Friday, 21 July 2017




आ मिल मेरी मधुशाला से
इसमें नैसर्गिक हाला
ये प्रकृति मेरा मदिरालय
हरियाली साकी बाला
तरह तरह की रंगबिरंगी
इसमें मिलजाती हाला
नव  पलल्व नव पुष्प औ  फल
मेरे सुख दुःख सुनते हैं
ममता से अभिसिंचित कर
बरसाते प्रणय मई हाला
अखिल विश्व का विष पी कर  भी
धरती मदमाती रहती
ढूंढ सको तो पास ही होगी
कुञ्ज गली वो मधुशाला --आभा --




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