''अभिलाषा ''
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दूर क्षितिज में
सागर के अंक में समाता सूरज
सारे अपने रंग दे जाता है हमें
कल फिर आऊंगा के वादे के साथ
सुनो ! उस अमावस की सुनहरी
उषा में तुम भी तो चले गए
देके मुझे अपने सारे रंग
पर वादा फिर मिलने का ;
कहां करता है सूरज भी ?
वो तो हम ही कर लेते हैं कल्पना '
तुमने भी !
लौट आने की तो कोई बात न की थी
जाते वक्त '
फिर भी आंसुओं को क्यों है
तुम्हारे ! लौट आने की उम्मीद
भीतर अँधियारा घना
तपती साँसें कर देती हैं मुझे , गर्म हवा सा हल्का --
फिर क्यूँ ! क्यूँ ? है मन पत्थर सा भारी
अमावस ,मौनी हो या सोमवती
मेरे लिये ,सुबह से ही काली
शिशिर ही रहता है तन -मन में अब तो
झरते पातों की भी कोई कीमत है भला
पतझड़ में बसंत की तलाश
सूखे पत्तों का दूर तक उड़ जाना
मिल माटी में ,क्यारी को उपजाऊ करना
दिखाई तो दिया है ! शिशिर के उस पार ' बसंत ,
अपने लिये नही , किसी और के लिये
शायद किसी की मुस्कुराहट में ही मिल जाओ तुम
जाओ बड़े वो हो ,अब न बोलूंगी तुमसे
सुनो !
वादा तो नही था पर --
आ सको , तो -लौट के आना --
पतझर के उस पार -
न जाने क्यूँ ; आंसुओं को है
तुम्हारा इन्तजार
सागर के अंक में समाते सूर्य के रंगों के साथ
मैं ------
लिये खड़ी हूँ तुम्हारे सारे रंगों को अपने आँचल में --
आओ तो बिखेर दूँ
चरणों में फिर एक बार ---
वादा तो नही था पर ; सुनो !
आ सको तो आ जाना।।आभा।।
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दूर क्षितिज में
सागर के अंक में समाता सूरज
सारे अपने रंग दे जाता है हमें
कल फिर आऊंगा के वादे के साथ
सुनो ! उस अमावस की सुनहरी
उषा में तुम भी तो चले गए
देके मुझे अपने सारे रंग
पर वादा फिर मिलने का ;
कहां करता है सूरज भी ?
वो तो हम ही कर लेते हैं कल्पना '
तुमने भी !
लौट आने की तो कोई बात न की थी
जाते वक्त '
फिर भी आंसुओं को क्यों है
तुम्हारे ! लौट आने की उम्मीद
भीतर अँधियारा घना
तपती साँसें कर देती हैं मुझे , गर्म हवा सा हल्का --
फिर क्यूँ ! क्यूँ ? है मन पत्थर सा भारी
अमावस ,मौनी हो या सोमवती
मेरे लिये ,सुबह से ही काली
शिशिर ही रहता है तन -मन में अब तो
झरते पातों की भी कोई कीमत है भला
पतझड़ में बसंत की तलाश
सूखे पत्तों का दूर तक उड़ जाना
मिल माटी में ,क्यारी को उपजाऊ करना
दिखाई तो दिया है ! शिशिर के उस पार ' बसंत ,
अपने लिये नही , किसी और के लिये
शायद किसी की मुस्कुराहट में ही मिल जाओ तुम
जाओ बड़े वो हो ,अब न बोलूंगी तुमसे
सुनो !
वादा तो नही था पर --
आ सको , तो -लौट के आना --
पतझर के उस पार -
न जाने क्यूँ ; आंसुओं को है
तुम्हारा इन्तजार
सागर के अंक में समाते सूर्य के रंगों के साथ
मैं ------
लिये खड़ी हूँ तुम्हारे सारे रंगों को अपने आँचल में --
आओ तो बिखेर दूँ
चरणों में फिर एक बार ---
वादा तो नही था पर ; सुनो !
आ सको तो आ जाना।।आभा।।
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