दिल टूटने पे ही कोई कवि बने ये सदा सत्य नही होता --कभी कभी थर्मामीटर भी का टूटना भी कुछ लिखवा जाता है ---पर ये लिखना बीमारी का खुलासा भी कर गया और दूर बैठे बच्चे परेशान भी हो गए ,भाई का फोन आ गया। तब मैं दिल्ली में अकेली जो थी -- और आज 21 मार्च को एक बार फिर चली आयी ये याद ---धन्यवाद fb ,विचारों के संग-संग वो गुजरे पल भी याद आ जाते हैं ---
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''इक चोट पड़ी बिखरे मोती''
सुबह ज्वर देखने को थर्मामीटर निकाला और हाथ से छूटगया ---मुझे हमेशा अच्छा लगता है कोई भी थर्मामीटर टूटना। पाराबिखर -बिखर जाता है। इन पारे के मोतियों को समेटने का अपना ही आनंद है। कभी एक बड़ा मोती बन जाता है कभी छिटक के कई सारे मोती हो जाते हैं। पारे से सोना बनना --पहले थी ये विद्या हमारे पास --पर मैं सोचती हूँ क्या जीवन का अर्थ मिले ,ईश्वर का अर्थ मिले। हम क्यूँ हैं ,कौन हैं ,ये समझ आये ; तो यही पारे से सोना बनना नही है ? -----------यूँ ही विश्व कविता दिवस पे कुछ लिखूं तो माध्यम एक थर्मामीटर का टूटना बना ---
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पारे की माला - जीवन
इक चोट पड़ी बिखरे मोती
बिखर गये !
पर ;
जगमग झलमल
थाली पे ज्यूँ बिखरा सोना
बूंदें ?
बूंदें -चलो टीप लें हाथों से
फिर गढें एक माला इनकी।
हाथ नही मोती ये आते ?
पल-पल रूप बदलते जाते
''नवानि गृह्णाति नरोपराणी ''
छोटे और बड़े ये मोती
कभी नही मिटते चुकते
''अयमविकार्योअमुच्य्ते ''--
[रूप न बदलने वाला आत्मा ;]
क्षण भर को दूजे को छू जाये
तो ?
खो स्वरुप अपना-अपना
इक दूजे में मिल जायेंगे
औ -
गढ़ लेंगे इक रूप नया
कितने जन्मों का खेल यहाँ
पिघले पारे से बिछड़ मिलें
इक नीड़ नया फिर बन जाये
पारद सी स्वर्णिम चमक लिए
सदियों की प्यास बुझाने को
प्यासी रह जाती प्यास यहाँ
चोले का आकर्षण बांधे
ज्यूँ चोले से मुक्त हुआ
कुछ मोती ,
हाँ ! कुछ मोती
अवश्य ; बिखरत जाते !
हो स्वतंत्र इक दूजे से
कुछ कण , अवश्य हैं ; खो जाते।
जीवन भी यूँ , बस यादों में
पारद मोतियों सा तिरता
यादों को छूना दुष्कर है
छूते ही रूप बदल लेतीं।
हर चाह अधूरी रह जाती
हर प्यास अबूझी रह जाती
खोने -पाने की अभिलाषा
क्या ? पारद से सोना बनना !
तुम नील गगन के वासी हो
मैं ,धरती में डोला करती
यादों की भट्टी में पिघला सोना
जीवन थाली में हिलता सा
प्यासे की प्यास जगाताहै ,
ज्ञात मुझे भी है ; यह भी
पर आस का पंछी गाता है
पारद कण से मिल जायेंगे
हम फिर , इक सुर में गायेंगे।।आभा।
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पारे की माला - जीवन
इक चोट पड़ी बिखरे मोती
बिखर गये !
पर ;
जगमग झलमल
थाली पे ज्यूँ बिखरा सोना
बूंदें ?
बूंदें -चलो टीप लें हाथों से
फिर गढें एक माला इनकी।
हाथ नही मोती ये आते ?
पल-पल रूप बदलते जाते
''नवानि गृह्णाति नरोपराणी ''
छोटे और बड़े ये मोती
कभी नही मिटते चुकते
''अयमविकार्योअमुच्य्ते ''--
[रूप न बदलने वाला आत्मा ;]
क्षण भर को दूजे को छू जाये
तो ?
खो स्वरुप अपना-अपना
इक दूजे में मिल जायेंगे
औ -
गढ़ लेंगे इक रूप नया
कितने जन्मों का खेल यहाँ
पिघले पारे से बिछड़ मिलें
इक नीड़ नया फिर बन जाये
पारद सी स्वर्णिम चमक लिए
सदियों की प्यास बुझाने को
प्यासी रह जाती प्यास यहाँ
चोले का आकर्षण बांधे
ज्यूँ चोले से मुक्त हुआ
कुछ मोती ,
हाँ ! कुछ मोती
अवश्य ; बिखरत जाते !
हो स्वतंत्र इक दूजे से
कुछ कण , अवश्य हैं ; खो जाते।
जीवन भी यूँ , बस यादों में
पारद मोतियों सा तिरता
यादों को छूना दुष्कर है
छूते ही रूप बदल लेतीं।
हर चाह अधूरी रह जाती
हर प्यास अबूझी रह जाती
खोने -पाने की अभिलाषा
क्या ? पारद से सोना बनना !
तुम नील गगन के वासी हो
मैं ,धरती में डोला करती
यादों की भट्टी में पिघला सोना
जीवन थाली में हिलता सा
प्यासे की प्यास जगाताहै ,
ज्ञात मुझे भी है ; यह भी
पर आस का पंछी गाता है
पारद कण से मिल जायेंगे
हम फिर , इक सुर में गायेंगे।।आभा।
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