मेरा बचपन
इक था बचपन मेरा बचपन ,
सरल सुकोमल निश्छल मादक .
नव कोमल सृजन के अंकुर ,
सुंदर भावों से परिपूरित .
स्वच्छ व्योम से निश्छल मन में ,
उमड़ -घुमड़ बादल से सपने ,
इंद्र धनुषी रंगों वाले ,
मृग छौनों के संगों वाले .
पल -पल बनते और बिखरते ,
नित्य नये आकार वो धरते .
पंखों से भी कोमल -कोमल ,
हिम फाहों से सजते सपने .
छूलूं मैं ये गगन उछल कर ,
पार करूँ अंबुद तैर कर .
नीड़ बना लूँ शिखरों पर मैं ,
औ बारिश में आग जलाऊं .
बचपन भी क्या बचपन था वह ,
सारा जगत पाँव के नीचे .
आंगन में खेला करते थे ,
कितने सच्चे निश्छल बच्चे .
पर जग को जब मैने अपनाया ,
बचपन गया जगत को पाया .
मधुर सुकोमल सपने सारे ,
खो गये कहीं दूर हमारे .
बौर आम पर जब भी देखे
मन हर्षाया -----------------
चलो आम का सीजन आया .
इंद्र-धनुष जब बना गगन में ,
सोचा बारिश अच्छी होगी .
पार करें यदि अंबुद को तो ,
धन का प्रश्न सामने आया .
पर्वत शिखरों पर चढ़ने को ,
बुकिंग कराने जाना होगा .
बारिशें पीने पर हमको ,
वाइरल से पछताना होगा .
काश आज मन बचपन होता,
निश्छल होता चंचल होता .
नव कोमल सृजन के अंकुर
सुंदर भावों से परिपूरित .
जीवन की संध्या बेला में ,
जब यादों में खो जाती हूँ ,
देख-देख बच्चों को अपने ,
अपना बचपन दोहराती हूँ
बचपन तो अब भी बचपन है ,
मैं ही उसको छोड़ चुकी थी ,
विगत स्मृतियों के झूलों में ,
मन मेरा अब भी बचपन है .
---------------------------------------------------------------आभा ----------------------------------------------
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इक था बचपन मेरा बचपन ,
सरल सुकोमल निश्छल मादक .
नव कोमल सृजन के अंकुर ,
सुंदर भावों से परिपूरित .
स्वच्छ व्योम से निश्छल मन में ,
उमड़ -घुमड़ बादल से सपने ,
इंद्र धनुषी रंगों वाले ,
मृग छौनों के संगों वाले .
पल -पल बनते और बिखरते ,
नित्य नये आकार वो धरते .
पंखों से भी कोमल -कोमल ,
हिम फाहों से सजते सपने .
छूलूं मैं ये गगन उछल कर ,
पार करूँ अंबुद तैर कर .
नीड़ बना लूँ शिखरों पर मैं ,
औ बारिश में आग जलाऊं .
बचपन भी क्या बचपन था वह ,
सारा जगत पाँव के नीचे .
आंगन में खेला करते थे ,
कितने सच्चे निश्छल बच्चे .
पर जग को जब मैने अपनाया ,
बचपन गया जगत को पाया .
मधुर सुकोमल सपने सारे ,
खो गये कहीं दूर हमारे .
बौर आम पर जब भी देखे
मन हर्षाया -----------------
चलो आम का सीजन आया .
इंद्र-धनुष जब बना गगन में ,
सोचा बारिश अच्छी होगी .
पार करें यदि अंबुद को तो ,
धन का प्रश्न सामने आया .
पर्वत शिखरों पर चढ़ने को ,
बुकिंग कराने जाना होगा .
बारिशें पीने पर हमको ,
वाइरल से पछताना होगा .
काश आज मन बचपन होता,
निश्छल होता चंचल होता .
नव कोमल सृजन के अंकुर
सुंदर भावों से परिपूरित .
जीवन की संध्या बेला में ,
जब यादों में खो जाती हूँ ,
देख-देख बच्चों को अपने ,
अपना बचपन दोहराती हूँ
बचपन तो अब भी बचपन है ,
मैं ही उसको छोड़ चुकी थी ,
विगत स्मृतियों के झूलों में ,
मन मेरा अब भी बचपन है .
---------------------------------------------------------------आभा ----------------------------------------------
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this one is the best!!!
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