-''-सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला। मैं कछु करबि रुचिर नर लीला।। तुम पावक महुँ करहुँ निवासा। जौ लगि करौं निसाचर नासा।।''
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रामायण आदि काव्य है --नारद मुनि ने वाल्मीकि को राम कथा सुनाई। सुनने के बाद क्रौंच पक्षी के घायल होने व् तड़प के जान गंवा देने की करुण घटना देखी और वो करुणा श्लोक बन के वाल्मीकि के मन में उत्तर आई। ठीक वैसे ही जैसे हमें सोचते सोचते अचानक किसी प्रश्न का उत्तर मिल जाए। बस यहीं से रामायण लिखना शुरू हुआ और वेद वेदान्त के बाद सबसे पहला इतिहास लिखा गया --जो स्वयं आदिपुरुष परमब्रह्म ''राम ''के अवतरण और उनके राज्य और प्रजा की कहानी है।
वेद ऋषियों को ब्रह्म की उपाधि दी गयी है। श्रुति ,जिसमे वेद आते हैं ,वेदांग ,अरण्यक ब्राह्मण ,उपनिषद ,स्मृति --पुराण ,उपपुराण ,संहिता सूत्र --कितने ही ग्रन्थ ,उनके उप -ग्रन्थ और फिर मीमांसा।
हम आम जन के लिये तो वाल्मीकि रामायण आदिकाव्य और महाभारत महा पुराण।
नारद मुनि ने वाल्मीकि ऋषि को उनके पूछने पर रामकथा का ज्ञान दिया। और वाल्मीकि के मन में क्रौंच पक्षी के घायल होकर तड़पने और गिर के मरने तथा क्रौञ्चनी के विह्वल आर्तनाद से उतपन्न हुई करुणा --वाल्मीकि रामायण के रूप में हमे मिली। ऐसे ही व्यास मुनि को भी महर्षि नारद ने ही महाभारत की कथा सुनाई और व्यास ने कई पुराणो की रचना कर डाली। व्यास ने कई पुराणों में ये लिखा है कि उन्होंने रामायण का विशद अध्ययन किया और उससे ही पुराणों की रचना की ----
--- पर आज विषय यह नही --आज तो सीता हरण का विषय।
---- जिसे हम रामचरित मानस में पढ़ते हैं की राम जी ने सिया को अग्नि देव को सौंप दिया और युद्ध के पश्चात उन्हें अग्निपरीक्षा के रूप में वापिस लिया।
तुलसीदासजी ने केवल दो चौपाई में ही इसका वर्णन किया है -- अग्नि परीक्षा में सीता का अग्नि देव के साथ आना लिखा है --सो वहां पे अग्नि परीक्षा का भ्रम रखा गया।और इसे राम की पुरुषात्मक सोच भी कह दिया जाता है।
वाल्मीकि रामायण में इस घटना का कहीं उल्लेख नही है।
पर मुझे ये तथ्य कि वाल्मीकि रामायण से कुछ श्लोक लुप्त हैं और कुछ क्षेपक है मान्य है।
महर्षि वेद व्यास ने वाल्मीकि रामायण से ही कथा पढ़ी और फिर उसे कई पुराणों में लिखा। अब श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण में सीता हरण के पहले दृश्य कैसे वर्णित है ये पढ़ने पे कथन कि वाल्मीकि रामायण से कुछ श्लोक लुप्त हैं ,सिद्ध होता है --और बाबा तुलसी ने भी इस अग्नि परीक्षा को यहीं से पढ़के ही लिखा था --मनगढ़ंत नही ---
श्री राम जब समुद्र के समीप लक्ष्मण के साथ रह रहे हैं तो एक दिन वे विप्र रूप धारी अग्नि देव से मिलते है। वेदों में अग्नि को ही परमात्मा कहा गया है ,वो ही सबसे बड़ा वैज्ञानिक ,दार्शनिक ,चिकित्सक और राजा है। श्रीराम को देख अग्नि देव दुखित हुये और से बोले ---
'' तस्थौ समुद्रनिकटे सीतया लक्ष्मणेन च।
ददर्श तत्र वह्निं च विप्ररूपधरं हरि: ॥ ''
''रामं च दुःखितं दृष्टवा स च दुःखी बभूव ह।
उवाच किंचित्सत्येष्टं सत्यं सत्यपरायण: ॥ ''
''भगवंछूयतां राम कालोSयं यदुपस्थित:।
सीताहरणकालोSयं तवैव समुपस्थित: ॥ ''
''दैवं च दुर्निवार्यं च न च दैवात्परो बली।
जगत्प्रसूं मयि न्यस्य छायां रक्षान्तिकेSधुना।। ''
''दस्यामि सीतां तुभ्यं च परीक्षा समये पुन: ।
देवै: प्रस्थापितोSहं च न च विप्रो हुताशन: ''॥
------ अग्नि देव बोले --हे भगवन श्री राम सुनिये ! ये जो काल [समय ] आपके समक्ष उतपन्न हुआ है ,वह सीता हरण के समय के रूप में ही आया हुआ है। दैव का प्रतिकार अत्यंत कठिन है ,दैव बलवान होता है पर हम उपाय तो कर ही सकते हैं। अत:आप जगद्जननी सीता को अग्नि देश में स्थापित करके छाया मयि सीता को रख लीजिये। परीक्षा के समय मैं इन्हें आपको सौंप दूंगा। मैं ब्राह्मण नही ,देवताओं के द्वारा इसी कार्य के लिये भेजा गया साक्षात अग्नि देव हूँ।
---- '' रामस्तद्वचं श्रुत्वा न प्रकाश्य च लक्ष्मणम्।
----स्वीकारं वचसश्चक्रे हृदयेन विदुयता।। ''
----श्री राम ने अग्नि देव की यह बात दुखी हृदय से मान ली और लक्ष्मण को भी नहीं बताया।
''वह्निर्योगेन सीताया माया सीतां चकार ह।
तत्तुल्यगुणसर्वाङ्गा ददौ रामाय नारद।। ''
'' सीतां गृहीत्वा स ययौ गोप्यं वक्तुं निषिध्य च ''
---हे नारद ,तब अग्नि देव ने योग करके एक छाया सीता बनाई जो हर तरह से सीता से ही मिलती जुलती थी ,और उसे राम को सौंप सीता को बात गुप्त रखने का निर्देश दे ,अपने साथ ले गए --यहां तक कि ये बात लक्ष्मण को भी अग्नि परीक्षा के बाद ही बताई गयी। ----
----- अब प्रश्न ये उठता है कि अग्नि परीक्षा के बाद छाया सीता का क्या हुआ --जब अग्नि परीक्षा के बाद अग्निदेव ने छाया सीता राम को सौंप दी ,तो छाया सीता बोली --
'' उवाच छाया सीता वह्निं च रामं च विन्यान्विता।
करिष्यामीति किमहं तदुपायं वदस्व में।।''
--- तब छाया मयी सीता ने श्री राम और अग्निदेव से विनय पूर्वक पूछा --अब मैं क्या करूँ मुझे वो उपाय बताइये।
---तब अग्नि देव और समस्त देवताओं ने उन्हें स्वर्गलक्ष्मी के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया --और कालांतर में यही देवी राजा द्रुपद की कन्या के रूप में यज्ञ से उतपन्न हुई द्रौपदी के नाम से प्रसिद्ध हुई ,जो छाया सीता के होने के कारण नारायण [कृष्ण ]की सखी भी थीं।
--क्या सचमुच में त्रेता युग में ऋषि मुनि ,देवता ,वैज्ञानिकइतने सक्षम थे और विज्ञान इतना उन्नत था , आज जो हम टिश्यू कल्चर से अभी केवल त्वचा बनाने तक ही पहुंच पाये हैं तब हम इंसान भी बना लेते थे --क्या ये रोबोट का परिष्कृत रूप था --क्यूंकि द्रौपदी की उत्पत्ति और उसका पूरा जीवन भी एक मशीनी जीवन ही लगता है --साथ ही इतने आयुध ,विमान , समय की गति से भी तेज चलने वाले विमान - आकाशवाणियां ,दिव्य दृष्टि --निश्चय ही हमारे ग्रंथों से छेड़-छाड़ हुई है ----- इतने वर्षों की गुलामी का ये सबसे बड़ा अभिशाप है जो भारत झेल रहा है।
सीताजी को अग्नि परीक्षा नही देनी पड़ी थी ,युद्ध की आशंका से उन्हें सुरक्षित स्थान भेज दिया गया था ----ग्रंथों को पढ़ने और समझने की आवश्यकता है।। आभा ॥
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रामायण आदि काव्य है --नारद मुनि ने वाल्मीकि को राम कथा सुनाई। सुनने के बाद क्रौंच पक्षी के घायल होने व् तड़प के जान गंवा देने की करुण घटना देखी और वो करुणा श्लोक बन के वाल्मीकि के मन में उत्तर आई। ठीक वैसे ही जैसे हमें सोचते सोचते अचानक किसी प्रश्न का उत्तर मिल जाए। बस यहीं से रामायण लिखना शुरू हुआ और वेद वेदान्त के बाद सबसे पहला इतिहास लिखा गया --जो स्वयं आदिपुरुष परमब्रह्म ''राम ''के अवतरण और उनके राज्य और प्रजा की कहानी है।
वेद ऋषियों को ब्रह्म की उपाधि दी गयी है। श्रुति ,जिसमे वेद आते हैं ,वेदांग ,अरण्यक ब्राह्मण ,उपनिषद ,स्मृति --पुराण ,उपपुराण ,संहिता सूत्र --कितने ही ग्रन्थ ,उनके उप -ग्रन्थ और फिर मीमांसा।
हम आम जन के लिये तो वाल्मीकि रामायण आदिकाव्य और महाभारत महा पुराण।
नारद मुनि ने वाल्मीकि ऋषि को उनके पूछने पर रामकथा का ज्ञान दिया। और वाल्मीकि के मन में क्रौंच पक्षी के घायल होकर तड़पने और गिर के मरने तथा क्रौञ्चनी के विह्वल आर्तनाद से उतपन्न हुई करुणा --वाल्मीकि रामायण के रूप में हमे मिली। ऐसे ही व्यास मुनि को भी महर्षि नारद ने ही महाभारत की कथा सुनाई और व्यास ने कई पुराणो की रचना कर डाली। व्यास ने कई पुराणों में ये लिखा है कि उन्होंने रामायण का विशद अध्ययन किया और उससे ही पुराणों की रचना की ----
--- पर आज विषय यह नही --आज तो सीता हरण का विषय।
---- जिसे हम रामचरित मानस में पढ़ते हैं की राम जी ने सिया को अग्नि देव को सौंप दिया और युद्ध के पश्चात उन्हें अग्निपरीक्षा के रूप में वापिस लिया।
तुलसीदासजी ने केवल दो चौपाई में ही इसका वर्णन किया है -- अग्नि परीक्षा में सीता का अग्नि देव के साथ आना लिखा है --सो वहां पे अग्नि परीक्षा का भ्रम रखा गया।और इसे राम की पुरुषात्मक सोच भी कह दिया जाता है।
वाल्मीकि रामायण में इस घटना का कहीं उल्लेख नही है।
पर मुझे ये तथ्य कि वाल्मीकि रामायण से कुछ श्लोक लुप्त हैं और कुछ क्षेपक है मान्य है।
महर्षि वेद व्यास ने वाल्मीकि रामायण से ही कथा पढ़ी और फिर उसे कई पुराणों में लिखा। अब श्रीमद्देवीभागवतमहापुराण में सीता हरण के पहले दृश्य कैसे वर्णित है ये पढ़ने पे कथन कि वाल्मीकि रामायण से कुछ श्लोक लुप्त हैं ,सिद्ध होता है --और बाबा तुलसी ने भी इस अग्नि परीक्षा को यहीं से पढ़के ही लिखा था --मनगढ़ंत नही ---
श्री राम जब समुद्र के समीप लक्ष्मण के साथ रह रहे हैं तो एक दिन वे विप्र रूप धारी अग्नि देव से मिलते है। वेदों में अग्नि को ही परमात्मा कहा गया है ,वो ही सबसे बड़ा वैज्ञानिक ,दार्शनिक ,चिकित्सक और राजा है। श्रीराम को देख अग्नि देव दुखित हुये और से बोले ---
'' तस्थौ समुद्रनिकटे सीतया लक्ष्मणेन च।
ददर्श तत्र वह्निं च विप्ररूपधरं हरि: ॥ ''
''रामं च दुःखितं दृष्टवा स च दुःखी बभूव ह।
उवाच किंचित्सत्येष्टं सत्यं सत्यपरायण: ॥ ''
''भगवंछूयतां राम कालोSयं यदुपस्थित:।
सीताहरणकालोSयं तवैव समुपस्थित: ॥ ''
''दैवं च दुर्निवार्यं च न च दैवात्परो बली।
जगत्प्रसूं मयि न्यस्य छायां रक्षान्तिकेSधुना।। ''
''दस्यामि सीतां तुभ्यं च परीक्षा समये पुन: ।
देवै: प्रस्थापितोSहं च न च विप्रो हुताशन: ''॥
------ अग्नि देव बोले --हे भगवन श्री राम सुनिये ! ये जो काल [समय ] आपके समक्ष उतपन्न हुआ है ,वह सीता हरण के समय के रूप में ही आया हुआ है। दैव का प्रतिकार अत्यंत कठिन है ,दैव बलवान होता है पर हम उपाय तो कर ही सकते हैं। अत:आप जगद्जननी सीता को अग्नि देश में स्थापित करके छाया मयि सीता को रख लीजिये। परीक्षा के समय मैं इन्हें आपको सौंप दूंगा। मैं ब्राह्मण नही ,देवताओं के द्वारा इसी कार्य के लिये भेजा गया साक्षात अग्नि देव हूँ।
---- '' रामस्तद्वचं श्रुत्वा न प्रकाश्य च लक्ष्मणम्।
----स्वीकारं वचसश्चक्रे हृदयेन विदुयता।। ''
----श्री राम ने अग्नि देव की यह बात दुखी हृदय से मान ली और लक्ष्मण को भी नहीं बताया।
''वह्निर्योगेन सीताया माया सीतां चकार ह।
तत्तुल्यगुणसर्वाङ्गा ददौ रामाय नारद।। ''
'' सीतां गृहीत्वा स ययौ गोप्यं वक्तुं निषिध्य च ''
---हे नारद ,तब अग्नि देव ने योग करके एक छाया सीता बनाई जो हर तरह से सीता से ही मिलती जुलती थी ,और उसे राम को सौंप सीता को बात गुप्त रखने का निर्देश दे ,अपने साथ ले गए --यहां तक कि ये बात लक्ष्मण को भी अग्नि परीक्षा के बाद ही बताई गयी। ----
----- अब प्रश्न ये उठता है कि अग्नि परीक्षा के बाद छाया सीता का क्या हुआ --जब अग्नि परीक्षा के बाद अग्निदेव ने छाया सीता राम को सौंप दी ,तो छाया सीता बोली --
'' उवाच छाया सीता वह्निं च रामं च विन्यान्विता।
करिष्यामीति किमहं तदुपायं वदस्व में।।''
--- तब छाया मयी सीता ने श्री राम और अग्निदेव से विनय पूर्वक पूछा --अब मैं क्या करूँ मुझे वो उपाय बताइये।
---तब अग्नि देव और समस्त देवताओं ने उन्हें स्वर्गलक्ष्मी के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया --और कालांतर में यही देवी राजा द्रुपद की कन्या के रूप में यज्ञ से उतपन्न हुई द्रौपदी के नाम से प्रसिद्ध हुई ,जो छाया सीता के होने के कारण नारायण [कृष्ण ]की सखी भी थीं।
--क्या सचमुच में त्रेता युग में ऋषि मुनि ,देवता ,वैज्ञानिकइतने सक्षम थे और विज्ञान इतना उन्नत था , आज जो हम टिश्यू कल्चर से अभी केवल त्वचा बनाने तक ही पहुंच पाये हैं तब हम इंसान भी बना लेते थे --क्या ये रोबोट का परिष्कृत रूप था --क्यूंकि द्रौपदी की उत्पत्ति और उसका पूरा जीवन भी एक मशीनी जीवन ही लगता है --साथ ही इतने आयुध ,विमान , समय की गति से भी तेज चलने वाले विमान - आकाशवाणियां ,दिव्य दृष्टि --निश्चय ही हमारे ग्रंथों से छेड़-छाड़ हुई है ----- इतने वर्षों की गुलामी का ये सबसे बड़ा अभिशाप है जो भारत झेल रहा है।
सीताजी को अग्नि परीक्षा नही देनी पड़ी थी ,युद्ध की आशंका से उन्हें सुरक्षित स्थान भेज दिया गया था ----ग्रंथों को पढ़ने और समझने की आवश्यकता है।। आभा ॥
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