कितना है बदनसीब जफर , दफ्न के लिए ..
दो गज जमीन भी न मिली कूये यार में ....
...........................मुगलिया सल्तनत का बादशाह ,जो हिंदुस्तान की सरजमीं का सर-परस्त था ,कैसी हकीकत बयाँ कर गया --------------------असल में यही हकीकत है ,यही सच्चाई है .........ये जमीन कब किसी अपनी हुई ,जिसपे हम पुरखों की थाती ,पूर्वजों की कमाई मान के कुंडली मार के बैठ जाते हैं और अपना जन्म सिद्ध अधिकार मान के, अपनी संतति के लिए लड़ाई -झगड़े की नीव रख देते हैं ---वो कब हमें बेदखल करदे ये उस को ही मालूम है ....बड़े -२ राजा -महाराजा ,अवतार ,धनिक ,वणिक सबने अपने और अपनी संततियों के सुरक्षित भविष्य के लिए बड़े -२ महल- दुमहले बनवाये .अपनी सीमा, जमीन ,घर के लिए लडाइयां ,मुकदमें -----------पर क्या कोई सुनिश्चित कर पाया अपनी जमीन पे अपनी दावेदारी हमेशा के लिए ......क्या हम कह सकते हैं कि आज हम जिस जमीन - मकान के मालिक हैं कल भी ये जगह हमारी ही होगी ? --------------पढ़ के ,सुन के ,देख के और अनुभव कर के भी हम समझना ही नहीं चाहते हैं ----------------हमें घर चाहिए हर शहर में ,एक होटल ,एक अदद दुकान ,शहर -२ में ऑफिस ,और भी न जाने क्या- क्या ...............अपने लालच से सामाजिक पारिस्थितिकी को बिगाड़ने के लिए .........लालच -२ -२ .........क्यूँ अपने लालच के वशीभूत होकर ,या फिर अपने को समाज में बड़ा दिखाने की प्रवृति के कारण हम इस शश्य -श्यामला धरती को कंक्रीट का जंगल बनाने पे आतुर हैं .....जीवन -यापन को जितना चाहिये उससे अधिक -और अधिक -२ ...हम संतुष्ट होना ही नहीं चाहते ....अपने से ऊपर ही देखते हैं और मजे की बात ये की ये प्रतियोगिता या कहें होड़ केवल संसाधनों के लिए ही है ........कार्य -कुशलता ,कर्तव्य -निष्ठा ,ईमानदारी ,और ज्ञान -वर्धन के लिये नहीं है .....................हर कोई सोच रहा है उसकी शर्ट ,मेरी शर्ट से अधिक सफ़ेद क्यूँ ?येन -केन -प्रकारेण हमें संसाधनों से लैस होना है। .प्रकृति का दोहन -दोहन और दोहन .परिणाम जल -जंगल -जमीन -पूरा पर्यावरण प्रदूषित और इंसानी लालच के बोझ तले दबा हुआ ......
...................अब तो हमारी पीढ़ी इस लालच की एक बानगी उत्तराखंड की वादियों में देख चुकी है .....हमने लालच में आकर जहाँ पे भी जमीन दिखी ,रहने खाने और भोग विलास का साजो सामान स्थापित कर लिया .बिना ये जाने की ये नदी का मुहाना है या किनारा ...प्रकृति को अपने लिए ही जान के हम ने निर्णय लिया! १० वर्षों से नदी यहाँ पे नहीं आयी है तो अब क्या आयेगी .....हमारी सरकारों ने भी इसमें हमारा साथ दिया ,क्यूँ ?घपल -चौथ में सरकारी तन्त्र की भी पौ -बारह होती है ..और फिर टैक्स वसूली तो है ही ......नतीजा पहाड़ की सुरम्यवादी वीराने में तबदील हो गयी .........ये जीवन की बहुत बड़ी सच्चाई है की हमें प्रकृति से उतना ही लेना होगा जितना हमें जीवन -यापन को चाहिए ..........कबीर के शब्दों में ..........................
..........................................साईं इतना दीजिये जामे कुटुम्ब समाय ...
..........................................मैं भी भूखा ना रहूँ ,साधु न भूखा जाय .......
.....यही हमारी सनातन संस्कृति है जिसकी वजह से हम प्रकृति का अरबों वर्ष तक संरक्षण कर पाए .....हमें सनातन संस्कृति का पुन:-संस्थापन करना होगा ...तभी हम अपनी संतति को एक स्वस्थ -सुरम्य और आनन्दमयी धरती ,,जो हमारी एक मात्र थाती है सौंप पायेंगे ....................कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें .
.................................................इतनी जगह कहाँ है दिले दाग दार में ...
ये धरती ,ये प्रकृति ये हमारा दिल ही तो है ......इसे अपनी हसरतों की भेंट न चढ़ाएं .....इससे एक प्रेमिका की तरह प्यार करें यही हमारी साधना होनी चाहिए ,,वरना तो ये बात दीगर है की जमीं बेवफा होती है ...और उसकी बेवफाई पे हम ईश्वर और कुदरत को कोसते हैं .............इति शुभम ............आभा .................
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