------पर्दे के पीछे से ----
[बैठे -ठाले की बकवास ,अक्षरों की उछल-कूद ]
=============================================== खुले दरवाजे से आती तेज हवा
कांपते पर्दे।
पर्दे झूमने पे
टूटती बनती
खुले आसमान में
उड़ते परिंदों की पांत ,
टूटती बिखरती किरनों संग ,
पर्दों के सायों से रंग लेकर
सूने कमरे रंगने ,
रोज नियत समय पे आना।
आसमान में उड़ते जहाज की गड़गड़ाहट ,
नीचे जीवन की उलझन-सुलझन
से परे --
खेलते बच्चों का कोलाहल ,
जीवन का संगीत ही है ,
बिना मात्रा की सरगम जैसा
पक्षियों की चहचहाहट -
पेड़ के पत्तों की सरसराहट संग
षड्ज -ऋषभ -गांधार
मध्यम पंचम धैवत निषाद
संगीत ही है जीवन
पर्दे के इस पार भी -
उस पार भी।
बूढ़े पीपल पे
अनेकों पक्षियों का कलरव
बंदरों की उछलकूद ,
नए पुराने पत्तों संग -
टिमटिमाते सफ़ेद तारों जैसे
फूलों वाले नीम पे
वो लाल चोंच वाला
हीरामन सुग्गे का जोड़ा
और बस
यूँ ही मेरे मन में भी ,
अक्षरों की उछलकूद
बाहर आने को व्याकुल अक्षर
ज्यूँ मछलियाँ -
सागर की सतह पे -
सांस लेने को आएं।
झुण्ड के झुण्ड अक्षरों के ,
अस्तित्व खो के -
शब्द बनने को व्याकुल ,
व्यष्टि से समष्टि की ओर।
पर ----
व्यष्टि की अपनी रौनक
आलाप की लय में
विलम्बित स्वरों का राग
मानो जीवन की कहानी कहना
वो कहानी --जो --
पर्दे के पीछे है
बाहर से भी पर्दे के पीछे,
भीतर से भी पर्दे के पीछे।
मन के खालीपन को भरता ,
अक्षरों का ये कुनबा ,
भानमती का पिटारा ,
पर्दे के बाहर भी भीतर भी ,
इन्हें पढ़ना ,
इन्हें शाल बना के ओढ़ लेना ,
रेशमी अक्षरों की छुवन ,
मन में खिलता
जीवन का बसंत ,
पर्दे के पीछे
भीतर बाहर। ----
[बैठे -ठाले की बकवास ,अक्षरों की उछल-कूद ]
=============================================== खुले दरवाजे से आती तेज हवा
कांपते पर्दे।
पर्दे झूमने पे
टूटती बनती
खुले आसमान में
उड़ते परिंदों की पांत ,
पर्दे के उस पार की -
झक सफ़ेद धूप काटूटती बिखरती किरनों संग ,
पर्दों के सायों से रंग लेकर
सूने कमरे रंगने ,
रोज नियत समय पे आना।
आसमान में उड़ते जहाज की गड़गड़ाहट ,
नीचे जीवन की उलझन-सुलझन
से परे --
खेलते बच्चों का कोलाहल ,
जीवन का संगीत ही है ,
बिना मात्रा की सरगम जैसा
पक्षियों की चहचहाहट -
पेड़ के पत्तों की सरसराहट संग
षड्ज -ऋषभ -गांधार
मध्यम पंचम धैवत निषाद
संगीत ही है जीवन
पर्दे के इस पार भी -
उस पार भी।
बूढ़े पीपल पे
अनेकों पक्षियों का कलरव
बंदरों की उछलकूद ,
नए पुराने पत्तों संग -
टिमटिमाते सफ़ेद तारों जैसे
फूलों वाले नीम पे
वो लाल चोंच वाला
हीरामन सुग्गे का जोड़ा
और बस
यूँ ही मेरे मन में भी ,
अक्षरों की उछलकूद
बाहर आने को व्याकुल अक्षर
ज्यूँ मछलियाँ -
सागर की सतह पे -
सांस लेने को आएं।
झुण्ड के झुण्ड अक्षरों के ,
अस्तित्व खो के -
शब्द बनने को व्याकुल ,
व्यष्टि से समष्टि की ओर।
पर ----
व्यष्टि की अपनी रौनक
आलाप की लय में
विलम्बित स्वरों का राग
मानो जीवन की कहानी कहना
वो कहानी --जो --
पर्दे के पीछे है
बाहर से भी पर्दे के पीछे,
भीतर से भी पर्दे के पीछे।
मन के खालीपन को भरता ,
अक्षरों का ये कुनबा ,
भानमती का पिटारा ,
पर्दे के बाहर भी भीतर भी ,
इन्हें पढ़ना ,
इन्हें शाल बना के ओढ़ लेना ,
रेशमी अक्षरों की छुवन ,
मन में खिलता
जीवन का बसंत ,
पर्दे के पीछे
भीतर बाहर। ----
No comments:
Post a Comment