Tuesday, 25 September 2012

                                                                 {  श्रधान्जली अजय
 वह मेरा छोटा सा संसार ,आंगन में मेरे हरसिंगार .
झर-झर ,झरते कुसुम हजार ,अमृत रस निर्झर सौरभ बयार .
नित्य रात्री हरसिंगार तले ,मोहन !राधे -गोपिन संग रास रचाने आते हैं ,
पारिजात !यह  पुष्प स्वर्ग का कान्हा ही वसुधा में लाये थे .
दिवस का अवसान स्वर्णिम ,उतर आताआंगन में मेरे
नव मधु का  फूलों का सौरभ भर भर चहुँ दिश में जाता तब ,
प्रीति  पाश में बंधे मोहन नित !राधा संग रास रचाने जब आते
छोटे -छोटे धवल -बसंती कुसुमों की चादर बिछाता ,
आंगन में मेरे यह हरसिंगार




 

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