त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या ,विश्वस्य बीजं परमासि माया .
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत ,त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्ति हेतु: .
सृष्टि के आदि में न असत था और न सत
तब न मृत्यु थी और ना ही अमृत ,
न रात और न दिन .
पर कुछ न कुछ गहन दुविर्गेंय जरुर था .क्या था वह ?कोई आवरण ,कुहरा या अंधकार ? कुछ कहा नहीं जा सकता .
हाँ था कुछ प्राणवान ,किन्तु बिना वायु के ही .वह अपनी महिमा में प्रतिष्ठित अकेला ही था , वास्तव में उसके सिवा अन्य कुछ भी नहीं था .
पर वह था क्या ? वास्तव में ,सबसे पहले ''तमस ''था .तम !अप्रकेत ,नाम रूप रहित केवल तमस ,जो तमस से ही आवृत था .और यही अप्रकेत तमस आदिशक्ति है .जिसने विष्णु अर्थात विराट को आच्छादित कर रखा था ,,वैदिक और तांत्रिक रात्रि सूक्त उसी शक्ति की महिमा के प्रतिपादक हैं ,(दुर्गा सप्तशती) .
समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त परशिव की यही आवरणात्मिका शक्ति वेदांत प्रतिपादित माया है ,सृष्टि के लय काल में यही माया शक्ति जिसका वाचिक नाम प्रणव या ह्रीं है ,समस्त सृष्टि के बीज को अपनी कुक्षि में पालती हुई इसे सुरक्षित रखती है ,,इसीलिए इसे'' ह्रींकारी -प्रतिपालिका'' कहा गया है .
यही महामाया जब सृष्टि की कामना करती है तो इसका अभिधान या वाचक क्लीं होता है ''क्लींकारी कामरूपिणये'' और सृष्टि रचना में प्रवृत यही महाशक्ति एँ बीज से वाच्य ' एँकारीसृष्टिरूपिण्ये '' होती है।
इस तरह महामाया स्वयं सृष्टि के रूप में अभिव्यक्त होती है ,अपना पालन करती हुई स्वयं में स्थित रहती है और अंत मे स्वयं को स्वयं से आवृत करके अप्रकेत --नाम रुपादिरहित --स्थित रहती है ..ये सारा जगत भगवती महामाया की ही अरण्यानी है ,जिसका ओर -छोर ,आदि -अंत सब महालक्ष्मी को ही ज्ञात है .संक्रमण काल , जब मानव शरीर सबसे अधिक संवेदनशील होता है , महामाया भगवती अंबे की भक्ति में लय होकर उसे जानने का और उसमे एकाकार हो जाने का सर्वोतम काल होता है .
भगवती महामाया, जो ब्रह्म को भी अपनी कुक्षि में पालती है, ही इस जगत की तारणहार है। हे देवी !...तुम प्रसन्न होवो ....
.....................देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद .
.................................प्रसीद मातर्जगतोअखिल्स्य .
.........................................प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं ,..
........................................त्व्मीश्चरि देवी चराचरस्य ...
हमारी हिन्दू संस्कृति में चार नवरात्री में हरएक में पहला स्थान शक्ति स्वरूपा देवी का निश्चित है ,फिर विष्णु के अनंत रूपों का समावेश है .वासंतिक नवरात्रि तो शक्ति की आराधना से राम जन्म के उत्सव का अनुष्ठान है .दुर्गा शप्तशती और रामायण इस अनुष्ठान का अनिवार्य अंग है .इन दोनों ही ग्रंथों में आकार से लेकर क्षकार तक सभी अक्षर मन्त्र बन जाते हैं ,और उनके उच्चारण से हमारे प्राणों ने जो कम्पन होता है उससे अदभुत आध्यात्मिक ऊर्जा का सृजन होता है ...इस आदिशक्ति ,महामाया भगवती का ओर छोर यद्यपि हमें नहीं पता है ,पर उसकी शीतल छाया हमें खूब मिले ,राम और शक्तिका पूजन हमें आत्म संस्कार की ओर प्रवृत करें और भगवती की कृपाधारा हम तक पहुंचे ,यही याचना है माँ से ......................आभा..........................................................................................
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