प्रभु श्री राम का आदर्श बालक रूप ,
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श्री राम यद्यपि राजकुमार थे ,तो भी उनके बाल चरित में जो विशेषताएं हैं वो एक साधारण और संस्कारी घर के बच्चे के लिए उपयोगी ,हैं तुलसी दासजी के शब्दों में ........
********************गुरु गृह गये पढ्न रघुराई ,अल्प काल विद्या सब आई ..
********************विद्या विनय निपुण गुन सीला ,खेलहिं खेल सकल नृप लीला ..
********************बंधु सखा सँग लेहिं बोलाई ,बन मृगया नित खेलहिं जाई ..
आज भी बच्चे यदि विद्या-विनय-निपुण-और गुण-शील हों ,, तो फुटबाल ,क्रिकेट ,हाकी ,कुछ भी खेलें ,समाज को कोई हानि नहीं होगी ,,क्यूंकि दायित्व बोध होगा उन्हें ....
राम की दिनचर्या आज भी बच्चों के लिए चरित्र निर्माण का मार्ग प्रशस्त करती है ---------------
********************अनुज सखा संग भोजन करहीं ,मात पिता आज्ञा अनुसरही .......परिवार ,सखा और माता -पिता का महत्व
********************जेहि बिधि सुखी होई पुर लोगा ,करहि कृपानिधि सोई संजोगा ....समाज का महत्व
********************वेद पुरान सुनहिं मन लाई ,आपु कहई अनुजन्ह समुझाई ......विद्या का महत्व ,और छोटों की परवाह .
********************प्रातकाल उठि कै रघुनाथा ,मातु-पिता -गुरु नावहिं माथा .........बड़ों का सम्मान ..
********************आयसु मांगि करहिं पुरकाजा ,देखि चरित हरषहिं मन राजा .....कर्तव्यपरायण ,और व विनम्र
इस तरह राम साधारण बालकों की तरह खेलते -कूदते भी थे और स्वाध्याय भी चालू रखते थे साथ ही छोटे भाइयों और सखाओं का भी ध्यान रखते थे ,और माता पिता और गुरु के अनुगामी रहकर नगर के लोगों को सुखी करने के प्रसंग भी सोचते और उपस्थित रहते थे .इतने सारे कर्तव्यों का निर्वाह उन्होंने सहज रूप से ही किया और माता पिता गुरु को काम लेनेका कभी ताना नहीं दिया .अपनी विनय ,नम्रता सुशीलता और सहज स्नेह से राम बालपन से ही लोकप्रिय हो चले थे ...
राम विश्वामित्र के साथ जनकपुर जाते हैं वहां नगर देखने निकलते हैं ,नगर के बच्चे उन्हें घेर लेते हैं ,राम उनमे सहज ही हिलमिल जाते हैं ,..और सब के घर जा के बच्चों की चीजें देखके सराहते हैं
********************पुर बालक कहि -कहि मृदु बचना सादर प्रभुहि दिखावहि रचना ..
********************निज निज रूचि सब लेहिं बुलाई ,सहित स्नेह जाहिं दोउ भाई ..
और जब घुमने फिरने में देरी होती है तो रामजी को गुरु का डर भी लगता है ,,मधुर बातें कहके वे बच्चों को लौटाते है ---
****************कौतुक देखि चले गुरु पाहिं ,जानी बिलंबु त्रास मन माहीं ..
****************कहि बातें मृदु मधुर सुहाई ,किये बिदा बालक बरी आई ..
राम चरित का एक और प्रसंग --------------
********************गुरु के शयन पे दोनों भाई उनके पैर दबाते हैं और गुरु के पुन:-पुन: कहने पे ही उठके शयन को जाते है
********************मुनि बर सयन किये तब जाई ,लगे चरन चापन दोउ भाई ,,
********************बार बार मुनि आज्ञा दीन्ही ,रघुबर जाई सयन तब किन्हीं ...
पिटा में राम की कैसी भक्ति थी ,,.........
जब भरत राम को ,वन से वापस चलने को बहुत अनुग्रह करते हैं तो राम कहते हैं
***************** निज तन खाल खैंचि या तनु तें जौं पितु पग पानहीं क़रावों .
*****************होऊं न उरिन पिता दशरथ तैं ,कैसे ताके बचन मति पति पाऊँ
आज भी राम उतने ही प्रासंगिक हैं ,, काल औरपरिस्थिति बदली है पर देश वही है . संस्कारों की आज अधिक जरूरत है आज समाज में राम के चरित्र का अंश मात्र भी समावेश , दशा और दिशा बदलने के लिए काफी होगा ,मानस को बार बार पढ़ना ही काफी होगा ,वह स्वयम ही अपना प्रभाव छोड़ेगा ...रामजी हम सबको सद्बुद्धि देवें ,...राम का प्राकट्य उत्सव जन जन में ऊर्जा का संचार करे .. समाज में आल्हाद और ख़ुशी का स्पंदन होवे ,..सब पे रामऔर जगद्जननी जानकी की कृपा की वर्षा होवे ,,,........................राम
दशरथ पुत्र जन्म सुनी काना ,मानहुं ब्रह्मा नन्द सामना ..
परम प्रेम मन पुलक सरीरा .चाहत उठन करत मति धीरा ..............................
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