Wednesday, 23 March 2016

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 होली  मुबारक---------------
 ''होली ,बौराये हुए आम के फूल के पहले खट्टी कैरी और फिर मीठे आम में परिवर्तित होने का त्यौहार | मीठा वही हो सकता है जो ऊँच-नीच न करे | जो बाँट के खाये | आम के पेड़ की तरह ,जिसकी छाल , पत्ते ,बौर ,कैरी ,औरपके फल सभी गुणकारी ---होली प्रकृति से सीख लेकर ,प्रकृति बन जाने का ही त्यौहार |____बसंत का मौसम ; आम पे आयी बौर की तरह बौराया हुआ -फागुनी हवा की बासन्ती छुवन सा मादक -कोयल की कूक सा मधुर -दुल्हन सी सजी प्रकृति सा पावन और सुंदर ! शायद इसीलिए इस बासन्ती मौसम को हमारी आत्मा ने चुना था हमारे, धरती में पदार्पण के लिए grin emoticon --ताकि जिंदगी से रंग उड़ जाएँ तो भी मन में रंग रहें। मन फगुनाया हुआ ही रsmile emoticon। बौराये हुए ही रहते हैं हम आम की बौर से ,कब उसके दीदार हों और कब कैरी की खटास मिठास में परिवर्तित हो ---एक बार बस एक बार कान्हा ; दर्शन दे दो --फिर तो हर दिन होली रात दिवाली हो जायेगी। मीठा होना ही मंजिल | 
फागुन तो बौराने की ही ऋतू है ,आम का बौर ,नीम के फूल ,आडू ,सेब खुबानी ,नीम्बू के फूलों की मादकता भरी सुरभि हवाओं में तैरती रहती है ,अपनी पूरी नजाकत और कमनीयता के साथ पहाड़ों में फ्यूली फूल जाती है ,नव- नवीन पल्लव ,सरसों के पीले फूलों से सजी धरती ,और साथ ही सुनहरी होती गेहूं की फसल् . टेसू ,गुलाब ,गेंदा ,चमेली ,रातकी रानी ,हरसिंगार ,चंपा .मोगरा के सौरभ से पवन देव भी अनंग के रूप का ही विस्तार प्रतीत होते हैं .और इस सब से इतर महुआ और पलाश भी अंगड़ाई लेने लगते हैं .मानव को बहकाने का पूरा -पूरा सामान होता है फागुन में प्रकृति के पास --औरमेरे जैसे प्रकृति के दीवाने तो इसके हर रूप पेफ़िदा तो फागुन में न फगुनाएं ऐसा कैसे हो सकता है --- smile emoticon
प्रकृतिके इन रंगों से रंग और खुशबू उधार ले कर हमारी संस्कृति में होली का पर्व रचा गया ,टेसू ,केतकी ,चमेली गुलाब ,गेंदा गुडहल ,इन सब फूलों से रंग और इत्र तैयार कर होली का त्यौहार मनाया जाता था ,राधा कृष्ण ,गोप ग्वाले ,प्रेम के रंग में रंगे हुए ,प्रकृति के साथ एकाकार हो जाते थे पारिजात और कदम्ब की डाल के नीचे यमुना किनारे सुमन और सुरभि की होली और यमुना जल से अठखेली ,होली मानो जायसी की नायिका का रूप धर आई हो . होली है ही सामाजिक समरसता और बराबरी का त्यौहार .
पर होली केवल रंगों और अठखेलियों का ही नाम नहीं है ,पकवानों और खुशबुओं का ही नाम नहीं है ,पिया के रंग में रंगने का ही नाम नहीं है -----------------यह तो एक क्रांति कारी विचार धारा है , बन्धनों में जकड़े समाज को आजाद करने की सहज सरल ,स्वीकारोक्ति ,,वर्ष भर बुर्जुआ समाज के नियम कायदों में पलने वाली घूँघट में रहने वाली स्त्री के लिए उन्मुक्त ,उल्लास ,और आनन्द का त्यौहार और बरसाने की लट्ठमार होली ,यानि सत्ता का हस्तान्तरण ,बरजोरी की, तो !खैर नहीं ,.,और तारीफ ये की पूरी मस्ती और आनन्द के साथ छूट होती है रंग खेलने की ,दुश्मन को भी गले लगाने का त्यौहार कोयल की कुहुक के साथ -साथ पंचम सुर में आंगन में गाना गाने का त्यौहार ,...
ये ऋतु सर्दी से गर्मी में संचार की है अत: गर्म पानी से ठन्डे की ओर जाने को एक पूरे दिन हलकी हलकी धूप में होली के रंगों की फुहारें ,जिन में टेसू गुलाब ,नीम गुडहल गेंदाऔर मेहंदी के रंग हों ,इत्र हों, त्वचा को कमनीय बनाती हैं और चर्म रोगों से बचा के ठन्डे पानी के प्रयोग के लिए तैयार करती हैं।
भंग के पकोड़े ,और ठंडाई ,पुदीना की चटनी ये सब संतुलित मात्रा में लेना होली की एक परम्परा है अब ये साबित होने लगा है कि भांग में कितने गुण हैं ये कैंसर से तक बचाव करती है गुझिया और पकवान को होली में खाकर फिर काले लाल गाजर की कांजी से पचाने का जुगाड़ ,,,इस संक्रमण काल में जब शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता कम हो तो ,ये खान पान चमत्कारिक असर करता है। इस तरह से मेरे विचार से होली पूर्णत: एक वैज्ञानिक सूझबूझ वाला त्यौहार है ,बस हम केमिकल रंगों ,अति नशे ,से बचें ,,होली की आत्मा को पहचानें उसे कुरीतियों से बचा के प्यार और रंगों के द्वारा ताजगी भरे उल्लास और आनन्द के त्यौहार की तरह ही मनाएं ...........

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