मंगलमय हो शिवरात्री --हम पहाड़ की लडकियों को तो शिवपार्वती के विग्रह में मायके की अनुभूति होती है ----
दुर्गा सप्तशती के आरम्भ में ,शिव देवी से पूछते हैं ---
दॆवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नत:-----------------हे देवि तुम कलियुग में भक्तों को कैसे सुलभ होओगी इसका सरल उपाय बताओ ---और कवच ,कीलक ,अर्गला ,सूक्त ,पाठ ,प्रार्थना ,रहस्यों से होते हुए ,क्षमा-प्रार्थना ,मानस पूजा के बाद पुस्तक का आखिरी पडाव कुञ्जिकस्तोत्र --जहाँ शिव समझा रहे हैं पार्वती को कि उसे ,''जो स्वयं देवी है '' प्राप्त करने का सबसे सरल उपाय क्या है --पर ये गुप्त ज्ञान है --गुप्त क्यूँ ? क्यूंकि मन की पवित्रता आवश्यक है जो अपने अंतर्मन के स्नान से ही मिलेगी और स्नान सार्वजनिक नही होता --वो पर्दे में ही हो तो ही पूर्ण होता है।ऐसे ही शिव भी कंकर कंकर में व्याप्त होते हुए भी रहस्य हैं ,अंतर्मन के स्नान ,ध्यान के बाद ही मिलते हैं।
शिव जो जगत के स्वामी हैं ,जिन्होंने किसी के घर जन्म नही लिया जो विष्णु और विष्णु के अवतारों की अराधना में लीन रहते हैं ;वो , विष्णु के भी आराध्य हैं।
जड़ से चेतन की ओर --अन्धकार से प्रकाश कीओर --शव से शिव होना --श्मशान से ही शुरू होती है शव से शिव होने की यात्रा --अग्नि जल से स्नान ---लं बीज से पृथ्वी ,रं से अग्नि ,यं से वायुमंडल ,हं से आकाश ,--पंचभूतों की यात्रा ---पृथ्वी -[शरीर ] को जल में ,जल को अग्नि ,अग्नि को वायु में ,वायु को आकाश में और पुन:आकाश का अहंकार में अहंकार का महत्व में , महत्व को प्रकृति में और माया रूपी प्रकृति का आत्मा में प्रस्फुटन ---शव से शिव हो जाना माया रूपी प्रकृति का साथ मिलने पे --पार्वतीपरमेश्वर हो जाना। यही है शिवरात्री मेरे लिये ----
''आत्मा त्वं गिरिजा मति: सहचरा: प्राणा: शरीरं गृहं,
पूजा ते विषयोपभोग-रचना निद्रा समाधिस्थिति:|
संचारं पदयो: प्रदक्षिण-विधि:स्तोत्राणि सर्वागिरो ,
यद्यद कर्म करोमि तत्तद्खिलं शंभो तवाराधनं।''-----मैं और मेरा सारा क्रिया कलाप सब शिव को समर्पित ,सब शिव स्वरूप ही हो --चित्त में शिव की कल्पना ''सोअहम् '' ,शिव मेरी आत्मा में मेरे हृदयकमल में विराजित हों।
प्राणायाम,पूरक ,रेचन ,कुम्भक के जप से- दग्ध पापपुरुष की भस्म मेरे शरीर से बाहर निकले और मेरे भीतर का विद्वान पुरुष उस भस्म कोशक्ति के अमृत बीज वं के उच्चारण से अमृत से आप्लावित करे ---शिव यही वरदान दें ---गिरिजा संग मेरे हृदयकमल में विराजमान होवें।
कालरात्रिर्महारात्रि:मोहरात्रिश्चदारुणा----श्लोक में कालरात्रि में शिव नटराज हैं , प्रलयकाल के संवाहक --स्थूल से सूक्ष्म की और ले जाने वाले -शव से शिव की ओर जड़ से चेतन की ओर ,और इसीलिये आज कालरात्रि शिवरात्री में शिव मन्दिरों में जागरण होंगे --खड़े दीपक का अनुष्ठान होगा कीर्तन होंगे ,गंगाजल ,बेलपत्र ,दूध की धार से प्रलयनृत्य करते नटराज को शांत किया जाएगा --निशीथ काल में सिद्धियों के लिये तंत्रोंतपासनाएं होंगी।
तुलसीदास जी ने मानस के प्रत्येक अध्याय का प्रारम्भ शिव अर्चना से ही किया है --
भवानीशंकरौ वन्दे श्र्द्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा:स्वान्त:स्थ्मीश्वरम्।। --
जिनके बिना बड़े-बड़े सिद्ध योगी भी मूढ़ हो जाते हैं --वो शिव जो कंकर -कंकर में हैं ,जो हमारी आत्मा है शिवोहम --जो जन -जन के नायक हैं ,जो लोक संस्कृतियों में प्राण वायु की तरह व्याप्त हैं --वो ही शिव ;जगत के पालन हार --सभी की रक्षा करें , शिवरात्री चेतनता लाने वाली हो , नटराज का नृत्य, सृजन का हेतु हो -------सभी श्रद्धेय गुरुजनों ,मित्रों सखियों ,बच्चों को शिवरात्री की शुभकामनायें ----
श्रीमान --श्री का मान करने वाले हों आप सभी --यानि स्त्री का सम्मान हो। श्रीमति ---सभी स्त्रियाँ ,श्री युक्त मति वाली हों --कल्याण हेतु। =====एक बार पुन: शिवरात्री मंगलमयी हो।आभा।।
दुर्गा सप्तशती के आरम्भ में ,शिव देवी से पूछते हैं ---
दॆवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नत:-----------------हे देवि तुम कलियुग में भक्तों को कैसे सुलभ होओगी इसका सरल उपाय बताओ ---और कवच ,कीलक ,अर्गला ,सूक्त ,पाठ ,प्रार्थना ,रहस्यों से होते हुए ,क्षमा-प्रार्थना ,मानस पूजा के बाद पुस्तक का आखिरी पडाव कुञ्जिकस्तोत्र --जहाँ शिव समझा रहे हैं पार्वती को कि उसे ,''जो स्वयं देवी है '' प्राप्त करने का सबसे सरल उपाय क्या है --पर ये गुप्त ज्ञान है --गुप्त क्यूँ ? क्यूंकि मन की पवित्रता आवश्यक है जो अपने अंतर्मन के स्नान से ही मिलेगी और स्नान सार्वजनिक नही होता --वो पर्दे में ही हो तो ही पूर्ण होता है।ऐसे ही शिव भी कंकर कंकर में व्याप्त होते हुए भी रहस्य हैं ,अंतर्मन के स्नान ,ध्यान के बाद ही मिलते हैं।
शिव जो जगत के स्वामी हैं ,जिन्होंने किसी के घर जन्म नही लिया जो विष्णु और विष्णु के अवतारों की अराधना में लीन रहते हैं ;वो , विष्णु के भी आराध्य हैं।
जड़ से चेतन की ओर --अन्धकार से प्रकाश कीओर --शव से शिव होना --श्मशान से ही शुरू होती है शव से शिव होने की यात्रा --अग्नि जल से स्नान ---लं बीज से पृथ्वी ,रं से अग्नि ,यं से वायुमंडल ,हं से आकाश ,--पंचभूतों की यात्रा ---पृथ्वी -[शरीर ] को जल में ,जल को अग्नि ,अग्नि को वायु में ,वायु को आकाश में और पुन:आकाश का अहंकार में अहंकार का महत्व में , महत्व को प्रकृति में और माया रूपी प्रकृति का आत्मा में प्रस्फुटन ---शव से शिव हो जाना माया रूपी प्रकृति का साथ मिलने पे --पार्वतीपरमेश्वर हो जाना। यही है शिवरात्री मेरे लिये ----
''आत्मा त्वं गिरिजा मति: सहचरा: प्राणा: शरीरं गृहं,
पूजा ते विषयोपभोग-रचना निद्रा समाधिस्थिति:|
संचारं पदयो: प्रदक्षिण-विधि:स्तोत्राणि सर्वागिरो ,
यद्यद कर्म करोमि तत्तद्खिलं शंभो तवाराधनं।''-----मैं और मेरा सारा क्रिया कलाप सब शिव को समर्पित ,सब शिव स्वरूप ही हो --चित्त में शिव की कल्पना ''सोअहम् '' ,शिव मेरी आत्मा में मेरे हृदयकमल में विराजित हों।
प्राणायाम,पूरक ,रेचन ,कुम्भक के जप से- दग्ध पापपुरुष की भस्म मेरे शरीर से बाहर निकले और मेरे भीतर का विद्वान पुरुष उस भस्म कोशक्ति के अमृत बीज वं के उच्चारण से अमृत से आप्लावित करे ---शिव यही वरदान दें ---गिरिजा संग मेरे हृदयकमल में विराजमान होवें।
कालरात्रिर्महारात्रि:मोहरात्रिश्चदारुणा----श्लोक में कालरात्रि में शिव नटराज हैं , प्रलयकाल के संवाहक --स्थूल से सूक्ष्म की और ले जाने वाले -शव से शिव की ओर जड़ से चेतन की ओर ,और इसीलिये आज कालरात्रि शिवरात्री में शिव मन्दिरों में जागरण होंगे --खड़े दीपक का अनुष्ठान होगा कीर्तन होंगे ,गंगाजल ,बेलपत्र ,दूध की धार से प्रलयनृत्य करते नटराज को शांत किया जाएगा --निशीथ काल में सिद्धियों के लिये तंत्रोंतपासनाएं होंगी।
तुलसीदास जी ने मानस के प्रत्येक अध्याय का प्रारम्भ शिव अर्चना से ही किया है --
भवानीशंकरौ वन्दे श्र्द्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धा:स्वान्त:स्थ्मीश्वरम्।। --
जिनके बिना बड़े-बड़े सिद्ध योगी भी मूढ़ हो जाते हैं --वो शिव जो कंकर -कंकर में हैं ,जो हमारी आत्मा है शिवोहम --जो जन -जन के नायक हैं ,जो लोक संस्कृतियों में प्राण वायु की तरह व्याप्त हैं --वो ही शिव ;जगत के पालन हार --सभी की रक्षा करें , शिवरात्री चेतनता लाने वाली हो , नटराज का नृत्य, सृजन का हेतु हो -------सभी श्रद्धेय गुरुजनों ,मित्रों सखियों ,बच्चों को शिवरात्री की शुभकामनायें ----
श्रीमान --श्री का मान करने वाले हों आप सभी --यानि स्त्री का सम्मान हो। श्रीमति ---सभी स्त्रियाँ ,श्री युक्त मति वाली हों --कल्याण हेतु। =====एक बार पुन: शिवरात्री मंगलमयी हो।आभा।।
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