जो समाज कन्या- भ्रूण ह्त्या का गुनाहगार हो ,(१००० पे ८००) ,,,जिस समाज में दो वर्ष से लेकर ८५ वर्ष तक की स्त्री के साथ आये - दिन बलात्कार की ख़बरें हों ,,,,जिस समाज में समानता का अधिकार नारी के परिप्रेक्ष्य में केवल सजावटी हो ,,,,कार्यकुशलता और दक्षता के बाद भी स्त्री के कार्य-क्षेत्र में उसके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार और पैसा हो ,,,,जिस समाज में पैत्रिक सम्पत्ति पे आज भी बेटी या बहु को कानून का सहारा लेके ही अपना अधिकार लेना पड़ता हो (जो अधिकतर बेटी या बहुएं छोड़ देती हैं ),,,जिस समाज में आज भी गाँव ऐसे हैं जहाँ बेटा न होने पे संपत्ति बेटी को न देकर रिश्तेदारी में चली जाती है ,,,.................उस समाज में ९ दिनों तक देवी के व्रत रखके फलाहार खाके अघा चुके ,और फिर भी कमजोरी का रोना रोते लोगों का ,,,,व्रत उद्यापन पे कन्याओं को हलवा पूरी चने ((तीन दिनों तक जिसे खा -खा के कन्याएं अघा चुकी होती हैं ),,,खिलाने का क्या औचित्य है ??ये समझ से परे है !!!
.. कुछ परिवारों में तो कन्या पूजन निबटाने के लिए ,कन्याओं की प्रतीक्षा भी नहीं की जाती है ,प्रात:-काल ही हलुवा-पूरी बनाके आस-पड़ोस जहाँ भी कन्याएं हैं उन घरों में पहुंचा दिया जाताहै और नवरात्री कन्या पूजन हो जाता है ,, हम क्यों इस आडम्बर में जी रहे हैं ,,,देवी पूजन ,,व्रत ,,फलाहार सब ढोंग और आडम्बर बनके रह गया है ,,बाजार भी हमारी इस मानसिकता को खूब भुना रहा है ,,,फलाहारी सामग्री से बाजार अटा पडा है ,,,,होटलों में स्पेशल थालियाँ पेश की जा रही हैं व्रत के नाम पे फिर चाहे वो नॉन वेज़ के साथ ही पका फलाहार हो ,,,,,,
क्या ये बाजार -वाद हमपे हावी है या आज का समाज भयंकर असुरक्षा की भावना का शिकार होता जा रहा है ,,,क्यूंकि यदि ये बढती आध्यामिकता और संस्कृती के प्रति रुझान है तो ,,,,,हर नवरात्री में इतने जागरण ,,कीर्तन ,,व्रत ,,दान ,,के बाद भी क्यूँ नहीं घट रहा कन्या भ्रूण-ह्त्या का ग्राफ ,क्यूँ नहीं बंद हो रही ऑनर-किलिंग ,क्यूँ नहीं ख़त्म हो रही बलात्कारी मानसिकता ,
आज महानगरीय संस्कृति में नारी के प्रति असहिष्णुता बढती जा रही है जो राह चलते महसूस की जा सकती है ,,,(छोटे और मंझोले शहर कुछ हद्द तक इस बीमारी से अछूते हैं ) शायद यही समय है जब हर घर में एक दयानन्द की आवश्यकता है ,,,,हमें
अपनी सोच को बदलना ही पडेगा ,,,,केवल संवेदना रहित कर्मकांडों को अपनाने से समाज प्रदूषित ही होता है ,,हमें अपनी और अपने परिवार की संवेदनाओं को झंझोड़ने का क्रन्तिकारी कदम उठाना ही होगा ,,,,,आने वाली संतति के लिए हमें महर्षि दयानन्द बनना ही होगा ढोंग और पाखण्ड को मिटाकर शुद्ध और सात्विक नवरात्रि का संकल्प लेना होगा ,,,,कन्या-भ्रूण ह्त्या समाप्त करना होगा हमारे नवरात्र व्रत का संकल्प ---बेटियों को सामान अधिकार !!!!!,बेटी हो या बहू उसे अपनी इच्छा से जीवन में कुछ करने की स्वतंत्रता देना होना चाहिए हमारे नवरात्र व्रत का संकल्प ,,,कन्या को पराई संपत्ति न समझ कर ,अपनी ही धरोहर मानना होना चाहिये हमारे नवरात्र व्रत का संकल्प ,,,,एक बेटी शादी के बाद जैसे ससुराल में समा जाती है ,दामाद भी अपनी ससुराल को वही स्थान दे ,वहां के सुख-दुःख का साझी हो ताकि समाज में समरसता आये दहेज़ प्रथा ख़त्म हो और कन्या के पैदा होने का किसी हो अफ़सोस ना हो ,.........ये पूजन तब ही सार्थक होगा जब समाज स्त्री-पुरुष को एक ही सिक्के के दो पहलू मान कर अर्धनारीश्वर की कल्पना को मूर्तिमान कर नारी को समानता का अधिकार देगा ,,,,, अन्यथा तो समय दर समय नवरात्री आएँगी हम मंदिरों में भीड़ और गंदगी बढ़ाएंगे ,,जगराते करेंगे ,,कीर्तन करेंगे ,,,अच्छी सी चुनरी माँ को उढ़ायेंगे ,नारियल और हलवा पूरी खिलाएंगे और खायेंगे ,,,और दूसरे नवरात्रि की प्रतीक्षा करेंगे .......जय भवानी ...............आभा ............
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