Tuesday, 21 March 2017

''21 मार्च '', ''विश्व-कविता दिवस ''-और ''मैं ''
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यादें आज बनी हैं साकी
मोह बना जीवन  हाला
अक्षर क्षर हो बरस रहे हैं
लिए तमन्नाओं का प्याला
यादों के रंग भर  प्याले में
कूची डुबा -डुबा मन की
मन व्योम के प्रांतर के
कांटो- फूलों की खेती से
चुन -चुन बिम्ब ढूंढ-ढांड
जीवन को परिभाषित करती
उत्सर्गों के अवशेषों पे  
कविता बनने जो  मचली
मौन व्यथा ,मौन वांछा संग
नीरव   मधु रंगों की छाया
शिशिर- हृदय की पीड़ाओं के
 गायन- नर्तन की गूँजों सी
चित्रपटी की तृष्णा सी बहती
जीवन सरिता  मधुशाला। आभा।

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