{ नव सृजन करना ही होगा }
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प्रश्न है ना अब कोई भी ,
शून्यता है बस नयन में .
आंधियां सब शांत हैं ,विध्वंस है बस मन गगन में .
शांत तूफां हो गये सब ! नव सृजन करना ही होगा .
राह सारी कंटकित हैं ,पंथ पथरीला है किंचित ,
और ज्वालाओं के आगे ,मंजिलें अपनी हैं निश्चित .
मेघों की छाया के संग -संग ,राह मैं अपनी बनाती ,
नित निशा देने है आती ,तम सजी प्रियतम की पाती .
स्नेह के मधु -पाग से ,सिंचित ! ये आमन्त्रण तुम्हारा ,
तारकों के जगमगाते ,अक्षरों से इसको ढाला .
चाँद में चितवन तुम्हारी ,चांदनी किरणे हैं झूला ,
डोलता मन जा रहा है कब चढूं मैं ये हिंडोला .
उस पार ज्वालाओं के मुझको ,लोक दिखता है तुम्हारा ,
पार कर लूँ दग्ध पथ को ,चिर मिलन हित चिर विदा लूँ .
प्रेम की मूरत बनी मैं घुल चलूं मैं ,मिट चलूं मैं ,
तप अपर्णा सा करूंगी तब ही तो शिव मिलन होगा .
शून्य मन में जब बसेगा तब ही तो नव -सृजन होगा .
व्योम जब निशब्द होगा ,तब तो शिव मिलन होगा .
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......................आभा .......................................
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प्रश्न है ना अब कोई भी ,
शून्यता है बस नयन में .
आंधियां सब शांत हैं ,विध्वंस है बस मन गगन में .
शांत तूफां हो गये सब ! नव सृजन करना ही होगा .
राह सारी कंटकित हैं ,पंथ पथरीला है किंचित ,
और ज्वालाओं के आगे ,मंजिलें अपनी हैं निश्चित .
मेघों की छाया के संग -संग ,राह मैं अपनी बनाती ,
नित निशा देने है आती ,तम सजी प्रियतम की पाती .
स्नेह के मधु -पाग से ,सिंचित ! ये आमन्त्रण तुम्हारा ,
तारकों के जगमगाते ,अक्षरों से इसको ढाला .
चाँद में चितवन तुम्हारी ,चांदनी किरणे हैं झूला ,
डोलता मन जा रहा है कब चढूं मैं ये हिंडोला .
उस पार ज्वालाओं के मुझको ,लोक दिखता है तुम्हारा ,
पार कर लूँ दग्ध पथ को ,चिर मिलन हित चिर विदा लूँ .
प्रेम की मूरत बनी मैं घुल चलूं मैं ,मिट चलूं मैं ,
तप अपर्णा सा करूंगी तब ही तो शिव मिलन होगा .
शून्य मन में जब बसेगा तब ही तो नव -सृजन होगा .
व्योम जब निशब्द होगा ,तब तो शिव मिलन होगा .
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