abhajai
Sunday, 14 February 2016
प्रीत की रीत
सुनो ,पता है मुझे ;
मेरी आवाजें भी नही पहुंचती हैं तुम तक !
अहसास तुम क्या समझोगे ?
पर --
इन लौट आये खतों का
'मोल ' चुका के ,
इन्हें पाया है मैंने -
कभी थे तुम मेरे -
जीने को ये अहसास ही काफी है --
कोशिस करोगे तो सुन पाओगे ,तुम भी। आभा।
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