Wednesday, 24 April 2013

    आज हनुमंत जयंती है।ऐसी मान्यता है की चैत्र-मास ,शुक्ल-पक्ष एकादशी तिथि और मेघा नक्षत्र में हनुमानजी का जन्म हुआ।------------------- 
.................................चैत्रे मासि  सिते पक्षे हरिदिन्याँ मघाभिधे।
.................................नक्षत्रे स समुत्पन्नो हनुमान रिपुसूदन: ।। 
...कल्प भेद से पुन:-------
..................................महाचैत्रीपूर्णिमायां   समुत्पन्नोअंजनीसुत:। 
..................................वदन्ति कल्पभेदेन  बुधा इत्यादि केचन।। 
तदानुसार चैत्र पूर्णिमा हनुमानजी का जन्मदिवस है और यही तिथि प्रचलित है ,,,,कुछ पंचांगों में नरक चतुर्दशी -(कार्तिक कृष्णपक्ष) दीपावली से पहले भी हनुमान जयंती मनाई जाती है । 
   जो भी हो श्री हनुमानजी का जन्म राम काज के लिए ही हुआ था   ----कवितावली से --
    ....................जेहिं सरीर रति राम सों सोई आदरहिं सुजान।
........................रुद्रदेह तजि नेहबस बानर भे हनुमान।।
.........................जानि राम सेवा सरस ,समुझि करब अनुमान।
.........................पुरुषा ते सेवक भये हर ते भे हनुमान।।
सो गोस्वामीजी स्पष्ट करते हैं कि हनुमानजी रुद्रावतार हैं।--------------जामवंत की उक्ति भी बहुत सार गर्भित है -----------
.........................राम काज लगि तव  अवतारा। सुनतहिं भयहु पर्वताकारा।।
..राम कार्य में हनुमानजी आदि से अंत तक रामजी के साथ रहे ..गोस्वामीजी की पुष्पवाटिका में एक दूती है सखी सिया की ....और वही राम को सिया से मिलवाती है ....
....................एक सखी सिय संग बिहाई।गयी रही देखन फुलवाई।।
....................तेहिं दोउ बन्धु बिलोके जाई।प्रेम बिबस सीता पहिं आयी।।
....................श्री जानकी जी की प्रधान सखियों में से है यह सखी ....अगस्त्य संहिता में श्री सीता जी की आठअन्तरंग सखियाँ हैं -------------१ .श्री चारुशीला २ .श्री हेमा ३ .श्री क्षेमा ४ .श्रीवरारोहा ५ .श्री पद्मगन्धा ६ .श्री सुलोचना  ७ .श्री लक्ष्मणा तथा ८ .श्री सुभगा ---अवध-विलास पुस्तक में नामों में कुछ अंतर भी है .मानस पीयूष में लिखा है की श्री हनुमानजी ही चारु-शिला के रूप में है जो श्री जानकी को राम से मिलवाते हैं ----------------------तो ये सिद्ध होता है कि हनुमत जन्म, राम काज लगी तव अवतारा ही है हनुमानजी आदि से अंत तक रामजी के साथ ही हैं।।
   ऐसे राम के दुलारे  श्री हनुमानजी के चरणों में मेरा बारम्बार प्रणाम .....................................
...............अतुलितबलधामं                       हेमशैलाभदेहं 
.....................................दनुजवनकृशानुं                    ज्ञानिनामाग्रगन्यम।
................सकलगुणनिधानं                        वानराणामधीशं  
.....................................रघुपतिप्रियभक्तं        वातजातं            नमामि।।
   हनुमत जयंती शुभ होवे देश में फैले  भ्रष्टाचार ,और म्लेछ्ता  को दूर करने के लिए हर एक इंसान अपने भीतर के हनुमान को रामकाज लगि  तव  अवतारा कह कर जगाये और देश का सच्चा सेवक बने यही शुभेच्छा है।। ........(.प्रेरणा श्रोत मानस और कल्याण  )..........आभा .............

Thursday, 18 April 2013


प्रभु श्री राम का आदर्श बालक रूप ,
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श्री राम यद्यपि राजकुमार थे ,तो भी उनके बाल चरित में जो विशेषताएं हैं वो एक साधारण और संस्कारी घर के बच्चे के लिए उपयोगी ,हैं तुलसी दासजी के शब्दों में ........
********************गुरु गृह गये पढ्न रघुराई ,अल्प काल विद्या सब आई ..
********************विद्या विनय निपुण गुन सीला ,खेलहिं खेल सकल नृप लीला ..
********************बंधु सखा सँग लेहिं बोलाई ,बन मृगया नित खेलहिं जाई ..
आज भी बच्चे यदि विद्या-विनय-निपुण-और गुण-शील हों ,, तो फुटबाल ,क्रिकेट ,हाकी ,कुछ भी खेलें ,समाज को कोई हानि नहीं होगी ,,क्यूंकि दायित्व बोध होगा उन्हें ....
राम की दिनचर्या आज भी बच्चों के लिए चरित्र निर्माण का मार्ग प्रशस्त करती है ---------------
********************अनुज सखा संग भोजन करहीं ,मात पिता आज्ञा अनुसरही .......परिवार ,सखा और माता -पिता का महत्व
********************जेहि बिधि सुखी होई पुर लोगा ,करहि कृपानिधि सोई संजोगा ....समाज का महत्व
********************वेद पुरान सुनहिं मन लाई ,आपु कहई अनुजन्ह समुझाई ......विद्या का महत्व ,और छोटों की परवाह .
********************प्रातकाल उठि कै रघुनाथा ,मातु-पिता -गुरु नावहिं माथा .........बड़ों का सम्मान ..
********************आयसु मांगि करहिं पुरकाजा ,देखि चरित हरषहिं मन राजा .....कर्तव्यपरायण ,और व विनम्र
इस तरह राम साधारण बालकों की तरह खेलते -कूदते भी थे और स्वाध्याय भी चालू रखते थे साथ ही छोटे भाइयों और सखाओं का भी ध्यान रखते थे ,और माता पिता और गुरु के अनुगामी रहकर नगर के लोगों को सुखी करने के प्रसंग भी सोचते और उपस्थित रहते थे .इतने सारे कर्तव्यों का निर्वाह उन्होंने सहज रूप से ही किया और माता पिता गुरु को काम लेनेका कभी ताना नहीं दिया .अपनी विनय ,नम्रता सुशीलता और सहज स्नेह से राम बालपन से ही लोकप्रिय हो चले थे ...
राम विश्वामित्र के साथ जनकपुर जाते हैं वहां नगर देखने निकलते हैं ,नगर के बच्चे उन्हें घेर लेते हैं ,राम उनमे सहज ही हिलमिल जाते हैं ,..और सब के घर जा के बच्चों की चीजें देखके सराहते हैं
********************पुर बालक कहि -कहि मृदु बचना सादर प्रभुहि दिखावहि रचना ..
********************निज निज रूचि सब लेहिं बुलाई ,सहित स्नेह जाहिं दोउ भाई ..
और जब घुमने फिरने में देरी होती है तो रामजी को गुरु का डर भी लगता है ,,मधुर बातें कहके वे बच्चों को लौटाते है ---
****************कौतुक देखि चले गुरु पाहिं ,जानी बिलंबु त्रास मन माहीं ..
****************कहि बातें मृदु मधुर सुहाई ,किये बिदा बालक बरी आई ..
राम चरित का एक और प्रसंग --------------
********************गुरु के शयन पे दोनों भाई उनके पैर दबाते हैं और गुरु के पुन:-पुन: कहने पे ही उठके शयन को जाते है
********************मुनि बर सयन किये तब जाई ,लगे चरन चापन दोउ भाई ,,
********************बार बार मुनि आज्ञा दीन्ही ,रघुबर जाई सयन तब किन्हीं ...
पिटा में राम की कैसी भक्ति थी ,,.........
जब भरत राम को ,वन से वापस चलने को बहुत अनुग्रह करते हैं तो राम कहते हैं
***************** निज तन खाल खैंचि या तनु तें जौं पितु पग पानहीं क़रावों .
*****************होऊं न उरिन पिता दशरथ तैं ,कैसे ताके बचन मति पति पाऊँ
आज भी राम उतने ही प्रासंगिक हैं ,, काल औरपरिस्थिति बदली है पर देश वही है . संस्कारों की आज अधिक जरूरत है आज समाज में राम के चरित्र का अंश मात्र भी समावेश , दशा और दिशा बदलने के लिए काफी होगा ,मानस को बार बार पढ़ना ही काफी होगा ,वह स्वयम ही अपना प्रभाव छोड़ेगा ...रामजी हम सबको सद्बुद्धि देवें ,...राम का प्राकट्य उत्सव जन जन में ऊर्जा का संचार करे .. समाज में आल्हाद और ख़ुशी का स्पंदन होवे ,..सब पे रामऔर जगद्जननी जानकी की कृपा की वर्षा होवे ,,,........................राम जन्म की सब को बधाई .............
दशरथ पुत्र जन्म सुनी काना ,मानहुं ब्रह्मा नन्द सामना ..
परम प्रेम मन पुलक सरीरा .चाहत उठन करत मति धीरा .....................................................आभा ......

 जो समाज कन्या- भ्रूण ह्त्या  का गुनाहगार हो ,(१००० पे ८००)  ,,,जिस समाज में  दो वर्ष से लेकर ८५ वर्ष तक की स्त्री के साथ आये - दिन बलात्कार की ख़बरें हों ,,,,जिस समाज में समानता का अधिकार नारी के परिप्रेक्ष्य में केवल सजावटी हो ,,,,कार्यकुशलता और दक्षता के बाद भी स्त्री के कार्य-क्षेत्र में उसके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार और पैसा हो ,,,,जिस समाज में पैत्रिक सम्पत्ति पे आज भी बेटी या बहु को कानून का सहारा लेके ही अपना अधिकार लेना पड़ता हो (जो अधिकतर बेटी या बहुएं छोड़ देती हैं ),,,जिस समाज में आज भी गाँव ऐसे हैं जहाँ बेटा न होने पे संपत्ति बेटी को न देकर रिश्तेदारी में चली जाती है ,,,.................उस समाज में  ९ दिनों तक देवी के व्रत रखके फलाहार खाके अघा चुके ,और फिर भी कमजोरी का रोना रोते लोगों का   ,,,,व्रत उद्यापन पे कन्याओं को हलवा पूरी चने ((तीन दिनों तक जिसे खा -खा के कन्याएं अघा चुकी होती हैं ),,,खिलाने का क्या औचित्य है ??ये समझ से परे है !!!
.. कुछ परिवारों में तो कन्या पूजन निबटाने के लिए ,कन्याओं की प्रतीक्षा भी नहीं की जाती है ,प्रात:-काल ही हलुवा-पूरी बनाके आस-पड़ोस जहाँ भी कन्याएं हैं उन घरों में पहुंचा दिया जाताहै और नवरात्री कन्या पूजन हो जाता है ,, हम क्यों इस आडम्बर में जी रहे हैं ,,,देवी पूजन ,,व्रत ,,फलाहार सब ढोंग और आडम्बर बनके रह गया है ,,बाजार भी हमारी इस मानसिकता को खूब भुना रहा है ,,,फलाहारी सामग्री से बाजार अटा पडा है ,,,,होटलों में स्पेशल थालियाँ पेश की जा रही हैं व्रत के नाम पे फिर चाहे वो नॉन वेज़ के साथ ही पका फलाहार हो ,,,,,,
    क्या ये बाजार -वाद हमपे हावी है या आज का समाज भयंकर असुरक्षा की भावना का शिकार होता जा रहा है ,,,क्यूंकि यदि ये बढती आध्यामिकता और संस्कृती के प्रति रुझान है तो ,,,,,हर नवरात्री में इतने जागरण ,,कीर्तन ,,व्रत ,,दान ,,के बाद भी क्यूँ नहीं घट रहा कन्या भ्रूण-ह्त्या का ग्राफ ,क्यूँ नहीं बंद हो रही ऑनर-किलिंग ,क्यूँ नहीं ख़त्म हो रही बलात्कारी मानसिकता ,
आज महानगरीय संस्कृति में नारी के प्रति असहिष्णुता बढती जा रही है जो राह चलते महसूस की जा सकती है ,,,(छोटे और मंझोले शहर कुछ हद्द तक इस बीमारी से अछूते हैं ) शायद यही समय है जब हर घर में एक दयानन्द की आवश्यकता है ,,,,हमें 
अपनी सोच को बदलना ही पडेगा ,,,,केवल संवेदना रहित कर्मकांडों को अपनाने से समाज प्रदूषित ही होता है ,,हमें अपनी और अपने परिवार की संवेदनाओं को झंझोड़ने का क्रन्तिकारी कदम उठाना ही होगा ,,,,,आने वाली संतति के लिए हमें महर्षि दयानन्द बनना ही होगा ढोंग और पाखण्ड को मिटाकर शुद्ध और सात्विक नवरात्रि का संकल्प लेना होगा ,,,,कन्या-भ्रूण ह्त्या समाप्त करना होगा हमारे नवरात्र व्रत का संकल्प ---बेटियों को सामान अधिकार !!!!!,बेटी हो या बहू  उसे अपनी इच्छा से जीवन में कुछ करने की स्वतंत्रता देना होना चाहिए हमारे नवरात्र व्रत का संकल्प ,,,कन्या को पराई संपत्ति न समझ कर ,अपनी ही धरोहर मानना होना चाहिये हमारे नवरात्र व्रत का संकल्प ,,,,एक बेटी शादी के बाद जैसे ससुराल में समा जाती है ,दामाद भी अपनी ससुराल को वही स्थान दे ,वहां के सुख-दुःख का साझी हो ताकि समाज में समरसता आये दहेज़ प्रथा ख़त्म हो और कन्या के पैदा होने का किसी हो अफ़सोस ना हो ,.........ये पूजन तब ही सार्थक होगा जब समाज स्त्री-पुरुष को एक ही सिक्के के दो पहलू मान कर अर्धनारीश्वर की कल्पना को मूर्तिमान कर नारी को समानता का अधिकार देगा ,,,,, अन्यथा तो समय दर समय नवरात्री आएँगी हम मंदिरों में भीड़ और गंदगी बढ़ाएंगे ,,जगराते करेंगे ,,कीर्तन करेंगे ,,,अच्छी सी चुनरी माँ को उढ़ायेंगे  ,नारियल और हलवा पूरी खिलाएंगे और खायेंगे ,,,और दूसरे नवरात्रि की प्रतीक्षा करेंगे .......जय भवानी ...............आभा ............

Wednesday, 17 April 2013


जय त्वं देवि चामुंडे ,जय भूतार्तिहारिणी .
जय सर्वगते देवि ,कालरात्रि नमोस्तुते ..
अणु बीज में अंतर्निहित अणिमा शक्ति जो एक सूक्ष्म बीज को 'महतो महीयान वृक्ष ' बनाती है ,समस्त जागृत जगत में व्याप्त अम्बे की ही अणिमा शक्ति है ,जो सत ,असत दोनों का कारण है ----पर सत में वो अपनी नामरूपात्मक अभिव्यक्ति के साथ प्रत्यक्ष होती है ,,और असत में नहीं होती है ,,असत बिना शक्ति ,बिना शिव के अकेला ही होता है ,...यह संसार शिव-शक्ति के अंतर्मन में निहित प्रसुप्त अणिमा के स्पंदन ,सिसृक्षा का ही परिणाम है ,ये शक्ति जब तक सक्रिय नहीं होती ,शिव भी निर्विकार है ,,विश्व के रूप में परिणमन उसमे संभव नहीं ..शक्ति की चिति स्वतंत्र है ,शिव पराधीन है चिति में स्वतंत्र रूप से परिणमन संभव है ,शिव में नहीं ..शिव यदि शक्ति से युक्त है ,तभी वह सृष्टि ,स्थिति ,संहार .तिरोधान और अनुग्रह रूपी प्रपंचन कार्य में सफल होता है ,अन्यथा वह केवल शव है ,,,,परम शिव की चित शक्ति ही विश्वाकार में परिणित हुई ,समस्त सृष्टि इस भगवती अंबे की अणिमा शक्ति का ही प्रत्यक्ष रूप है ,,,,,,,,,इस संसार में कौन सा वांग्मय ऐसा है ,जो भगवती की स्तुति नहीं है ............................
................................तव च का किल न स्तुतिरम्बिके !
............................................सकलशब्दमयी किल ते तनु:.
.............................निखिलमूर्तिषु मे भवद्न्वयो ,
..............................................मनसिजात बहि:प्रसरासु च .
.................................इति विचिन्त्य शिवे !शमिताशिवे !
.............................................जगति जातमयत्नवशादिदम .
...................................स्तुतिजप़ार्चनचिन्तनवर्जिता
...............................................न खलु काचन कालकलास्ति मे ..
...................हे भगवति ये सारा संसार ,मेरा सारा जीवन तुम्हारा ही रूप है ,,सो मेरा समस्त जीवन, जीवन का क्षुद्रतम अंश भी तेरा ही जप पूजा ,और स्तुति होवे ,मेरे सारे कार्य -कलाप तेरी ही पूजा होवें ...................................................................आभा ........


जय त्वं देवि चामुंडे ,जय भूतार्तिहारिणी .
जय सर्वगते देवि ,कालरात्रि नमोस्तुते ..
अणु बीज में अंतर्निहित अणिमा शक्ति जो एक सूक्ष्म बीज को 'महतो महीयान वृक्ष ' बनाती है ,समस्त जागृत जगत में व्याप्त अम्बे की ही अणिमा शक्ति है ,...See More
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   रौद्र रूप में आये नारी तो उसको काली समझो ,,
  सौम्य भेष में आये नारी तो उसको कल्याणी समझो ..
  नारी तेरे रूप अनेकों ,समझ न पाये ऋषि मुनि जिसको ,,
    मत .............उसको ...................अबला ........समझो .............आभा ....

Thursday, 11 April 2013

      त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या ,विश्वस्य बीजं परमासि माया .
     सम्मोहितं देवि समस्तमेतत ,त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्ति हेतु: .
 सृष्टि के आदि में न असत था और न सत 
 तब न मृत्यु थी और ना ही अमृत ,
 न रात और न दिन  .
  पर कुछ न कुछ गहन दुविर्गेंय जरुर था .क्या था वह ?कोई आवरण ,कुहरा या अंधकार ? कुछ कहा नहीं जा सकता .
 हाँ था कुछ प्राणवान ,किन्तु बिना वायु के ही .वह  अपनी महिमा में प्रतिष्ठित अकेला ही था , वास्तव में उसके सिवा अन्य कुछ भी नहीं था .
  पर वह था क्या ? वास्तव में ,सबसे पहले ''तमस ''था .तम !अप्रकेत ,नाम रूप रहित केवल तमस ,जो तमस से ही आवृत  था .और यही अप्रकेत तमस  आदिशक्ति है .जिसने विष्णु अर्थात विराट को आच्छादित कर रखा था ,,वैदिक और तांत्रिक रात्रि सूक्त उसी शक्ति की महिमा के प्रतिपादक हैं ,(दुर्गा सप्तशती) .
  समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त परशिव की यही आवरणात्मिका शक्ति वेदांत प्रतिपादित माया है ,सृष्टि के लय काल में यही माया शक्ति जिसका वाचिक नाम प्रणव या ह्रीं है ,समस्त सृष्टि के बीज को अपनी कुक्षि में पालती हुई इसे सुरक्षित रखती है ,,इसीलिए इसे'' ह्रींकारी -प्रतिपालिका'' कहा गया है .
यही महामाया जब सृष्टि की कामना करती है तो इसका अभिधान या वाचक क्लीं होता है ''क्लींकारी कामरूपिणये''   और सृष्टि रचना में प्रवृत यही महाशक्ति एँ  बीज से वाच्य '  एँकारीसृष्टिरूपिण्ये  '' होती है।
 इस तरह महामाया स्वयं सृष्टि के रूप में अभिव्यक्त होती है ,अपना पालन करती हुई स्वयं में स्थित रहती है और अंत मे  स्वयं को स्वयं से आवृत करके अप्रकेत --नाम रुपादिरहित --स्थित रहती है ..ये सारा  जगत भगवती महामाया की ही अरण्यानी है ,जिसका ओर -छोर ,आदि -अंत सब महालक्ष्मी को ही ज्ञात है .संक्रमण काल , जब मानव शरीर सबसे अधिक संवेदनशील होता है , महामाया भगवती अंबे  की भक्ति में लय होकर उसे जानने का  और उसमे एकाकार हो जाने का सर्वोतम काल होता है .
भगवती महामाया, जो ब्रह्म को भी अपनी कुक्षि में पालती है, ही इस जगत की तारणहार है। हे देवी !...तुम प्रसन्न होवो ....
                    .....................देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद .
        .................................प्रसीद मातर्जगतोअखिल्स्य .
.........................................प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं ,..
........................................त्व्मीश्चरि  देवी चराचरस्य ...
          
  हमारी हिन्दू संस्कृति में चार नवरात्री में हरएक  में पहला स्थान शक्ति स्वरूपा देवी का निश्चित है ,फिर विष्णु के अनंत रूपों का समावेश है  .वासंतिक नवरात्रि तो शक्ति की आराधना से राम जन्म के उत्सव का अनुष्ठान है .दुर्गा शप्तशती और रामायण इस अनुष्ठान का अनिवार्य अंग है  .इन दोनों ही ग्रंथों में आकार से लेकर क्षकार तक सभी अक्षर मन्त्र बन जाते हैं ,और उनके उच्चारण से हमारे प्राणों ने जो कम्पन होता है उससे अदभुत आध्यात्मिक ऊर्जा का सृजन होता है  ...इस आदिशक्ति ,महामाया भगवती का ओर छोर  यद्यपि हमें नहीं पता है ,पर उसकी शीतल छाया हमें खूब मिले ,राम और शक्तिका  पूजन हमें आत्म संस्कार की ओर  प्रवृत करें और भगवती की कृपाधारा हम तक पहुंचे ,यही याचना है माँ से ......................आभा..........................................................................................

Tuesday, 2 April 2013

    सूना -सूना सा ये पथ ,रीता है मन ;
    झोली जीवन की खाली ;
     जन्म लिया दुलार पाया ;
     मात- पिता संग बाबा नाना
     सब पे ही अधिकार पाया ;
     और बढे फिर सखा- सहोदर ;
     भाई- बहन औ नाते -रिश्ते ;
     पर झोली जीवन की खाली ;
    जीवन पथ पर चलते -चलते ,
    प्यार मिला . संसार मिला ;
     धन -वैभव बच्चों का आना ,
     जीवन में उत्साह मनाना ;
      सासरे में भी रिश्ते पाए ;
     स्नेह उलीचा ,स्नेह पाया ,
     पर झोली जीवन की खाली ;
     प्यार और इजहार हमेशा ,
    इंकार और दुत्कार कहीं पर ;
   सब कुछ पाया ,खोया भी कुछ ;
    मोती से वो स्वप्न सुहाने;
    भर -भर के झोली में डाले।
    अरमानो से सजी सेज  वह ,
    उल्लासों का सुन्दर जंगल ;
    पर झोली जीवन की खाली ;
     सीने वाले ने शायद ,
    गहरी सिल दी है ये झोली ,
   मेरे अंतर में बैठा वो ;
  मुझ से बातें करता रहता ;
  उसे ढूंढने को उलटी जब ;
   झोली जीवनकी खाली ;
   अब तेरी यादों के मोती ;
   तुझ् संग बीते पल की बातें ,
  कुछ आंसू और कुछ तन्हाई ,
  स्वप्न सुहाने उस पार मिलन के ,
  अंजुरी
 भर झोली में हैं डाले ,
  यादों के ये स्वर्णिम मोती ,
जब चाहूँ  मैं चुग लेती हूँ
फिर सब यादों से मै ,अपनी ,
खाली झोली भर लेती हूँ ..
  मेरे अंतर में रहने वाले ,
 तुझ को जो पहचान सकूँ मैं ,
अपने जीवन की झोली में
 तेरे ही करतब देखूं मैं .
  सदियों से तू खेल खिलाता ;
  भर भर झोली हमें लुभाता
 पर झोली जीवन की खाली -
  पर झोली जीवन की खाली .....आभा ......



  
     
   
 
   
    शीतलाअष्टमी  ,बाह्य और आंतरिक शुद्धता का त्यौहार ,शीतला माता----हाथ में सूप ,नीम पत्र ,कलश ,झाड़ू  ,वाहन गधा , आने वाली उष्ण ऋतू के लिए स्वच्छता, जल संग्रहण .शुद्ध वायु ,शुद्ध अन्न ,और संतोष का सन्देश देती  हैं .साथ ही बसोडा का भोग  .फिर आज से बासी खाना बंद ,....कितनी सहज और वैज्ञानिकता के साथ हर संक्रमण काल में आहार विहार और निजी एवं वातावरण की स्वच्छता को अपनाना सिखाते हैं हमारे व्रत त्यौहार ,आज आवश्यकता है अपनी संस्कृति के इन नियमों के पुन: प्रतिष्ठापन की ,,,,बिन भय होत  न प्रीत गुसाईं ,,,,इसीलिए शीतला माता  के अप्रसन्न होने पे चेचक जैसी महामारी ,,[यह ,जो संक्रांति काल में ....जब सर्द गर्मी होती है और बेक्टीरिया एवं वाइरस के पनपने के लिए अनुकूल वातावरण होता है] ...के फैलने का भय दिखा कर ,व्रत ,सफाई ,और शुद्धता को जीवन में शामिल करवाया गया ..यह पर्व बाह्य और अंतस की शुद्धता का पर्व है ..,आंतरिक शुद्धता से लेके पर्यावरण की शुद्धता का पर्व ,शायद सदियों तक जो धरती शश्य -श्यामल और स्वच्छ रह गयी तो उसमे इन सब पर्वों और मान्यताओं का ही हाथ है ,यदि हम इन्हें फिर से अपना लें तो जगह -2 गंदगी के ढेर ,प्रदूषित नदियाँ और कटते पेड़ों की समस्या से निजात पाने की ओर  कदम बढ़ाना शुरू करेंगे ,पुन:पीछे लौटना पडेगा अविष्कारों के साथ -2 संस्कारों को भी अपनाना होगा तभी हम अपनी संततियों को एक स्वच्छ सुरक्षित और शुद्ध रहने लायक धरती दे पायेंगे सारे गेजेट्स के साथ -2 ..  स्वच्छता और शुद्धता का एक अनूठा पर्व,, इसे मनाएं,, अपने जीवन में उतारें ,,और पर्यावरण संरक्षण में सहयोग करें ,माँ शीतला --हमें बुद्धि दे और निरोगी करें .....आभा ...