Tuesday, 30 July 2013

                                                                   '' मिटने का सुख  ''
                                                                  *****************
 बसंत  ! प्रकृति की चेतना  का आभास ,
  वृक्षों ने पहने कोंपल के गहने .
 चेतन  के स्पर्श का ,करने अभिनन्दन .
 चलना होगा --  बागीचे में  ,
  वृक्ष से अविरत--
  झरते  पत्तों की सेज पे .
  चर-मर ,चर-मर ,चररमरर --------
   उछल रहे हैं  नन्हे बच्चे --
   लय बनी इस चररमरर पे 
     पुलकित ,मन से --
   बना रहे कुछ मीठे सपने ,
   औ  मैं बैठी सोच रही हूँ --
  पत्तों की इक  पूरी पीढ़ी ने ,
  किया निछावर अपने को ,
   नव सृजन ,नव  कोपलों हेतु .
   एक हरा वृक्ष फिर से सूखा ,
   बसंत में नया होकर ,निखरने को .
    पीताम्बर ओढ़े ,अमलतास के वृक्षों की पांत ,
    रोज नए पुष्प- गुच्छ की लटकती झालरें ,
    प्रकृति के श्रृंगार को ,  ईश्वर का उपहार ---
    पर सुगन्धित बयार के लिए ,
    असंख्यों सुमन ,पल पल मिटते है ,
    ब्रह्म-मुहूर्त में ही -छोड़ देते है डाली ,
     नयी कलियों के चटखने की खुशी में .
     एक पीढ़ी को मिटना होता है ,
     नई को पुष्पित ,सुरभित करने को .
     आज एक नया गुलाब खिला ,
      गर्व से शीश उठाये ,
       अपने सौन्दर्य  औ मादकता पर इठलाता हुआ .
      उसे क्या पता ----------
      अभी -अभी जो बड़ा सा ,सुंदर गुलाब मुरझाया है ---
     उसके  मादक पराग की सुगंध ने ही ,
     इस कली  को चटकाया है।
      देखते है हम,  माता -पिता  को ,अपने साथ ही ,
       युवा  से बुजुर्ग होते हुए .
        अपना स्व निछावर कर ,पीढ़ी को पोषित करते हुए .
       डूबता सूरज तो प्रतीक्षा है ,
       झरने नदी में ,नदी सागर में .
       एक का अस्तित्व मिटा --
       दूसरा पूर्ण हुआ ...
       पूर्णता या शून्यता , दोनों के एक ही माने ,
      अस्तित्व का तिरोहित हो जाना .....
      एक सुखद मौन ...आगत के स्वागत की राह बनाता ...
      खो जाना ,मिट जाना ..ऊर्जामय हो जाना ,
      नयी पीढी के सृजन हेतु ,
      अग्नि में जलके --माटी  में मिल जाना .
     नए पुराने का वर्तुल ...
      एक  सत्य ,शाश्वत सत्य ...
        जो मिट जाता है वही बचता है ...........आभा ......

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