Tuesday, 25 September 2012

                                                {..... . श्रधान्जली अजय .....25 सितम्बर .....10 महीने .....}
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वह मेरा छोटा सा संसार ,आंगन में मेरे हरसिंगार .
झर-झर झरते सुमन हजार ,अमृत रस निर्झर  सौरभ बयार .
नित्य निशा में रास रचाने ,राधे-कृष्ण गोपिओं संग आते ,
धन-धन होकर पारिजात यह झरने लगते वसुधा पर तब ,
छोटे-छोटे धवल बसंती ,फूलों की चादर बिछ जाती ,
मधुर -सुगंध हरसिंगार की कर देती राधा जी को सुरभित ,
नित्य सवेरे उठ कर हम -तुम ,चुपके से उपवन हो आते ,
वसुधा में बिखरे फूलों को ,श्रधा नत आंचल में भर लेते .
उन फूलों की अनिर्वचनीय शांति ,रज-कण में आभासित होती ,
हमे दीखते थे  कान्हा के मधुर नृत्य के इंगित फूलों पर .
आज नहीं वह आंगन मेरा ,पास नहीं तुम भी हो मेरे ,
पर कान्हा की  मधुर बांसुरी ,गूंज रही है मन आंगन में .
कंकरीट के इस जंगल में याद तुम्हारी जब आती है ,
ख़्वाबों में ही संग मैं तेरे ,हरसिंगार तक हो आती हूँ .
चुन -चुन कर कलियाँ नारंगी -धवल सुवासित आंचल भर ,
अर्पित तुम को कर देती हूँ कंकरीट के इस जंगल में .
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............आभा ........................................................




 

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