**********नन्हे -नन्हे बच्चे --ऊर्जा के अजस्त्र श्रोत खेल रहे हैं पार्क में।। .गीली मिट्टी की सोंधी महक से मन -प्राण प्रफ्फुलित हो रहा है .ये बच्चे भी हमारे देश के भविष्य के लिए गीली मिट्टी की सोंधी महक ही हैं ,बैठ के अपने देश के भविष्य को देखना -----एक सुखद अनुभूति है ,आँखें सुख पाती हैं और मन शांत और सुरभित हो जाता है .पर आज मैं मुक्त मन से सोच नहीं पा रही हूँ। प्राण चिंता मग्न है।---------- हमारी पीढ़ी ने विकास की जिस यात्रा को देखा है वो शायद ,अन्य किसी ने नहीं। ----पिताजी का स्थानान्तरण सुदूर उत्तराखंड में भटवाड़ी में जब हुआ तो १८ किलो -मीटर की पैदल यात्रा से ,घोड़ा ,बग्घी ,बैल -गाड़ी ,और आज संसाधनों का जाल ,तख्ती -कलम दवात से लेकर की -बोर्ड ,प्रकार पेंसिल रूलर से ,कैलकुलेटर से अब लैपटॉप ,,टैबलेट और नजाने क्या -क्या ,चिट्ठी मनिऑडर से अब नेट ,विडियो कौनफ्रैन्सिंग से भी आगे की दुनिया ,नए नए सेटेलाईट और हर क्षेत्र में उच्च वैज्ञानिक तकनीकि । विकास, विज्ञान ,ज्ञान ,तकनीक ,पूंजीवाद ,बाजार वाद इस सबमे हमने एक चीज को खो दिया है -----वह है हमारे देश का बचपन ! आज हमारे देश की या यूँ कहें विश्व की सबसे बड़ी समस्या है यह ---खोता बचपन ------जिस ओर हम ध्यान ही नहीं दे पा रहे हैं । विश्व का आज पुराने से मोह भंग होता प्रतीत हो रहा है .........रोमांटिक कैशोर्य भी अब आह्लादित नहीं कर रहा है विश्व को ....और बुद्धिवादी प्रौढ़ता से सब ऊबने लगे हैंसब ...विश्व शायद अब फिर से सहज उद्दाम सहजता की ओर जाना चाहता है ...लोक -गीत ,नौटंकी ,खो -खो ,कब्बड्डी ,रामलीला ,गिट्टू ,पिट्ठू -गर्म ,कठपुतली ये सब फिर से रोमांस पैदा कर रहे हैं ...पर क्या ये संभव है की ये शताब्दी जो एक आँख से अपलक संवेदनहीन होते संस्कारों की क्रूरता और मानवता को तिरोहित होते हुए देखे और दूसरी आँख मूंद -कर शैशत्व में खो जाए ,सहज और निर्मल हो जाये ...आज हर पीढ़ी में यह द्वैत स्वाभाव सहज रूप से व्याप्त है ....अंधी प्रतिद्वंदिता ,अर्थ -उपार्जन की ललक में अनर्थ की परिणिति बचपन से ही महत्वपूर्ण होने की ललक ,रियलिटी- शोज में बच्चों को बाजार वाद की और ढकेलना ,अशोभनीय लिबास पहनाकर टैलेंट- हंट के नाम खेलने की उम्र में कठिन मेहनत करवा के [फूहड़ नृत्य और गाने गवा कर ],बाल मन को फूहड़ता की और ले जाना -अति महत्वाकांक्षी और अदूरदर्शी माता -पिता का पहला कर्तव्य बन गया है। ....वे बच्चों की संवेदनाओ और मासूमियत को विध्वंस के कगार पे पहुंचाने के अपराधी हैं ....बच्चों के शोज़ को बालपन की वेश -भूषा उर्ज्वसित ,उल्लसित करने वाले गीतों और कार्यक्रमों के माध्यम से भी प्रदर्शित किया जा सकता है ...पर नहीं छोटी- छोटीबचियों और बच्चों को शीला की जवानी और दारु देसी जैसे गीतों पे नौटंकी करने को मजबूर किया जाता है ,एक से एक अदूरदर्शी बेदिमाग लोग जब उन्हें जज करते हैं तो माँ -बाप अपने को धन्य समझते हैं ..........
समस्या सुरसा के मुहँ की तरह बढती जा रही है ..तमाम समाजशास्त्रियों और दार्शनिकों की चेतावनियों के बाद भी कोई समाधान नहीं दिख रहा है .....बाजार की निरंकुशता को व्यवस्था और समाज ने खुली छूट दे दी है ....एकल परिवारों के बच्चों को दादा -दादी ,नाना -नानी ,या और रिश्तों कोई सरोकार नहीं है ,उन्हें अपनी बाइक ,मोबाइल ,और कम्प्यूटर गेम्स चाहिए ...बुजुर्गों की खांसी से उन्हें वितृष्णा होती है ,नींद में खलल होता है ...चारों तरफ फैले ग्लैमर ,कोचिंग -क्लासेस ,गेम -क्लासेस ,म्यूजिक -डांस ,स्विमिंग जैसी असंख्यों क्लासेस ,और इलेक्ट्रोनिक डिवाइसेस की भरमार में बच्चे कहीं खो गए हैं ...उनके पास अपने लिए ही समय नहीं है ...अपने घर के लिए ही संवेदना नहीं है ...वो प्रकृति को क्या देखेंगे ...कैसे संवेदनशील बनेंगे ...खिलौनों के नाम पर काले ,भूरे ,धूसर ,सलेटी ..मटमैले रंगों के डायनासोर ,स्पाइडर मैन ,मनहूस शक्ल वाले बैट -मैन ,तरह -तरह की बंदूकें?? सुन्दरता जो कोमलता और सहज प्रकृति की चेतना होती है पूरी तरह से लोप हो रही है ,गुडिया भी है तो बदसूरत बार्बीडाल ,,थोड़ी ही देर में बच्चा बिना कार्टून और मोबाइल गेम्स के बोर होने लगता है ..कहने वाले इसे डेवलेपमेंट भी कह सकते हैं ...............शोर- शराबा है ,तीक्ष्ण ज्ञान -विज्ञान है ,तकनीकी है .आगे बढ़ने के अनन्य श्रोत हैं ......पर बचपन में निष्पाप ,उन्मुक्त खिलखिलाहट नहीं है ,भोलापन .खूबसूरती ,समवेदना ----इस बाजारू समय ने बचपन से छीनना शुरू कर दिया है ... शिशु शैशवत्व से विपन्न होटा जा रहा है इस खोये बचपन को वापिस लाने की जिम्मेदारी किसकी है ?...यदि ये बचपन वापिस न आया तो मनुष्यता खंडित हो जायेगी और दोष हमारी पीढ़ी पर ही होगा .... विश्व एक आँख को बंद करके जिस रोमांस को महसूस करके रोमांचित हो रहा है उसे हम अपने बच्चों को दें , ये दायित्व हमारा ही है ...बचपन को बचपन लौटाना ही होगा ........................इति शुभम .....
No comments:
Post a Comment