आजकल मैं भगवद्गीता पे एक पुस्तक पढ़ रही हूँ --पुस्तक तो अंग्रेजी में है और अंग्रेजों के लिए ही लिखी गयी है शायद -- EKNATH EASWARAN --केरल के विद्वान थे जो कलिफ़ोर्निया में रहने लगे उनके द्वारा लिखी गयी है ,पर है अच्छी। एक बात जो मेरे मन में भी चलती है वो मुझे इस पुस्तक में भी मिली --लेखक कहता है की गीता एक पूर्ण उपनिषद है। ये महाभारत का भाग हो ही नही सकता। इसमें वेदों का मंथन कर जीवनजीने की उत्कृष्ट कला का वर्णन है और ऐसा उपदेश लड़ाई के वक्त सम्भव ही नही। ये वेदों के समय में ही लिखा गया एक स्वतन्त्र उपनिषद है ,समाज में अधिक प्रचलित न होने के कारण इसे महाभारत के युद्ध काल के पहले डाला गया। युद्ध के नाम पे गीता का केवल प्रथम अध्याय ही है।
गीता की यही खासियत है उसे मन की जिस अवस्था में पढो ,समाधान उसी हिसाब से मिलता है।
मैं भी कई बार यही सोचती हूँ --वो समय जब गीता लिखी गयी ,समाज को संस्कारित करने का ,जीने की कला सिखाने का ,प्रकृति के महत्व को समझाने का ,साम दाम दंड भेद से मानव को सामाजिक प्राणी बनाने का समय था। ईश्वर प्रदत्त बुद्धि और गुण आज भी बहुत से इंसानों में हैं ,उस समय भी हमारे ऋषि मुनि जो कुछ ईश्वरीय गुणों और बुद्धि से युक्त थे ,ज्ञान के साथ पैदा हुए और तप से उसे बढ़ाया -समाजनिर्माण के कार्य में लगे हुए थे। तब ही वेदों की रचना हुई --वेद ज्ञान प्रभुवाणी है ,उन्हें ऋषिमुनियों ने संजोया , प्रत्यक्ष किया ,पर ऋषिमुनियों , शिक्षकों ,बुद्धिजीवियों ,वैज्ञानिकों ,और आमगृहस्थ में फर्क था , जीवनयापन कठिन था ,अतः वेदों को पढ़ने एवं समझने का समय तब भी नही था आमगृहस्थ के पास। तब प्रभु मुख से गीता -गान निःसृत हुआ --जो संक्षिप्त था ,हर गृहस्थी के लिए था ,हर पल के लिये था -- उसे व्यास मुनि ने जन -जन के लिए प्रत्यक्ष किया --इसका प्रमाण भी कृष्ण ने गीता में ही दिया है जब वो अर्जुन से कहते है --ये ज्ञान बहुत पुराना है तब तू नही था --मैंने इसे सूर्य को दिया था --सूर्य वो ऋषि जो सूर्यलोक बना संसार का पिता बना और आज का प्रत्यक्ष देवता है --जिसके न होने से सृष्टि भी समाप्त ही समझो।
और साथ ही कृष्ण ये भी कह रहे है --मैं मुनियों में व्यास मुनि हूँ --- ऋषि व्यास को ही गीता महाभारत ,भागवत और कई अन्य पुराणों की रचना का श्रेय जाता है।
मेरा भी यही मत है कि गीता को वेदों के साथ ही रचा गया। वेद तब शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम का हिस्सा थे और गीता को प्रतिदिन के सबक के रूप में गृहस्थियों के लिए लिखा गया। जीवन जीने की कला ,योग ,यम-नियम ,प्राणायाम एवं श्रद्धा ,संस्कार युक्त कर्मप्रधान ,त्यागमय भोग ,का मार्ग प्रशस्त करने के लिए थी गीता पर किन्ही कारणों से ये उपनिषद लोकप्रिय (बेस्ट सैलर) की श्रेणी में नही आ पाया ,उस समय के ''बेस्ट सैलर'' का निर्णय पुस्तक की '1000' कॉपी बिकने पे नही होता था अपितु समाज का हर वर्ग उसे अपनाये ,उसकी चर्चा करे ,उस पुस्तक से अपने को जोड़े उस पुस्तक को जिये तब वो लोकप्रिय की श्रेणी में आती थी।
महाभारत के युग में जब लोभ ,लालच स्वार्थ ने मानव को जकड़ लिया ,वेदों को क्लिष्ट समझ के छोड़ दिया गया ,ऐसे वक्त में कृष्ण ने समाज को संस्कारित करने के लिए गीता का सहारा लिया। अब तक वेद व्यास महाभारत लिख चुके थे जो सारे उपनिषदों में सबसे अधिक गाया जा रहा था ,इसमें और भी कई गीताएं थीं विद्वानों के मुंह से गायी गयी थीं ,पर कोई भी पूर्ण नही थी --तो
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् --
कृष्ण, वेदव्यास [कृष्णद्वैपायन ] इत्यादि ऋषियों ने मन्त्रणा की और गीता को समष्टि के लिए सर्वोच्च ग्रन्थ मानके उसे महाभारत में समाहित किया गया। वो भक्तियोग का समय भी था तो
''ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्द्देशेअर्जुन तिष्ठति --मद्याजी मां नमस्कुरु --
से सभी में ईश्वरीय तत्व है इसकी पुनर्स्थापना की गयी।
गीता को प्रभावशाली बनाने के लिए उसे यूद्ध क्षेत्र में और युद्ध के प्रारम्भ में ही प्रस्तुत किया गया। जनता अहंकारी और पांडवों को पीड़ा देने वाले कौरवों का विनाश चाहती थी। भाई -भाई सभी बन्धु-बांधव आमने सामने हों ,रणभेरी बज चुकी हो , जब सभी बड़े अपने क्षुद्र स्वार्थों और पूर्वाग्रह युक्त कर्तव्यनिष्ठा के लिये अत्याचारी शासन के साथ हों --ऐसे में अर्जुन का अवसाद , कृष्ण का गीताज्ञान --और उस ज्ञान से मिली जीत ,निश्चय ही समाज को गीता के उपदेशों पे विशवास करने को प्रेरित करती।
महाभारत में स्पष्ट है कि युद्ध से पूर्व ,युद्ध टालने की हर छोटी से छोटी कोशिश की गयी। दूत भेजे गये ,यहां तक कि कृष्ण स्वयं दूत बनके गये ,एक एक व्यक्ति से पूछा गया कि वो युद्ध होने की अवस्था में किसके साथ होगा --तो क्या अर्जुन जैसा वीर ऐन युद्ध के आरम्भ होने पे अपना गांडीव नीचे रख देता ? 700 श्लोकों के उपदेशों तक दोनों ओर की सेना प्रतीक्षा करती ! जबकि दुर्योधन को पाण्डवों का अस्तित्व समाप्त करने की बहुत जल्दी थी। शकुनि जैसे अराजक तत्व युद्ध को शीघ्रातिशीघ्र चाहते थे।
गीता में प्रथम अध्याय ही युद्ध के सम्बन्ध में है अन्य सभी अध्याय समष्टि को कृष्ण का गान हैं। हर पल के लिये जीने की उपयोगी राह देता कृष्ण ज्ञान।
तो क्या हम ये सोच सकते हैं कि प्रथम अध्याय कृष्ण की सहमति से इसमें क्षेपक किया गया और फिर इस गीतोपनिषद को महाभारत में डाला गया। बीच-बीच में अर्जुन से वार्तालाप के द्वारा इसकी युद्ध में और महाभारत में होने की पृष्ठभूमी को भी परिभाषित किया गया।
बस यूँ ही कुछ नया विचार यदि आपकी सोच से भी मिलता हुआ हो तो खाली पड़े दिमागी घोड़े दौड़ने लगते हैं।
मैं अभी इस लायक नही हूँ कि गीता का विश्लेषण कर पाऊं ,पर यूँ ही लिख दिया ,शायद किसी और की भी मेरे जैसी सोच हो--कि गीता अपने आप में एक संपूर्ण उपनिषद है जो वैदिक काल की रचना है --इसे महाभारत में डाला गया इसलिये ये महाभारत में भी है और उससे बाहर भी पूर्ण ही है ---कन्हैया और वेदव्यास जी से क्षमा प्रार्थना के आवेदन सहित --आभा --
गीता की यही खासियत है उसे मन की जिस अवस्था में पढो ,समाधान उसी हिसाब से मिलता है।
मैं भी कई बार यही सोचती हूँ --वो समय जब गीता लिखी गयी ,समाज को संस्कारित करने का ,जीने की कला सिखाने का ,प्रकृति के महत्व को समझाने का ,साम दाम दंड भेद से मानव को सामाजिक प्राणी बनाने का समय था। ईश्वर प्रदत्त बुद्धि और गुण आज भी बहुत से इंसानों में हैं ,उस समय भी हमारे ऋषि मुनि जो कुछ ईश्वरीय गुणों और बुद्धि से युक्त थे ,ज्ञान के साथ पैदा हुए और तप से उसे बढ़ाया -समाजनिर्माण के कार्य में लगे हुए थे। तब ही वेदों की रचना हुई --वेद ज्ञान प्रभुवाणी है ,उन्हें ऋषिमुनियों ने संजोया , प्रत्यक्ष किया ,पर ऋषिमुनियों , शिक्षकों ,बुद्धिजीवियों ,वैज्ञानिकों ,और आमगृहस्थ में फर्क था , जीवनयापन कठिन था ,अतः वेदों को पढ़ने एवं समझने का समय तब भी नही था आमगृहस्थ के पास। तब प्रभु मुख से गीता -गान निःसृत हुआ --जो संक्षिप्त था ,हर गृहस्थी के लिए था ,हर पल के लिये था -- उसे व्यास मुनि ने जन -जन के लिए प्रत्यक्ष किया --इसका प्रमाण भी कृष्ण ने गीता में ही दिया है जब वो अर्जुन से कहते है --ये ज्ञान बहुत पुराना है तब तू नही था --मैंने इसे सूर्य को दिया था --सूर्य वो ऋषि जो सूर्यलोक बना संसार का पिता बना और आज का प्रत्यक्ष देवता है --जिसके न होने से सृष्टि भी समाप्त ही समझो।
और साथ ही कृष्ण ये भी कह रहे है --मैं मुनियों में व्यास मुनि हूँ --- ऋषि व्यास को ही गीता महाभारत ,भागवत और कई अन्य पुराणों की रचना का श्रेय जाता है।
मेरा भी यही मत है कि गीता को वेदों के साथ ही रचा गया। वेद तब शिक्षा के लिए पाठ्यक्रम का हिस्सा थे और गीता को प्रतिदिन के सबक के रूप में गृहस्थियों के लिए लिखा गया। जीवन जीने की कला ,योग ,यम-नियम ,प्राणायाम एवं श्रद्धा ,संस्कार युक्त कर्मप्रधान ,त्यागमय भोग ,का मार्ग प्रशस्त करने के लिए थी गीता पर किन्ही कारणों से ये उपनिषद लोकप्रिय (बेस्ट सैलर) की श्रेणी में नही आ पाया ,उस समय के ''बेस्ट सैलर'' का निर्णय पुस्तक की '1000' कॉपी बिकने पे नही होता था अपितु समाज का हर वर्ग उसे अपनाये ,उसकी चर्चा करे ,उस पुस्तक से अपने को जोड़े उस पुस्तक को जिये तब वो लोकप्रिय की श्रेणी में आती थी।
महाभारत के युग में जब लोभ ,लालच स्वार्थ ने मानव को जकड़ लिया ,वेदों को क्लिष्ट समझ के छोड़ दिया गया ,ऐसे वक्त में कृष्ण ने समाज को संस्कारित करने के लिए गीता का सहारा लिया। अब तक वेद व्यास महाभारत लिख चुके थे जो सारे उपनिषदों में सबसे अधिक गाया जा रहा था ,इसमें और भी कई गीताएं थीं विद्वानों के मुंह से गायी गयी थीं ,पर कोई भी पूर्ण नही थी --तो
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् --
कृष्ण, वेदव्यास [कृष्णद्वैपायन ] इत्यादि ऋषियों ने मन्त्रणा की और गीता को समष्टि के लिए सर्वोच्च ग्रन्थ मानके उसे महाभारत में समाहित किया गया। वो भक्तियोग का समय भी था तो
''ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्द्देशेअर्जुन तिष्ठति --मद्याजी मां नमस्कुरु --
से सभी में ईश्वरीय तत्व है इसकी पुनर्स्थापना की गयी।
गीता को प्रभावशाली बनाने के लिए उसे यूद्ध क्षेत्र में और युद्ध के प्रारम्भ में ही प्रस्तुत किया गया। जनता अहंकारी और पांडवों को पीड़ा देने वाले कौरवों का विनाश चाहती थी। भाई -भाई सभी बन्धु-बांधव आमने सामने हों ,रणभेरी बज चुकी हो , जब सभी बड़े अपने क्षुद्र स्वार्थों और पूर्वाग्रह युक्त कर्तव्यनिष्ठा के लिये अत्याचारी शासन के साथ हों --ऐसे में अर्जुन का अवसाद , कृष्ण का गीताज्ञान --और उस ज्ञान से मिली जीत ,निश्चय ही समाज को गीता के उपदेशों पे विशवास करने को प्रेरित करती।
महाभारत में स्पष्ट है कि युद्ध से पूर्व ,युद्ध टालने की हर छोटी से छोटी कोशिश की गयी। दूत भेजे गये ,यहां तक कि कृष्ण स्वयं दूत बनके गये ,एक एक व्यक्ति से पूछा गया कि वो युद्ध होने की अवस्था में किसके साथ होगा --तो क्या अर्जुन जैसा वीर ऐन युद्ध के आरम्भ होने पे अपना गांडीव नीचे रख देता ? 700 श्लोकों के उपदेशों तक दोनों ओर की सेना प्रतीक्षा करती ! जबकि दुर्योधन को पाण्डवों का अस्तित्व समाप्त करने की बहुत जल्दी थी। शकुनि जैसे अराजक तत्व युद्ध को शीघ्रातिशीघ्र चाहते थे।
गीता में प्रथम अध्याय ही युद्ध के सम्बन्ध में है अन्य सभी अध्याय समष्टि को कृष्ण का गान हैं। हर पल के लिये जीने की उपयोगी राह देता कृष्ण ज्ञान।
तो क्या हम ये सोच सकते हैं कि प्रथम अध्याय कृष्ण की सहमति से इसमें क्षेपक किया गया और फिर इस गीतोपनिषद को महाभारत में डाला गया। बीच-बीच में अर्जुन से वार्तालाप के द्वारा इसकी युद्ध में और महाभारत में होने की पृष्ठभूमी को भी परिभाषित किया गया।
बस यूँ ही कुछ नया विचार यदि आपकी सोच से भी मिलता हुआ हो तो खाली पड़े दिमागी घोड़े दौड़ने लगते हैं।
मैं अभी इस लायक नही हूँ कि गीता का विश्लेषण कर पाऊं ,पर यूँ ही लिख दिया ,शायद किसी और की भी मेरे जैसी सोच हो--कि गीता अपने आप में एक संपूर्ण उपनिषद है जो वैदिक काल की रचना है --इसे महाभारत में डाला गया इसलिये ये महाभारत में भी है और उससे बाहर भी पूर्ण ही है ---कन्हैया और वेदव्यास जी से क्षमा प्रार्थना के आवेदन सहित --आभा --