- सब मिथ्या है ,निरुदेश्य है प्रकृति यदि ,
- हम क्यूँ चलें उदेश्य लेकर ?------------
- सुना है जीवन का इक ध्येय होना चाहिये ?
- ध्येय यदि छोड़ सको यही बड़ा उदेश्य यहाँ .
- प्रकृति जैसे बन जायें --तो ही जीवन सच्चा जीवन .
- मनुज अप्राकृतिक हो गया है ,प्रकृति से टूटा नाता है .
- निज स्वारथ में अँधा होकर ,सब कुछ पकड़े बैठा है ,
- सब छोडने काही ध्येय हमें बनाना होगा ------------
- -------------सोचो ------------------------------------
- फूल खिला अपनी रौ में ,नहीं किसी के लिये खिला
- राही ले सुगंध उसकी फूल की ऐसी चाह नही .
- सुन्दरता का मिले मैडल ,पूजा की माला में गुंथा जाये ,
- सजे सेज पर कहीं किसी की ,या बालों की शोभा हो जाये ,
- नही ध्येय खिलने का यह की बाजारों में बेचा जाये ,
- फूल खिला ,निरुदेश्य खिला ,चाह नही अभिलाष नहीं ,
- गर फूल खिले किसी प्रिय के कारण --प्रिय न आये -?
- फूल बंद ही रहना चाहे ,फिर वह प्रिय आये तो??
- बंद रहने की आदत मजबूत हुई तो !---------------
- फूल नही फिर खिल पायेगा !---फूल सहज है ,
- ध्येय हीन है ,चाह नही अभिलाष नही है ,
- तब ही पूरा खिल सकता है ,
- पैरों में चुभ गया जो कांटा ,कांटे से ही निकलेगा ,
- पर फिर दोनों काँटों को फेंक कहीं पर देना होगा .
- सोचो यदि दूसरे कांटे को रखदें वहाँ जहाँ पहला था
- बोलें हम ,धन्य हो तुम ,मुक्ति मुझे पीड़ा से दी तुमने ,
- अनर्थ बड़ा तब हो जायेगा ,दोनों को ही तजना होगा ,सहज
- सहज गर हम हो जायें तो सहज को भी तजना होगा ,
- भाव सहज होने का भी अटकन पैदा कर सकता है ,
- प्रकृति जैसा यदि होना है तो ध्येय विहीन होना ही होगा
- गीता का भी ज्ञान यही है ,निरुदेश्य हो कर्म करें हम
- ध्येय विहीन ,अर कर्म प्रधान जीवन हो अपना ,
- अपने को पहचान गये यदि ,खिलना शुरू हो जायेगा
- खुशबू फैलेगी ,
- प्रज्ञां बाहर आयेगी
- सारी विभूतियाँ अंतरतम की
- एक -एक कर खिल जायेंगी
- खुद भी महकोगे तुम फिर दुनिया को भी महकाओगे
Tuesday, 3 July 2012
sahaj hamaen hona hi hoga
Labels:
aabha
Location:
Roorkee, Uttarakhand, India
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