'' मिटने का सुख ''
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बसंत ! प्रकृति की चेतना का आभास ,
वृक्षों ने पहने कोंपल के गहने .
चेतन के स्पर्श का ,करने अभिनन्दन .
चलना होगा -- बागीचे में ,
वृक्ष से अविरत--
झरते पत्तों की सेज पे .
चर-मर ,चर-मर ,चररमरर --------
उछल रहे हैं नन्हे बच्चे --
लय बनी इस चररमरर पे
पुलकित ,मन से --
बना रहे कुछ मीठे सपने ,
औ मैं बैठी सोच रही हूँ --
पत्तों की इक पूरी पीढ़ी ने ,
किया निछावर अपने को ,
नव सृजन ,नव कोपलों हेतु .
एक हरा वृक्ष फिर से सूखा ,
बसंत में नया होकर ,निखरने को .
पीताम्बर ओढ़े ,अमलतास के वृक्षों की पांत ,
रोज नए पुष्प- गुच्छ की लटकती झालरें ,
प्रकृति के श्रृंगार को , ईश्वर का उपहार ---
पर सुगन्धित बयार के लिए ,
असंख्यों सुमन ,पल पल मिटते है ,
ब्रह्म-मुहूर्त में ही -छोड़ देते है डाली ,
नयी कलियों के चटखने की खुशी में .
एक पीढ़ी को मिटना होता है ,
नई को पुष्पित ,सुरभित करने को .
आज एक नया गुलाब खिला ,
गर्व से शीश उठाये ,
अपने सौन्दर्य औ मादकता पर इठलाता हुआ .
उसे क्या पता ----------
अभी -अभी जो बड़ा सा ,सुंदर गुलाब मुरझाया है ---
उसके मादक पराग की सुगंध ने ही ,
इस कली को चटकाया है।
देखते है हम, माता -पिता को ,अपने साथ ही ,
युवा से बुजुर्ग होते हुए .
अपना स्व निछावर कर ,पीढ़ी को पोषित करते हुए .
डूबता सूरज तो प्रतीक्षा है ,
झरने नदी में ,नदी सागर में .
एक का अस्तित्व मिटा --
दूसरा पूर्ण हुआ ...
पूर्णता या शून्यता , दोनों के एक ही माने ,
अस्तित्व का तिरोहित हो जाना .....
एक सुखद मौन ...आगत के स्वागत की राह बनाता ...
खो जाना ,मिट जाना ..ऊर्जामय हो जाना ,
नयी पीढी के सृजन हेतु ,
अग्नि में जलके --माटी में मिल जाना .
नए पुराने का वर्तुल ...
एक सत्य ,शाश्वत सत्य ...