Monday, 11 November 2013

                     [ हाशिये]
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         ..... बैठे ठाले का फितूर ....
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पन्नों में हाशिये खींचने की परम्परा निभाते हुए जिन्दगी कब हाशिये पे आ लगी अहसास ही न हुआ |या यूँ कहूँ बीतते वक्त के साथ मैं ही खुद एक हाशिया बन गयी |क्या हाशिये सही में किनारे पर खिंची रेखा के उस और वाली खाली जगह  ही होते है,जहाँ हम प्रश्न -उत्तर ,या १-२-३-४ ही लिख सकते हैं  

 
        

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