Wednesday, 24 July 2013

एक बच्ची जो संवेदनशील है परिवार के लिए             **************************************          अक्सर यदि १२ -१८ घंटों की यात्रा पे निकलें तो रोज -मर्रा की दवाईयाँभूलना ,स्त्रियों की आदत में शुमार होता है ,,तो दिल्ली से रूड़की,देहरादून तक के सफ़र में [सुबह४ बजे चलके रात्रि को १ ,११/२ बजे लौट -पौट],उस दिन मेरे साथ भी यही हुआ ,सफर लंबा थकानेवाला ,गंतव्यपे चलना- फिरना ,तबियत थोड़े दिनों से नासाज थी ,,तो दवाई रात को पहुँच के ले लूंगी येतर्क बेटे के साथ नहीं चला  ………। ,{बच्चों के साथ बोलती बंद -यूँ ही टालती होंगी दवाइयों को रोज ,,पिता के जाने के बाद बच्चे माँ की सेहत के लिए कुछ अधिक ही चिंतित रहते हैं } …………। एक चौबीस घंटे खुलने वाली दवाई की दुकान के आगे कारपार्क कर बेटा दवाई लेने चला गया और मैं बाहर निकल के खड़ी हो गयी. । पास में ही मंदिर था और मुहं अँधेरे ही श्रधालुओं की आवाजाही शुरू हो गयी थी ।कुछ फूल और प्रसाद वाले और एक चाय की रेहड़ी …।  अच्छालग रहा था श्रद्धासे लोगों को शीश नवाते देखना । मानो श्रद्धा की बयार ही बह रही थी … मैं भी उस बयार में बहने लगी और सोचा चलो मैं भी दर्शन कर आऊँ । तभी मेरा आंचल पीछे से किसी ने खींचा और आवाज आयी -----------माँ भूख लगी ------------। पीछे मुड़के देखा ,एक छोटी बच्ची करीब ५ -७ वर्ष की ,,मेरी निगाहें उस पे पडीं ,कितनी करुणाथी उसकी आँखों में कि भीख  न देने के कानून का पालन करने वाली मैं ,,,सहम गयी …ये तो बच्चों के सोने का समय है और इस छोटे से बच्चे को खाने का जुगाड़ करने के लिए उठ जाना पड़ा ,या ये भूख से रात भर सोई ही नहीं ,,मुझे अपने ऊपर  क्रोध भी आया ,,कार लॉक्ड थी … मैं जैसे अपने आप से ही बोली ,''बेटा रुको अभी भैया आता है तो देती हूँ '' …. देखा बच्ची के हाथ में एक बताशा है ,,मैंने कहा ये बताशा खालो बेटा,,,,उसने भी जैसे मेरी बात को मानते हुए एक छोटा सा टुकडा तोड़ के खा लिया । इतने में बेटा आ गया ,और मैंने उस बच्ची को कुछ रूपये दे दिये।साथ में ये कहना भी नहीं भूली की उस चाय वाले से कुछ ले के खा लो  वो उछलती हुई  फुट -पाथमें चली गयी …शायद माके पास ,,दिन हीन सी औरत !जिसके पास दो बच्चे और बिलख रहे थे  मैं थोड़ी देरऔर वहां पे रुकी देखने को की वो पैसों का क्या करती है ,ये भिखारियों का कोई रैकेट तो नहीं है ,,कहीं मैं बेवकूफ तो नहीं बन गयी [खाया- पिया मन शंकालूभी हो जाता है ]………. पर वो बच्ची अपनी माँ के पास गयी उसे पैसे दिए,, जिन्हें लेकर खुशी -२ वो औरत रेहड़ी वाले के पास चली गयी बच्चों के खाने का इंतजाम करने ,,वो तो माँ है खुश होगी ही पर जो मैंने देखा उससे मेरा दिल भर आया ,मन जार जार रोने लगा ,,मैंने देखा कि, उस छोटी सी बच्ची के हाथ में जो बताशा था वो उसने दोनों भाइयों को खिलाया और ताली बजाते हुए उनके आंसू पोंछने लगी ,,हर्ष और विषाद दोनों मेरे मन को उद्द्वेलित कर  गए ,,करुणासे आँखें भर- भर आ रही थी ,,ये है मेरे स्वतंत्र देश के मासूमों का वर्तमान ,,और भविष्य …. माँ ने बचपन में सातभाइयों के एक तिल को बाँट के खाने की कहानी सुनाते हुए समझाया था किपरस्पर प्यार से सुख ,समृद्धि और शांति आती है घर में ,,, पर ये सब शायद भूत -काल की बातें हो गयी हैं …। आज तो जो धूर्त है ,लंपट है, लुटेरा है ,छीन के खाने की कला में निपुण है वही संपन्नऔर बड़ा है ,,,क्या ये बच्चे इस देश के नागरिक नहीं हैं ,,,इन्हें तो फ़ूड सिक्योरिटी बिल का भी फायदा नही मिलेगा …ये यदि बड़े होकर चोर उच्चके बनें तो इसमें इन का क्या दोष ,,''बिभुक्षितं किम न करोति पापम'' …।बचपन से इतनी असमान्यताएं झेलने पे समाज के प्रति विद्रोह तो पनपेगा ही इनके मन में ……  . अब मैं चौराहे पे या लाल -बत्ती पे भीख मांगते बच्चों की तरफ नहीं देखती हूँ …. कहीं मैं बहक न जाऊं।।।।बस कतरा के मुहं फेर लेती हूँ …। शायद यही हमारा व्यक्तित्व हो गया है …… कतरा के निकल जाना और अपने मन को सांत्वना देना की जब दिल्ली में इतने सारे एन ज़ी ओ और दो -२ सरकारें भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो मैं ही क्या कर लूंगी।।।।बस थोड़ा बहुत जो हम बूंद भर इन बच्चों के लिए करदेते हैं क्या ये काफी है ,,,आज निराला की कविता याद आ रही है ………………. वहआता दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता  …. पेट पीठ दोनों मिल कर हैं एक … ………। चाट रहे हैं जूठी पत्तल कभी सड़क पे पड़े हुए ………. और झपट लेने को उनको कुत्ते भी हैं खड़े हुए … राह ढूंढ़रही हूँ कुछ कर पाऊ ,,ताकि कतरा के न निकलना पड़े ………………………………। आभा …………………………






2 comments:

  1. :(
    Everyone knows it to be true...
    Ignorance is bliss though..

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