Wednesday, 19 September 2012

                                                                 {  निशब्द मौन }
                                                                ..............................
मौन को सुनने लगी मैं ,
  निशब्द मौन हृदय तल में ,
  शान्ति नैसर्गिक -सरलता ,
  शिव -शाश्वत परम -पावन .
स्व-विहीन सत्ता यहाँ पर .
स्वरहीन है संगीत -मधुरम ,इक
लय-बद्ध शांति-गान सुंदर .
ध्वनि तिरोहित हो चली हैं ,
गहन मौन! गहनतम है ,
कोई नहीं ,मैं भी नहीं हूँ ,
पर रिक्त सा कुछ भी नहीं है
मौन है अस्तित्व-मय यह ,
ईश्वरीय सुवास है अब ,
है प्रवाह संगीत का इक ,
अनजान सा  मृदु- मधुर कोमल,
गहरा रही है शांति अनुपम ,
सुवास जो अनजान सी है ,
पहचान सी मेरी है इससे ,
जानती सदियों से हूँ मैं ,
इस गंध को ,संगीत को मैं ,
आलोक है इक अनोखा ,
मैं उतरने सी लगी हूँ ,
और गहरे में हृदय के ,
मैंने है चखा स्वाद अपने ,
अंतर-जगत का हृदय-तल का ,
अन्तश-चक्षुओं से है देखा ,
हृदय-तल का दृश्य अनुपम ,
है मनोरम -परिपूर्ण है यह ,
शाश्वत-है असीम है यह ,
मौन है बस मौन है यह ,
बस यहाँ मैं ही हूँ ,मैं बस ,
लय -बद्ध शान्ति स्वरहीन सरगम ,
मौन मेरे हृदय का ,
आज मुखरित हो रहा है ...आज मुखरित हो रहा है ......
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...............................आभा ......................................






 

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