वर-वधू खड़े हों। प्रत्येक कदम बढ़ाने से पहले देव शक्तियों की साक्षी का मन्त्र बोला जाता है, उस समय वर-वधू हाथ जोड़कर ध्यान करें। उसके बाद चरण बढ़ाने का मन्त्र बोलने पर पहले दायाँ कदम बढ़ाएँ। इसी प्रकार एक-एक करके सात कदम बढ़ाये जाएँ। भावना की जाए कि योजनाबद्ध-प्रगतिशील जीवन के लिए देव साक्षी में संकल्पित हो रहे हैं, संकल्प और देव अनुग्रह का संयुक्त लाभ जीवन भर मिलता रहेगा।
(१) अन्न वृद्धि के लिए पहली साक्षी- ॐ एको विष्णुजर्गत्सवर्ं, व्याप्तं येन चराचरम्। हृदये यस्ततो यस्य, तस्य साक्षी प्रदीयताम्॥ पहला चरण- ॐ इष एकपदी भव सा मामनुव्रता भव। विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै, बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥१॥
(२) बल वृद्धि के लिए दूसरी साक्षी- ॐ जीवात्मा परमात्मा च, पृथ्वी आकाशमेव च। सूयर्चन्द्रद्वयोमर्ध्ये, तस्य साक्षी प्रदीयताम्॥२॥ दूसरी चरण- ॐ ऊजेर् द्विपदी भव सा मामनुव्रता भव। विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै, बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥२॥
(३) धन वृद्धि के लिए तीसरी साक्षी- ॐ त्रिगुणाश्च त्रिदेवाश्च, त्रिशक्तिः सत्परायणाः। लोकत्रये त्रिसन्ध्यायाः, तस्य साक्षी प्रदीयताम् । तीसरा चरण- ॐ रायस्पोषाय त्रिपदी भव सा मामनुव्रता भव। विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै, बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥३॥
(४) सुख वृद्धि के लिए चौथी साक्षी- ॐ चतुमर्ुखस्ततो ब्रह्मा, चत्वारो वेदसंभवाः। चतुयुर्गाः प्रवतर्न्ते, तेषां साक्षी प्रदीयताम्। चौथा चरण- ॐ मायो भवाय चतुष्पदी भव सा मामनुव्रता भव। विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै, बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥४॥
(५) प्रजा पालन के लिए पाँचवी साक्षी- ॐ पंचमे पंचभूतानां, पंचप्राणैः परायणाः। तत्र दशर्नपुण्यानां, साक्षिणः प्राणपंचधाः॥ पाँचवाँ चरण- ॐ प्रजाभ्यां पंचपदी भव सा मामनुव्रता भव। विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै, बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥५॥
(६) ऋतु व्यवहार के लिए छठवीं साक्षी- ॐ षष्ठे तु षड्ऋतूणां च, षण्मुखः स्वामिकातिर्कः। षड्रसा यत्र जायन्ते, कातिर्केयाश्च साक्षिणः॥ छठवाँ चरण- ॐ ऋतुभ्यः षट्ष्पदी भव सा मामनुव्रता भव। विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै, बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥६॥
(७) मित्रता वृद्धि के लिए सातवीं साक्षी- ॐ सप्तमे सागराश्चैव, सप्तद्वीपाः सपवर्ताः। येषां सप्तषिर्पतनीनां, तेषामादशर्साक्षिणः॥ सातवाँ चरण- ॐ सखे सप्तपदी भव सा मामनुव्रता भव। विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै, बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥७॥ -पार०गृ०सू० १.८.१-२, आ०गृ०सू० १.७.१९
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