Monday, 22 February 2016

आवेगी एक बला तेरे सर कि सुन ऐ सबा ,
जुल्फे -सियह का उसके अगर तार जाएगा --
--- अब समय बदल गया है। अब तो बाजार हावी है घर आंगन की फिजाओं में। जुल्फ वालों की क्या औकात क़ि कोई उनकी वजह से परेशान हो ,अब तो रात दिन के मैसेज ,SMS ,ई मेल्स ,ने ले ली है ज़िम्मेदारी सभी को बौरा देने की ,क्या पता आम भी अब इन्ही से परमीशन लेके बौराता हो grin emoticon ।
जन्मदिन को आप याद रखना चाहें या नही ,मनाने का इरादा हो या नही पर बाजार आपको एक पखवाड़े पहले से ही याद दिलाना शुरू कर देता है। Happy birthday in advance --और दे दमादम फ़ोन ,मैसेज ,SMS ,ई मेल --सब जगह ऑफर --वो भी स्पेशल ,जन्मदिन की छूट के साथ -- गहनों से लेकर इलेक्ट्रोनिक तक ,एक बैडरूम से लेकर तीन बैडरूम फ्लैट तक ,जिस भी दुकान ,मॉल में कभी घुसी होउंगी या जिस भी होटल में खाना खाया होगा ,सभी मेहरबान हैं ,कद्रदान बन के बुला रहे है --भाई आ जाओ --क्या पता फिर ये समा कल हो न हो
मानो कह रहे हों --
''गर्चे कब देखते हो पर देखो
आरज़ू है कि तुम इधर देखो '' ---
अरे ना मुरादों --खरीददारी किसे बुरी लगती है ,पर पल्ले नावा भी तो हो ,केवल गिफ़ट -के लिये बुलाओ तो शायद हमारे दीदार भी हो जाएँ। वरना तो अब हम खुद में ही खोये रहते है ,बाजार लुभाता नही है हमे --
''स्वर्ग को भी आँख उठा देखते नही
किस दर्ज़े सिरे चश्मे हैं हमारी उमर के लोग --[दर्जे-सीरे -चश्म = संतुष्ट ]
--- अव्वल तो मैं सनद हूँ फिर ये मेरी जुबां भी है --परेशान होना मेरी फितरत में है नही ,लालच नही रहा जवानी में भी कभी ,अब रंग उड़ गया तो तुम कसीदा पढोगे -जी बाजार की भी अपनी एक चाल होती है --कितनी काल ब्लॉक करें --दिन भर फिर भी आती ही है --जन्मदिन का आना न हुआ ये तो पैदा होने के वक्त से भी बड़ी मुसीबत हो गयी --वैसे भी बाजार महाशय हम तो अब बुढ़ायेंगे ही --पर तुम्हें क्या ,बेचो-बेचो और इतने सारे कॉल्स के बाद उस दिन एक फूल भी नही भेजोगे ---
-- इस बाजारवाद से त्रस्त होने पे मन के उदगार रेख्ते बन गये --दिन में दसियों बार दसियों तरीके से याद दिलाता है ये बाजार ---चल उठ कि कुछ खरीददारी करने चलें तू कुछ दिनों में ही पैदा होने वाली है। उफ़ ये तो धरती में पदार्पण से भी बड़ी चक्कल्ल्स हो गयी ---क्या करें --
''हस्ती अपनी हुबाब की सी है ,
यह नुमाइश सुराब की सी है ''-----हुबाब =बुलबुला ,,,सुराब -मृगतृष्णा।
----और ये बाजार है कि ---
मुस्कुरा करके मेरी हालत पे दिल जलाने की बात करता है -
इश्क के इन्तहां पे आकर ,बीते दिनों में लौट जानेकि बात करता है। --------बाजार से परेशान आत्मा की व्यथा - wink emoticon

Monday, 15 February 2016

                ------पर्दे के पीछे से ----
      [बैठे -ठाले की बकवास ,अक्षरों की उछल-कूद ]
===============================================    खुले दरवाजे से आती तेज हवा
कांपते पर्दे।
पर्दे  झूमने पे
 टूटती बनती
खुले आसमान में
उड़ते परिंदों की पांत ,
पर्दे के उस पार की -
झक सफ़ेद धूप का
टूटती बिखरती किरनों संग ,
पर्दों के सायों से रंग लेकर
सूने कमरे रंगने ,
रोज नियत समय पे आना।
आसमान में उड़ते जहाज की  गड़गड़ाहट ,
नीचे जीवन की उलझन-सुलझन
से परे --
खेलते बच्चों का कोलाहल ,
जीवन का संगीत ही है ,
बिना मात्रा की सरगम जैसा
पक्षियों की चहचहाहट -
पेड़ के पत्तों की सरसराहट संग  
षड्ज -ऋषभ -गांधार
मध्यम पंचम धैवत निषाद
संगीत ही है जीवन
पर्दे के इस पार भी -
उस पार भी।
बूढ़े पीपल पे
अनेकों पक्षियों का कलरव
बंदरों की उछलकूद ,
नए पुराने पत्तों संग -
 टिमटिमाते सफ़ेद तारों जैसे
फूलों वाले नीम पे
वो लाल चोंच वाला
 हीरामन सुग्गे का जोड़ा
और बस
यूँ ही मेरे मन में भी ,
अक्षरों की उछलकूद
बाहर आने को व्याकुल अक्षर
ज्यूँ मछलियाँ -
सागर की   सतह पे -
सांस लेने को आएं।
झुण्ड के झुण्ड अक्षरों के ,
अस्तित्व खो के -
शब्द बनने को व्याकुल ,
व्यष्टि से समष्टि की ओर।
पर ----
व्यष्टि की अपनी रौनक
आलाप की लय में
विलम्बित स्वरों का राग
मानो जीवन की कहानी कहना
वो कहानी --जो --
पर्दे के पीछे है
बाहर से भी पर्दे के पीछे,
भीतर से भी पर्दे के पीछे।
मन के खालीपन को भरता ,
अक्षरों का ये कुनबा ,
भानमती का पिटारा ,
पर्दे के बाहर भी भीतर भी ,
इन्हें पढ़ना ,
इन्हें शाल बना के ओढ़ लेना ,
रेशमी अक्षरों की छुवन ,
मन में खिलता
जीवन का बसंत ,
पर्दे के पीछे
भीतर बाहर। ----











Sunday, 14 February 2016

                                  प्रीत की रीत 
        सुनो ,पता है मुझे  ;
मेरी आवाजें भी नही पहुंचती हैं तुम तक !
अहसास तुम क्या समझोगे ?
पर --
इन लौट आये खतों का 
'मोल ' चुका के ,
इन्हें पाया है मैंने -
कभी थे तुम मेरे -
जीने को ये अहसास ही काफी है --
कोशिस करोगे तो सुन पाओगे ,तुम भी। आभा। 

Monday, 8 February 2016

                         ''अभिलाषा ''
                         =========
दूर क्षितिज में
सागर के अंक में समाता सूरज
सारे अपने रंग दे जाता है हमें
कल फिर आऊंगा के वादे के साथ
सुनो ! उस अमावस की सुनहरी
उषा में तुम भी तो चले गए
देके  मुझे अपने सारे रंग
पर वादा फिर मिलने का ;
कहां करता है सूरज भी ?
वो तो हम ही कर लेते हैं कल्पना '
 तुमने भी !
लौट आने की तो कोई बात न की थी
      जाते वक्त '
फिर भी आंसुओं को क्यों है
 तुम्हारे ! लौट आने की उम्मीद
भीतर अँधियारा घना
तपती साँसें कर देती हैं मुझे , गर्म हवा सा हल्का --
फिर क्यूँ ! क्यूँ  ? है मन पत्थर सा भारी
अमावस ,मौनी हो या सोमवती
मेरे लिये ,सुबह से ही काली
शिशिर ही रहता है तन -मन में अब तो
झरते पातों की भी कोई कीमत है भला
पतझड़ में बसंत की तलाश
सूखे पत्तों का दूर तक उड़ जाना
मिल माटी में ,क्यारी को उपजाऊ करना
दिखाई तो  दिया है ! शिशिर के उस पार ' बसंत ,
अपने लिये नही  ,  किसी और के लिये
शायद किसी की मुस्कुराहट में ही मिल जाओ तुम
जाओ बड़े वो हो ,अब न बोलूंगी तुमसे
 सुनो !
वादा तो नही था पर --
आ सको , तो -लौट के आना --
पतझर के उस पार -
न जाने क्यूँ  ; आंसुओं को है
तुम्हारा इन्तजार
सागर के अंक में समाते सूर्य के रंगों के साथ
मैं ------
लिये खड़ी हूँ तुम्हारे सारे रंगों को अपने आँचल में --
आओ तो बिखेर दूँ
चरणों में फिर एक बार ---
वादा तो नही था पर ; सुनो !
आ सको तो आ जाना।।आभा।। 

Friday, 5 February 2016

-''-सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला। मैं कछु करबि रुचिर नर लीला।। तुम पावक महुँ करहुँ निवासा। जौ लगि करौं निसाचर नासा।।''
=========================
रामायण आदि काव्य है --नारद मुनि ने वाल्मीकि को राम कथा सुनाई।  सुनने के बाद क्रौंच पक्षी के घायल होने व् तड़प  के जान गंवा देने की करुण घटना देखी और  वो करुणा  श्लोक बन के वाल्मीकि के मन में उत्तर आई। ठीक वैसे ही जैसे हमें सोचते सोचते अचानक किसी प्रश्न का उत्तर मिल जाए। बस यहीं से रामायण लिखना शुरू हुआ और वेद वेदान्त के बाद सबसे पहला इतिहास लिखा गया --जो स्वयं आदिपुरुष परमब्रह्म ''राम ''के अवतरण और उनके राज्य और प्रजा की कहानी है।
वेद ऋषियों को ब्रह्म की उपाधि दी गयी है।  श्रुति ,जिसमे वेद आते हैं ,वेदांग ,अरण्यक ब्राह्मण ,उपनिषद ,स्मृति --पुराण ,उपपुराण ,संहिता सूत्र --कितने ही ग्रन्थ ,उनके उप -ग्रन्थ और फिर मीमांसा।
हम आम जन के लिये तो वाल्मीकि रामायण आदिकाव्य और महाभारत महा पुराण।
नारद मुनि ने वाल्मीकि ऋषि को उनके पूछने पर रामकथा का ज्ञान दिया। और वाल्मीकि के मन में क्रौंच पक्षी के घायल होकर तड़पने और गिर के मरने तथा क्रौञ्चनी के विह्वल आर्तनाद से उतपन्न हुई करुणा --वाल्मीकि रामायण के रूप में हमे मिली। ऐसे ही व्यास मुनि को भी महर्षि नारद ने ही महाभारत की कथा सुनाई और व्यास ने   कई पुराणो की  रचना कर डाली।  व्यास ने कई पुराणों में ये लिखा है कि उन्होंने रामायण का विशद अध्ययन किया और उससे ही पुराणों की रचना की ----
---  पर आज विषय यह नही --आज तो सीता हरण का विषय।
----  जिसे हम रामचरित मानस में पढ़ते हैं की राम जी ने सिया को अग्नि देव को सौंप दिया और युद्ध के पश्चात उन्हें अग्निपरीक्षा के रूप में वापिस लिया।
तुलसीदासजी ने केवल दो चौपाई में ही इसका वर्णन किया है -- अग्नि परीक्षा में सीता का अग्नि देव के साथ आना लिखा है --सो वहां पे अग्नि परीक्षा का भ्रम रखा गया।और  इसे राम की पुरुषात्मक सोच भी कह दिया जाता है।
वाल्मीकि रामायण में इस घटना का कहीं उल्लेख नही  है।
पर मुझे ये तथ्य कि वाल्मीकि रामायण से कुछ श्लोक लुप्त हैं और कुछ क्षेपक है मान्य है।
महर्षि वेद व्यास ने वाल्मीकि रामायण से ही कथा पढ़ी और फिर उसे कई पुराणों में लिखा। अब श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण में सीता हरण के पहले  दृश्य कैसे वर्णित है ये पढ़ने पे कथन कि वाल्मीकि रामायण से कुछ श्लोक लुप्त हैं ,सिद्ध होता है --और बाबा तुलसी ने भी इस अग्नि परीक्षा को यहीं से पढ़के ही लिखा था --मनगढ़ंत नही ---
श्री राम जब समुद्र के समीप लक्ष्मण के साथ रह रहे हैं तो  एक दिन वे  विप्र रूप धारी अग्नि देव से मिलते है। वेदों में अग्नि को ही परमात्मा कहा  गया है ,वो ही सबसे बड़ा वैज्ञानिक ,दार्शनिक ,चिकित्सक और राजा है। श्रीराम को देख अग्नि देव दुखित हुये और से बोले ---
''  तस्थौ समुद्रनिकटे सीतया लक्ष्मणेन च।
 ददर्श तत्र वह्निं च विप्ररूपधरं हरि: ॥ ''
''रामं च दुःखितं दृष्टवा स च दुःखी बभूव ह।
उवाच किंचित्सत्येष्टं सत्यं सत्यपरायण: ॥ ''
''भगवंछूयतां राम कालोSयं यदुपस्थित:।
सीताहरणकालोSयं तवैव समुपस्थित: ॥ ''
''दैवं च दुर्निवार्यं च न च दैवात्परो बली।
जगत्प्रसूं मयि न्यस्य छायां रक्षान्तिकेSधुना।। ''
''दस्यामि सीतां तुभ्यं च परीक्षा समये पुन: ।
देवै: प्रस्थापितोSहं च न च विप्रो हुताशन: ''॥
------  अग्नि देव बोले --हे भगवन श्री राम सुनिये ! ये जो काल [समय ] आपके समक्ष उतपन्न हुआ है ,वह सीता हरण के समय के रूप में ही आया हुआ है। दैव का प्रतिकार अत्यंत कठिन है ,दैव बलवान होता है पर हम उपाय तो  कर ही  सकते हैं। अत:आप जगद्जननी सीता को  अग्नि देश में स्थापित करके छाया मयि सीता को रख लीजिये। परीक्षा के समय मैं इन्हें आपको सौंप दूंगा। मैं ब्राह्मण नही ,देवताओं के द्वारा इसी कार्य के लिये भेजा गया साक्षात अग्नि देव हूँ।
---- '' रामस्तद्वचं श्रुत्वा न प्रकाश्य च लक्ष्मणम्।
----स्वीकारं वचसश्चक्रे हृदयेन विदुयता।। ''
----श्री राम ने अग्नि देव की यह बात दुखी हृदय से मान ली और लक्ष्मण को भी नहीं बताया।
''वह्निर्योगेन सीताया माया सीतां चकार ह।
तत्तुल्यगुणसर्वाङ्गा ददौ रामाय नारद।। ''
'' सीतां गृहीत्वा स ययौ गोप्यं वक्तुं निषिध्य च ''
---हे नारद ,तब अग्नि देव ने योग करके एक छाया सीता बनाई जो हर तरह से सीता से ही मिलती जुलती थी ,और उसे राम को सौंप सीता को  बात गुप्त रखने का निर्देश दे ,अपने साथ ले गए --यहां तक कि ये बात लक्ष्मण को भी अग्नि परीक्षा के बाद ही बताई गयी। ----
-----   अब प्रश्न ये उठता है कि अग्नि परीक्षा के बाद छाया सीता का क्या हुआ --जब अग्नि परीक्षा के बाद अग्निदेव ने छाया सीता राम को सौंप दी ,तो छाया सीता बोली --
'' उवाच छाया सीता वह्निं च रामं च विन्यान्विता।
करिष्यामीति किमहं तदुपायं वदस्व में।।''
---  तब छाया मयी सीता ने श्री राम और अग्निदेव से विनय पूर्वक पूछा --अब मैं क्या करूँ मुझे वो उपाय बताइये।
---तब अग्नि देव और समस्त देवताओं ने उन्हें स्वर्गलक्ष्मी के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया --और कालांतर में यही देवी राजा द्रुपद की कन्या के रूप में यज्ञ से उतपन्न हुई द्रौपदी के नाम से प्रसिद्ध हुई ,जो छाया सीता के होने के कारण नारायण [कृष्ण ]की सखी भी थीं।
--क्या सचमुच में त्रेता युग में ऋषि मुनि ,देवता ,वैज्ञानिकइतने सक्षम  थे और विज्ञान इतना उन्नत था , आज जो हम  टिश्यू कल्चर से अभी केवल त्वचा बनाने तक ही पहुंच पाये हैं तब हम इंसान भी बना लेते थे --क्या ये रोबोट का परिष्कृत रूप था --क्यूंकि द्रौपदी की उत्पत्ति और उसका पूरा जीवन भी एक मशीनी जीवन ही लगता है --साथ ही इतने आयुध ,विमान , समय की गति से भी तेज चलने वाले विमान - आकाशवाणियां ,दिव्य दृष्टि --निश्चय ही हमारे ग्रंथों से छेड़-छाड़ हुई है ----- इतने वर्षों की गुलामी का ये सबसे बड़ा अभिशाप है जो भारत झेल रहा है।
सीताजी को अग्नि परीक्षा नही देनी पड़ी थी ,युद्ध की आशंका से उन्हें सुरक्षित स्थान भेज दिया गया था ----ग्रंथों को पढ़ने और समझने की  आवश्यकता है।। आभा ॥