घोर तम निविड़ निशा ,चन्द्रहीन इक रात ,
नभ में उजले-उजले तारकगण ,और धरा पर उद्दुगन झलमल .
शांत धूमिल पर कुछ श्रांत ,खड़ी आंगन में वृक्षों की पांत -----
अलसाई सी सोच रही थी ,अंधियारे में छिपी हुई है -------------
-----------उषा एक उज्वल निर्मल सी ---------------------------
जान न पायी इस जीवन में उषा नहीं अब आने वाली ------
प्राची में सूरज ने जो कुंकुम बिखराया ,---------------------------
मेरे घर से ही था सूरज ने ,वो कुंकुम चूर्ण चुराया ----------------
अरुणोदय की वो लालिमा ,आयी करने वैभव-हीन मुझे ..
सुबह हुई क्या सुला गयी ,चिर-निद्रा में मेरे जीवन-धन को ,
ध्वस्त हुआ मंदिर मेरा ,सो गये चेतना के सब पाश .
सुबह बनी अभिशाप ,जगत की ज्वालाओं मूल ,
ईश का जो वरदान ,मैं कभी न सकती उसको भूल .
एक पहेली इस सुबह ने ,जीवन मेरा बना दिया ,
ढूंढ़ रही हूँ उस अपने को जो तिमिर गर्भ में खो गया .
ज्योति का प्रतिबिम्ब वह जीवन में फिर ना आयेगा
होगी न अब मेरी सुबह ,औ न प्रभात ही आयेगा .
हास्य का वह मधुर पर्याय ,शीतलता का वह उन्माद ,
मेरे मृग-छौनों का आलम्बन ,छोड़ गया था उनको आज .
हर-पल साथ रहते थे जो ,वो पिता ,आज कहाँ गये ?
करुण क्रन्दन और चीतकार ,पर ,शांत पिता की तरह खड़े .
अविरल विषाद इन आँखों से ,वर्षा-ऋतू बन बहता जाता ,
पर दग्ध हृदय से रुद्ध कंठ से माँ को सब समझाते हैं ,
पिता हमारे साथ खड़े हैं बस ,अब मन के भीतर चले गये ,
प्रतिनिधि बनकर वे पिता के, मेरा आलम्बन बन जाते हैं .
आलोक रश्मि से बुनी उषा-अंचल ने ही, मेरा आंचल छीन लिया .
प्राची के फैले मधुर राग ने ही ,मुझे विराग किया
अब प्रभात की शीतल वायु ,आतप बन मुझे जलाती है ,
पर बच्चों की स्नेह दृष्टि उस पर जल बरसाती है .
निशब्द मौन विजन उषा ,हर रोज जगाने आती है ,
स्नेहसिक्त जिजीविषा पिताकी ,भी वह साथ ही लेकर आती है .
माँ बनाया प्रकृती ने ,पिता मुझे तुम बना गये ,
स्नेह सिक्त हो सींचू सब को ,वो पथ मुझको दिखा गये .----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------श्रधान्जली अजय को ------------------------आभा ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
नभ में उजले-उजले तारकगण ,और धरा पर उद्दुगन झलमल .
शांत धूमिल पर कुछ श्रांत ,खड़ी आंगन में वृक्षों की पांत -----
अलसाई सी सोच रही थी ,अंधियारे में छिपी हुई है -------------
-----------उषा एक उज्वल निर्मल सी ---------------------------
जान न पायी इस जीवन में उषा नहीं अब आने वाली ------
प्राची में सूरज ने जो कुंकुम बिखराया ,---------------------------
मेरे घर से ही था सूरज ने ,वो कुंकुम चूर्ण चुराया ----------------
अरुणोदय की वो लालिमा ,आयी करने वैभव-हीन मुझे ..
सुबह हुई क्या सुला गयी ,चिर-निद्रा में मेरे जीवन-धन को ,
ध्वस्त हुआ मंदिर मेरा ,सो गये चेतना के सब पाश .
सुबह बनी अभिशाप ,जगत की ज्वालाओं मूल ,
ईश का जो वरदान ,मैं कभी न सकती उसको भूल .
एक पहेली इस सुबह ने ,जीवन मेरा बना दिया ,
ढूंढ़ रही हूँ उस अपने को जो तिमिर गर्भ में खो गया .
ज्योति का प्रतिबिम्ब वह जीवन में फिर ना आयेगा
होगी न अब मेरी सुबह ,औ न प्रभात ही आयेगा .
हास्य का वह मधुर पर्याय ,शीतलता का वह उन्माद ,
मेरे मृग-छौनों का आलम्बन ,छोड़ गया था उनको आज .
हर-पल साथ रहते थे जो ,वो पिता ,आज कहाँ गये ?
करुण क्रन्दन और चीतकार ,पर ,शांत पिता की तरह खड़े .
अविरल विषाद इन आँखों से ,वर्षा-ऋतू बन बहता जाता ,
पर दग्ध हृदय से रुद्ध कंठ से माँ को सब समझाते हैं ,
पिता हमारे साथ खड़े हैं बस ,अब मन के भीतर चले गये ,
प्रतिनिधि बनकर वे पिता के, मेरा आलम्बन बन जाते हैं .
आलोक रश्मि से बुनी उषा-अंचल ने ही, मेरा आंचल छीन लिया .
प्राची के फैले मधुर राग ने ही ,मुझे विराग किया
अब प्रभात की शीतल वायु ,आतप बन मुझे जलाती है ,
पर बच्चों की स्नेह दृष्टि उस पर जल बरसाती है .
निशब्द मौन विजन उषा ,हर रोज जगाने आती है ,
स्नेहसिक्त जिजीविषा पिताकी ,भी वह साथ ही लेकर आती है .
माँ बनाया प्रकृती ने ,पिता मुझे तुम बना गये ,
स्नेह सिक्त हो सींचू सब को ,वो पथ मुझको दिखा गये .----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------श्रधान्जली अजय को ------------------------आभा ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------