वह मेरा छोटा सा संसार ,
आंगन में मेरे हर सिंगार ,
झर- झर ,झरते कुसुम हजार .
अमृत रस निर्झर -सौरभ बयार .
इस हरसिंगार तले कान्हा .
गोपिन संग नित रास रचाते हैं .
प्रिय के पद वन्दन हेतु
धवल -वसंती मृदु फूलों की चादरसी बिछ जाती है ,.
झर झर झरती सुरभित कलियाँ ,
राधा को सुरभित कर देती होंगी ,
प्रीती पाश में बंधी गोपियाँ .
सुध -बुध अपनी बिसराती होंगी .
बड़े सवेरे उठ कर हम तुम ,
चुपके से उपवन हो आते थे ,
आंगन में बिखरे फूलों को .
आंचल में भर लेते थे ,
छू कर पद रज कान्हा की ,
हम दोनों भी महका करते थे .
हमें दिखाई देते थे, मधुर नृत्य के इंगित !फूलों पर .
अब नहीं वह आंगन मेरा ,पास नहीं तुम भी हो मेरे ,
पर कान्हा की मधुर बांसुरी ,गूंज रही है मेरे मन में .
कंकरीट के इस जंगल में याद तुम्हारी जब ,आती है ,
ख़्वाबों में ही संग मैं तेरे !हरसिंगार तक हो आती हूँ .
चुन कर कलियाँ नारंगी -धवल सुगन्धित वृक्ष तले से ,
मह -महकते आंचल में भर कर ,मैं !तुझ को कर देती हूँ अर्पण ,
कंकरीट के इस जंगल में मानस पारिजात समर्पित ,
श्रधा सुमन उस हरसिंगार के तेरे चरणों में हैं अर्पित .....
..............................................................................आभा ..........