युधिष्ठर-तुम दुर्बुद्धि और श्रद्धा विहीन हो गये हो --अब कृष्ण ने मोर्चा संभाला और बोले---
--''अत्र गाथा: कामगीता कीर्तयन्ति पुराविदा |''
प्राचीन लोग एक गाथा कहते है --जो कामगीता है और जिसे काम ने ही स्वयं को नष्ट करने के लिए सुनाया है --उसे सुनो ---
''यो मां प्रयतते हन्तुं ज्ञात्वा प्रहरणे बलम् |
तस्य तस्मिन् प्रहरणे पुन:प्रादुर्भवाम्यहम् ||''---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
''यो मां प्रयतते हन्तुं धृत्या सत्य पराक्रम |
भावो भावामि तस्याहं स च मां नावबुध्यते ||''
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-----------------------------------------काम कह रहे है --मुझे अस्त्र से मारोगे तो मैं तुम्हारी बुद्धि में अस्त्र चलाने की और नये नये अस्त्रों की कामना बन के बैठ जाऊँगा ,मुझे धैर्य से मारना चाहोगे तो मैं तुम्हारे भावों में घुलमिल जाऊँगा और तुम कब धैर्य धारण करने वाली बुद्धि की कामना करने लगोगे तुम्हें ,पता ही नही चलेगा | जो मुझे वेद-शास्त्र का स्वाध्याय करके मिटाने काप्रयास करता है ,मैं उसके मन में
'' स्थावरेषिवव भूतात्मातस्य प्रादुर्भ्वाम्यहम् ''
प्राणियों में जीवात्मा की तरह प्रकट होता हूँ | जो कठोर तपस्या करके मुझे मिटाने की कोशिस करता है --मैं उसकी तपस्या की कामना बन तपस्या में ही पैदा हो जाता हूँ |
''ततस्तपसि तस्याथ पुन: प्रादुर्भवाम्यहम् || ''
और तो और जो मोक्ष का सहारा लेके मेरे विनाश का प्रयत्न करता है --वह भी अपनी मोक्षविषयक आसक्ति से ही बंधा हुआ है --और उसके मोक्ष के विचार पे मुझे हंसी आती है और मैं ख़ुशी से नाचनेलगता हूँ --
-''तस्य मोक्षरतिस्थस्य नरित्यामि च हसामि च''||---
मैं काम [ कामना किसी भी रूप में] हीएकमात्र अवध्य एवं सदा रहने वाला हूँ --जो मरने पे भी साथ जाता हूँ ----मरे हुए लोगों की कामना से कुछ हासिल नही होगा | यहाँ धरा पे रह गये लोगों को उन चले गये लोगों की प्रतिष्ठा और कीर्ति बढ़ाने का यत्न करना चाहिये ,यहीसच्ची श्रद्धांजली है --
तो तुमतो अपने इस ''काम'' को प्रजा के हित में किये जाने वाले यज्ञों में लगा दो ,ऐसे यज्ञ करो जिनसे दीन-दुखियों को लाभ हो ,यश कीर्ति बढ़े ,किसी की हानि न हो ,समाज में पुण्य बढ़ें ,इसीसे ,तुम्हारी व् तुम्हारे पुरखों की भी यश कीर्ति बढ़ेगी और तुम शुभ कामना को लेकर इह लोक से परलोक गमन करोगे --
-'' त्स्मात्त्वम्पी तं कामं यग्यैर्विवधदक्षिनै: |
धर्मे कुरु महाराज तत्र ते स भविष्यति'' ||---
अपने काम को धर्म में लगाओ --धर्म ! केवल पूजा-पाठ संध्या-उपासना वाला नही अपितु कर्म करने वाला बुद्धि और विवेक से किया गया कर्म जिसमे समष्टि का लाभ हो --
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कृष्ण ने जीवनके हर पल के लिये उपदेश दिए | जीवन संग्राम में जब भी हम हारा हुआ महसूस करते हैं कृष्ण खड़े रहते हैं आस-पास ,दिलासा भी देते हैं और आगे केलिए तैयार भी करते हैं--निर्भर हमपे करता है क्या हम उन्हें सुनपाते हैं,देख पाते है ! कोशिस तो करनी ही होगी | ----- निठ्ल्ला चिन्तन आभा का ----

Thursday, 24 March 2016

 होली के अनोखे रंग ]
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टोली हुरियारों की आई
चलो चलें खेलें होली
रंग उधर मेज पे सारे
 मन -भावे का रंग चुन लें
रंग गुलाल से क्या होगा
ये भ्रष्टाचार का रंग चुनो
गर इस रंग में रंग जाओगे
नाती-पोते भी तर जायेंगे
साम्प्रदायिकता नाम है इसका
ये लाल हरा जो चमक रहा 
सेक्युलर तो टेसू सा छाया
वोट बहुत दिलवाता है
नेतागिरी चमकाता है
चाहते यदि नेता बनना
तो इससे ही होली खेलो
झूठ ,फरेब और धोखेबाजी
ये रंग थोड़े सस्ते हैं
आम आदमी चाहे इनको
महंगाई में भी ले सकता है
भौजी जो रंग तुमने है उठाया
नाम इसका नेता है
एक बार इसको लगवालो
फिर देखो कैसे---
 गिरगिट सा रंग बदलता है
और एक रंग इस जैसा ही
सफेद खून कहलाता है
चमचों और चालबाजों पे
ये रंग खूब सुहाता है
आतंकवादी का कहते हैं ,
कोई रंग नहीं होता 
पर हर आतंकवादी 
धानी धरती को लाल कर जाता है
पर भूख गरीबी के रंगों में 
रंग ,आओ मिल होली खेलें
टोली हुरियारों की आई
चलो -चलो होली खेलें .......आभा ....
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Wednesday, 23 March 2016

                     ''
 होली  मुबारक---------------
 ''होली ,बौराये हुए आम के फूल के पहले खट्टी कैरी और फिर मीठे आम में परिवर्तित होने का त्यौहार | मीठा वही हो सकता है जो ऊँच-नीच न करे | जो बाँट के खाये | आम के पेड़ की तरह ,जिसकी छाल , पत्ते ,बौर ,कैरी ,औरपके फल सभी गुणकारी ---होली प्रकृति से सीख लेकर ,प्रकृति बन जाने का ही त्यौहार |____बसंत का मौसम ; आम पे आयी बौर की तरह बौराया हुआ -फागुनी हवा की बासन्ती छुवन सा मादक -कोयल की कूक सा मधुर -दुल्हन सी सजी प्रकृति सा पावन और सुंदर ! शायद इसीलिए इस बासन्ती मौसम को हमारी आत्मा ने चुना था हमारे, धरती में पदार्पण के लिए grin emoticon --ताकि जिंदगी से रंग उड़ जाएँ तो भी मन में रंग रहें। मन फगुनाया हुआ ही रsmile emoticon। बौराये हुए ही रहते हैं हम आम की बौर से ,कब उसके दीदार हों और कब कैरी की खटास मिठास में परिवर्तित हो ---एक बार बस एक बार कान्हा ; दर्शन दे दो --फिर तो हर दिन होली रात दिवाली हो जायेगी। मीठा होना ही मंजिल | 
फागुन तो बौराने की ही ऋतू है ,आम का बौर ,नीम के फूल ,आडू ,सेब खुबानी ,नीम्बू के फूलों की मादकता भरी सुरभि हवाओं में तैरती रहती है ,अपनी पूरी नजाकत और कमनीयता के साथ पहाड़ों में फ्यूली फूल जाती है ,नव- नवीन पल्लव ,सरसों के पीले फूलों से सजी धरती ,और साथ ही सुनहरी होती गेहूं की फसल् . टेसू ,गुलाब ,गेंदा ,चमेली ,रातकी रानी ,हरसिंगार ,चंपा .मोगरा के सौरभ से पवन देव भी अनंग के रूप का ही विस्तार प्रतीत होते हैं .और इस सब से इतर महुआ और पलाश भी अंगड़ाई लेने लगते हैं .मानव को बहकाने का पूरा -पूरा सामान होता है फागुन में प्रकृति के पास --औरमेरे जैसे प्रकृति के दीवाने तो इसके हर रूप पेफ़िदा तो फागुन में न फगुनाएं ऐसा कैसे हो सकता है --- smile emoticon
प्रकृतिके इन रंगों से रंग और खुशबू उधार ले कर हमारी संस्कृति में होली का पर्व रचा गया ,टेसू ,केतकी ,चमेली गुलाब ,गेंदा गुडहल ,इन सब फूलों से रंग और इत्र तैयार कर होली का त्यौहार मनाया जाता था ,राधा कृष्ण ,गोप ग्वाले ,प्रेम के रंग में रंगे हुए ,प्रकृति के साथ एकाकार हो जाते थे पारिजात और कदम्ब की डाल के नीचे यमुना किनारे सुमन और सुरभि की होली और यमुना जल से अठखेली ,होली मानो जायसी की नायिका का रूप धर आई हो . होली है ही सामाजिक समरसता और बराबरी का त्यौहार .
पर होली केवल रंगों और अठखेलियों का ही नाम नहीं है ,पकवानों और खुशबुओं का ही नाम नहीं है ,पिया के रंग में रंगने का ही नाम नहीं है -----------------यह तो एक क्रांति कारी विचार धारा है , बन्धनों में जकड़े समाज को आजाद करने की सहज सरल ,स्वीकारोक्ति ,,वर्ष भर बुर्जुआ समाज के नियम कायदों में पलने वाली घूँघट में रहने वाली स्त्री के लिए उन्मुक्त ,उल्लास ,और आनन्द का त्यौहार और बरसाने की लट्ठमार होली ,यानि सत्ता का हस्तान्तरण ,बरजोरी की, तो !खैर नहीं ,.,और तारीफ ये की पूरी मस्ती और आनन्द के साथ छूट होती है रंग खेलने की ,दुश्मन को भी गले लगाने का त्यौहार कोयल की कुहुक के साथ -साथ पंचम सुर में आंगन में गाना गाने का त्यौहार ,...
ये ऋतु सर्दी से गर्मी में संचार की है अत: गर्म पानी से ठन्डे की ओर जाने को एक पूरे दिन हलकी हलकी धूप में होली के रंगों की फुहारें ,जिन में टेसू गुलाब ,नीम गुडहल गेंदाऔर मेहंदी के रंग हों ,इत्र हों, त्वचा को कमनीय बनाती हैं और चर्म रोगों से बचा के ठन्डे पानी के प्रयोग के लिए तैयार करती हैं।
भंग के पकोड़े ,और ठंडाई ,पुदीना की चटनी ये सब संतुलित मात्रा में लेना होली की एक परम्परा है अब ये साबित होने लगा है कि भांग में कितने गुण हैं ये कैंसर से तक बचाव करती है गुझिया और पकवान को होली में खाकर फिर काले लाल गाजर की कांजी से पचाने का जुगाड़ ,,,इस संक्रमण काल में जब शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता कम हो तो ,ये खान पान चमत्कारिक असर करता है। इस तरह से मेरे विचार से होली पूर्णत: एक वैज्ञानिक सूझबूझ वाला त्यौहार है ,बस हम केमिकल रंगों ,अति नशे ,से बचें ,,होली की आत्मा को पहचानें उसे कुरीतियों से बचा के प्यार और रंगों के द्वारा ताजगी भरे उल्लास और आनन्द के त्यौहार की तरह ही मनाएं ...........

Monday, 7 March 2016

मंगलमय हो शिवरात्री --हम पहाड़ की लडकियों को तो शिवपार्वती के विग्रह में मायके की अनुभूति होती है ----
दुर्गा सप्तशती के आरम्भ में ,शिव देवी से पूछते हैं ---
दॆवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नत:-----------------हे देवि तुम कलियुग में भक्तों को कैसे सुलभ होओगी इसका सरल उपाय बताओ ---और कवच ,कीलक ,अर्गला ,सूक्त ,पाठ ,प्रार्थना ,रहस्यों से होते हुए ,क्षमा-प्रार्थना ,मानस पूजा के बाद पुस्तक का आखिरी पडाव कुञ्जिकस्तोत्र --जहाँ शिव समझा रहे हैं पार्वती को कि उसे ,''जो स्वयं देवी है '' प्राप्त करने का सबसे सरल उपाय क्या है --पर ये गुप्त ज्ञान है --गुप्त क्यूँ ? क्यूंकि मन की पवित्रता आवश्यक है जो अपने अंतर्मन के स्नान से ही मिलेगी और स्नान सार्वजनिक नही होता --वो पर्दे में ही हो तो ही पूर्ण होता है।ऐसे ही शिव भी कंकर कंकर में व्याप्त होते हुए भी रहस्य हैं ,अंतर्मन के स्नान ,ध्यान के बाद ही मिलते हैं।
शिव जो जगत के स्वामी हैं ,जिन्होंने किसी के घर जन्म नही लिया जो विष्णु और विष्णु के अवतारों की अराधना में लीन रहते हैं ;वो , विष्णु के भी आराध्य हैं।
जड़ से चेतन की ओर --अन्धकार से प्रकाश कीओर --शव से शिव होना --श्मशान से ही शुरू होती है शव से शिव होने की यात्रा --अग्नि जल से स्नान ---लं बीज से पृथ्वी ,रं से अग्नि ,यं से वायुमंडल ,हं से आकाश ,--पंचभूतों की यात्रा ---पृथ्वी -[शरीर ] को जल में ,जल को अग्नि ,अग्नि को वायु में ,वायु को आकाश में और पुन:आकाश का अहंकार में अहंकार का महत्व में , महत्व को प्रकृति में और माया रूपी प्रकृति का आत्मा में प्रस्फुटन ---शव से शिव हो जाना माया रूपी प्रकृति का साथ मिलने पे --पार्वतीपरमेश्वर हो जाना। यही है शिवरात्री मेरे लिये ----
''आत्मा त्वं गिरिजा मति: सहचरा: प्राणा: शरीरं गृहं,
पूजा ते विषयोपभोग-रचना निद्रा समाधिस्थिति:|
संचारं पदयो: प्रदक्षिण-विधि:स्तोत्राणि सर्वागिरो ,
यद्यद कर्म करोमि तत्तद्खिलं शंभो तवाराधनं।''-----मैं और मेरा सारा क्रिया कलाप सब शिव को समर्पित ,सब शिव स्वरूप ही हो --चित्त में शिव की कल्पना ''सोअहम् '' ,शिव मेरी आत्मा में मेरे हृदयकमल में विराजित हों।
प्राणायाम,पूरक ,रेचन ,कुम्भक के जप से- दग्ध पापपुरुष की भस्म मेरे शरीर से बाहर निकले और मेरे भीतर का विद्वान पुरुष उस भस्म कोशक्ति के अमृत बीज वं के उच्चारण से अमृत से आप्लावित करे ---शिव यही वरदान दें ---गिरिजा संग मेरे हृदयकमल में विराजमान होवें।
कालरात्रिर्महारात्रि:मोहरात्रिश्चदारुणा----श्लोक में कालरात्रि में शिव नटराज हैं , प्रलयकाल के संवाहक --स्थूल से सूक्ष्म की और ले जाने वाले -शव से शिव की ओर जड़ से चेतन की ओर ,और इसीलिये आज कालरात्रि शिवरात्री में शिव मन्दिरों में जागरण होंगे --खड़े दीपक का अनुष्ठान होगा कीर्तन होंगे ,गंगाजल ,बेलपत्र ,दूध की धार से प्रलयनृत्य करते नटराज को शांत किया जाएगा --निशीथ काल में सिद्धियों के लिये तंत्रोंतपासनाएं होंगी।
तुलसीदास जी ने मानस के प्रत्येक अध्याय का प्रारम्भ शिव अर्चना से ही किया है --
भवानीशंकरौ वन्दे श्र्द्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा:स्वान्त:स्थ्मीश्वरम्।। --
जिनके बिना बड़े-बड़े सिद्ध योगी भी मूढ़ हो जाते हैं --वो शिव जो कंकर -कंकर में हैं ,जो हमारी आत्मा है शिवोहम --जो जन -जन के नायक हैं ,जो लोक संस्कृतियों में प्राण वायु की तरह व्याप्त हैं --वो ही शिव ;जगत के पालन हार --सभी की रक्षा करें , शिवरात्री चेतनता लाने वाली हो , नटराज का नृत्य, सृजन का हेतु हो -------सभी श्रद्धेय गुरुजनों ,मित्रों सखियों ,बच्चों को शिवरात्री की शुभकामनायें ----
श्रीमान --श्री का मान करने वाले हों आप सभी --यानि स्त्री का सम्मान हो। श्रीमति ---सभी स्त्रियाँ ,श्री युक्त मति वाली हों --कल्याण हेतु। =====एक बार पुन: शिवरात्री मंगलमयी हो।आभा।।