जय गणेश ,जय गणतन्त्र ,जय गण -गण .
********************************
जमाने की हवा ही कुछ ऐसी हो चली है कि कोई भी पर्व हो धार्मिक ,सामाजिक या राष्ट्रीय ,आधुनिक ,तथाकथित बुद्धिजीवी और सुधारवादियों के झुण्ड (मैं उन्हें झुण्ड ही कहती हूँ जो लोग एक साथ मिल के अनर्गल प्रलाप करते हैं )के झुण्ड उसे न मनाने के तर्क रखने लगते हैं | अब गणतन्त्र दिवस पे भी बवाल मचा है | इस महापर्व को अप्रासंगिक बनाने का प्रयास --असुरक्षा और नकारात्मक सोच का ही परिचायक है |असल में हम अति महत्वाकांक्षी हो गये हैं | यदि हम अपने आस-पास के समाज में देखें कि जब अति महत्वाकांक्षा जब होती है तो क्या घटित होता है ? तब हम केवल अपने ही बारे में सोचते हैं ? अपने लक्ष्य को पाने के लिए क्रूर और लज्जा-विहीन आचरण करते हैं | अन्य व्यक्तियों को एक ओर ढकेल देते हैं ,क्यूंकि आपको अपनी राह बनानी होती है |क्या ये सृजन है ? क्या ये क्रांति है ? हम बड़ी चतुराई से शब्दों की व्याख्या करते है और धीरे धीरे अपनी मेधा को खो देते हैं | मेधा (intelligence ) क्या है यह ?क्या सिर्फ सफल होने या अपना अभीष्ट पा लेने से ही इन्सान मेधावी बनता है ! शायद नहीं | भोर की बेला में प्राची में अकेले नाचते हुए सिंदूरी भोर के ता रे को महसूस करना और पानी में उसके प्रकाश को देख के रोमांचित होना , पक्षियों कीचहचहाहट सुनना ,हवा में तिरती सुबह की धूप से उडती ओस के साथ बहती सुगंध को महसूस करना ,किसी छोटे बच्चे के आनंद में अनायास ही उसके साथ ताली बजाते हुए उछलना,कबूतर की गुटरगूं में उसके साथ सवाल जवाब करना या गिलहरी को फुदकते देख एक आत्मिक संतोष का मिलना ,ये छोटी -छोटी अनुभूतियाँ जब आपके अंदर उथल-पुथल मचाने लगती है ,तो जो अहसास आपके भीतर जगता है उसे मेधा यानी (intelligence ) कहते हैं| जिसके जग जाने से हम महत्वाकांक्षी तो होते है लेकिनहमारा संघर्ष .अधिक विचारपूर्ण ,समरस ,सरल विनम्र ,सृजनशील और अहंकार के परे हो जाता है |तब हम सर्वहारा के लिए जीते है ,अधिक प्रेम पूर्ण और आत्मविश्वासी हो जाते हैं | पर आज अधिकांश लोगों के पास समय ही नहीं प्रकृति की इस दिव्यता को देखने और महसूस करने का |
हमारे पर्व -उत्सव और त्यौहार एक तरह से इसी मेधा को जगाने का कार्य करते हैं | सामाजिक और धार्मिक पर्व तो जीवन में उमंग और आनंद लाते ही है पर राष्ट्रीय पर्व तो उस उत्साह और उमंग को कईगुना बढा देते हैं | हम स्वतंत्रा दिवस न मनाएं क्यूंकि ये हमें गुलामी की याद दिलाता है ,तो ये तो एक सत्य है! गुलाम तो हम थे ही ,ये दिवस हमे और आने वाली सन्तति को हमेशा याद दिलाएगा उन संघर्षों की जो हमारे पूर्वजों ने किये और जिनकी कृपा से हम आज गर्व से कहते हैं कि हम भारतीय हैं , शहीदों के उन बलिदानों की जो भरीजवानी में ही हँसते -हँसते इस देश के लिए कुर्बान हो गये | और इस दिवस साल-दर साल धूमधाम से मानाने से ही ये यादे ताजा रहेंगी .देश भक्ति का जज्बा जागेगा आज की पीढ़ी में भी !बलिदानों की गाथा पढकर ,सुनकर और गा कर राष्ट्रीयता का जज्बा जगेगा | राष्ट्र से किसी भी प्रकार का द्रोह या भ्रष्ट्र आचरण
करने से स्वयं ही झिझक जायेगी आत्मा |
गणतन्त्र दिवस ! आज की पीढ़ी को यदि हम ये कहेंगे की आज इस दिवस की कोई प्रासंगिकता नहीं है ,और मनाने न मनाने का कोई अर्थ नहीं है तो ये एक राष्ट्र द्रोह से कम नहीं है | अरे आज के ही दिन तो हमें अपना संविधान मिला ,कुछ अधिकार -कुछ कर्तव्य | चंद लोगों ने अपनी अकर्मण्यता ,अक्षमता ,लालच और भ्रष्ट -आचरण को छिपाने के लिए और अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए यदि संविधान को बंधक बना दिया तो इससे इस दिवस की महत्ता नहीं घट जाती | लाल-बत्ती पे खड़े झंडे और गुब्बारे बेचते बच्चों के चेहरे की चमक में दिखाई देता है ये पर्व ,माना कि वे इस बात से अनजान हैं कि आज के दिन क्या हुआ था ,तो देश प्रेम के गाने चला के इन नन्हें बच्चों में ऊर्जा का संचार तो किया ही जा सकता है |
हमारी पीढ़ी ने कहाँ स्वतंत्रता के संघर्ष को देखा ,पर तब इन पर्वों को मानना किसी पूजा से कम नहीं होता था ,प्रभात फेरी --हाँ ये मुझे सबसे अच्छा पहलू लगता था राष्ट्रीय पर्वों का | सुबह सवेरे जोश भरे गीत गाते हुए सड़कों पे निकलना | कितना जोश होता था |दिन भर कही वाद विवाद प्रतियोगिता कहीं कविता पाठ ,कहीं संस्कृत में ,कहीं अंग्रेजी में ,खेल कूद ,रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम और इस सबके लिए एक पखवाड़े से ही तैयारियां ,सारा का सारा स्वतन्त्रता संग्राम मुख जबानी याद हो जाता था ,कवितायेँ ,गाने ,संविधान की जानकारी यूँ ही खेल खेल में मिल जातीथी |अब तो वो जोश ही नहीं है सब कुछ रस्म अदायगी हो गया है | पर अंदरखाने हम सब यही चाहते हैं कि राष्ट्रीय पर्व उसी पुराने जोशो -खरोश के साथ मनाये जाएँ | इससे राष्ट्रीयता की भावना में जो कमी आ गयी है उसमे इजाफा होना निश्चित है और साथ ही नयी पीढ़ी भी इन पर्वों से जुड़ाव महसूस करेगी | ये तो अनुभूत प्रयोग है कि, आज भी -मेरा रंग दे बसंती चोला ,या है प्रीत जहाँ की रीत सदा ,जैसे गाने सुन के आज भी छोटे बड़े सब के खून में जोश आजाता है |तो क्यूँ नहीं इस गणतन्त्र को अपने घरों में देश भक्ति के गीत खूब जोर शोर से बजाएं | ध्वनि - तरंगों से ही सब भ्रष्टाचारियों के दिल दहलने लगेंगे | मौक़ा भी है दस्तूर भी है |
सबको गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएं | आती बसंत में फिजायें देशभक्ति की सुगंध से सराबोर रहें और चहुँ ओर देश प्रेम और देश भक्ति की बयार चले जो अपने साथ राष्ट्रीय चरित्र का वाइरस ले केआयेंऔर दशों दिशाओं में फैला के देश से गद्दारी करने की भावना को ही करप्ट करके डिलीट करदे और देश के गद्दारों को उनकी सही जगह मिले | वन्देमातरम ! ....आभा ...
********************************
जमाने की हवा ही कुछ ऐसी हो चली है कि कोई भी पर्व हो धार्मिक ,सामाजिक या राष्ट्रीय ,आधुनिक ,तथाकथित बुद्धिजीवी और सुधारवादियों के झुण्ड (मैं उन्हें झुण्ड ही कहती हूँ जो लोग एक साथ मिल के अनर्गल प्रलाप करते हैं )के झुण्ड उसे न मनाने के तर्क रखने लगते हैं | अब गणतन्त्र दिवस पे भी बवाल मचा है | इस महापर्व को अप्रासंगिक बनाने का प्रयास --असुरक्षा और नकारात्मक सोच का ही परिचायक है |असल में हम अति महत्वाकांक्षी हो गये हैं | यदि हम अपने आस-पास के समाज में देखें कि जब अति महत्वाकांक्षा जब होती है तो क्या घटित होता है ? तब हम केवल अपने ही बारे में सोचते हैं ? अपने लक्ष्य को पाने के लिए क्रूर और लज्जा-विहीन आचरण करते हैं | अन्य व्यक्तियों को एक ओर ढकेल देते हैं ,क्यूंकि आपको अपनी राह बनानी होती है |क्या ये सृजन है ? क्या ये क्रांति है ? हम बड़ी चतुराई से शब्दों की व्याख्या करते है और धीरे धीरे अपनी मेधा को खो देते हैं | मेधा (intelligence ) क्या है यह ?क्या सिर्फ सफल होने या अपना अभीष्ट पा लेने से ही इन्सान मेधावी बनता है ! शायद नहीं | भोर की बेला में प्राची में अकेले नाचते हुए सिंदूरी भोर के ता रे को महसूस करना और पानी में उसके प्रकाश को देख के रोमांचित होना , पक्षियों कीचहचहाहट सुनना ,हवा में तिरती सुबह की धूप से उडती ओस के साथ बहती सुगंध को महसूस करना ,किसी छोटे बच्चे के आनंद में अनायास ही उसके साथ ताली बजाते हुए उछलना,कबूतर की गुटरगूं में उसके साथ सवाल जवाब करना या गिलहरी को फुदकते देख एक आत्मिक संतोष का मिलना ,ये छोटी -छोटी अनुभूतियाँ जब आपके अंदर उथल-पुथल मचाने लगती है ,तो जो अहसास आपके भीतर जगता है उसे मेधा यानी (intelligence ) कहते हैं| जिसके जग जाने से हम महत्वाकांक्षी तो होते है लेकिनहमारा संघर्ष .अधिक विचारपूर्ण ,समरस ,सरल विनम्र ,सृजनशील और अहंकार के परे हो जाता है |तब हम सर्वहारा के लिए जीते है ,अधिक प्रेम पूर्ण और आत्मविश्वासी हो जाते हैं | पर आज अधिकांश लोगों के पास समय ही नहीं प्रकृति की इस दिव्यता को देखने और महसूस करने का |
हमारे पर्व -उत्सव और त्यौहार एक तरह से इसी मेधा को जगाने का कार्य करते हैं | सामाजिक और धार्मिक पर्व तो जीवन में उमंग और आनंद लाते ही है पर राष्ट्रीय पर्व तो उस उत्साह और उमंग को कईगुना बढा देते हैं | हम स्वतंत्रा दिवस न मनाएं क्यूंकि ये हमें गुलामी की याद दिलाता है ,तो ये तो एक सत्य है! गुलाम तो हम थे ही ,ये दिवस हमे और आने वाली सन्तति को हमेशा याद दिलाएगा उन संघर्षों की जो हमारे पूर्वजों ने किये और जिनकी कृपा से हम आज गर्व से कहते हैं कि हम भारतीय हैं , शहीदों के उन बलिदानों की जो भरीजवानी में ही हँसते -हँसते इस देश के लिए कुर्बान हो गये | और इस दिवस साल-दर साल धूमधाम से मानाने से ही ये यादे ताजा रहेंगी .देश भक्ति का जज्बा जागेगा आज की पीढ़ी में भी !बलिदानों की गाथा पढकर ,सुनकर और गा कर राष्ट्रीयता का जज्बा जगेगा | राष्ट्र से किसी भी प्रकार का द्रोह या भ्रष्ट्र आचरण
करने से स्वयं ही झिझक जायेगी आत्मा |
गणतन्त्र दिवस ! आज की पीढ़ी को यदि हम ये कहेंगे की आज इस दिवस की कोई प्रासंगिकता नहीं है ,और मनाने न मनाने का कोई अर्थ नहीं है तो ये एक राष्ट्र द्रोह से कम नहीं है | अरे आज के ही दिन तो हमें अपना संविधान मिला ,कुछ अधिकार -कुछ कर्तव्य | चंद लोगों ने अपनी अकर्मण्यता ,अक्षमता ,लालच और भ्रष्ट -आचरण को छिपाने के लिए और अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए यदि संविधान को बंधक बना दिया तो इससे इस दिवस की महत्ता नहीं घट जाती | लाल-बत्ती पे खड़े झंडे और गुब्बारे बेचते बच्चों के चेहरे की चमक में दिखाई देता है ये पर्व ,माना कि वे इस बात से अनजान हैं कि आज के दिन क्या हुआ था ,तो देश प्रेम के गाने चला के इन नन्हें बच्चों में ऊर्जा का संचार तो किया ही जा सकता है |
हमारी पीढ़ी ने कहाँ स्वतंत्रता के संघर्ष को देखा ,पर तब इन पर्वों को मानना किसी पूजा से कम नहीं होता था ,प्रभात फेरी --हाँ ये मुझे सबसे अच्छा पहलू लगता था राष्ट्रीय पर्वों का | सुबह सवेरे जोश भरे गीत गाते हुए सड़कों पे निकलना | कितना जोश होता था |दिन भर कही वाद विवाद प्रतियोगिता कहीं कविता पाठ ,कहीं संस्कृत में ,कहीं अंग्रेजी में ,खेल कूद ,रात्रि में सांस्कृतिक कार्यक्रम और इस सबके लिए एक पखवाड़े से ही तैयारियां ,सारा का सारा स्वतन्त्रता संग्राम मुख जबानी याद हो जाता था ,कवितायेँ ,गाने ,संविधान की जानकारी यूँ ही खेल खेल में मिल जातीथी |अब तो वो जोश ही नहीं है सब कुछ रस्म अदायगी हो गया है | पर अंदरखाने हम सब यही चाहते हैं कि राष्ट्रीय पर्व उसी पुराने जोशो -खरोश के साथ मनाये जाएँ | इससे राष्ट्रीयता की भावना में जो कमी आ गयी है उसमे इजाफा होना निश्चित है और साथ ही नयी पीढ़ी भी इन पर्वों से जुड़ाव महसूस करेगी | ये तो अनुभूत प्रयोग है कि, आज भी -मेरा रंग दे बसंती चोला ,या है प्रीत जहाँ की रीत सदा ,जैसे गाने सुन के आज भी छोटे बड़े सब के खून में जोश आजाता है |तो क्यूँ नहीं इस गणतन्त्र को अपने घरों में देश भक्ति के गीत खूब जोर शोर से बजाएं | ध्वनि - तरंगों से ही सब भ्रष्टाचारियों के दिल दहलने लगेंगे | मौक़ा भी है दस्तूर भी है |
सबको गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएं | आती बसंत में फिजायें देशभक्ति की सुगंध से सराबोर रहें और चहुँ ओर देश प्रेम और देश भक्ति की बयार चले जो अपने साथ राष्ट्रीय चरित्र का वाइरस ले केआयेंऔर दशों दिशाओं में फैला के देश से गद्दारी करने की भावना को ही करप्ट करके डिलीट करदे और देश के गद्दारों को उनकी सही जगह मिले | वन्देमातरम ! ....आभा ...
No comments:
Post a Comment