Tuesday, 19 November 2013

''मानस केवल राम चरित्र ही नहीं ,व्यक्ति के लिए दर्पण ''
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सुनहु तातअब मानस रोगा |
जिन्ह ते दुःख पावहिंसब लोगा ||
मोह सकल ब्याधिन कर मूला |
तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला ||
कामबात कफ लोभ अपारा|
क्रोध पित्त नित छाती जारा||
प्रीति करहीं जो तीनों भाई |
उपजहिं सन्यपात दुःख दायी ||
बिषय मनोरथ दुर्गम नाना |
ते सब सुल नाम को जाना ||
ममता दादू कंडूइरषाई |
हरष विषाद गरह बहुताई ||
पर सुख देखि जरनि सोई छई |
कुष्ट दुष्टता मन कुटिलई ||
अहंकार अति दुखद डमरुआ |
दम्भ कपट मन माद नेहरूवा ||
तृष्णा उदर बृद्धि अति भारी|
त्रिबिध ईषना तरुण तिजारी ||
जग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका |
खं लगी कहों कुरोग अनेका ||
मानस के सात पश्नों में (जो गरूडजीने  काक भुशुण्डी जी के पूछने पे बताये थे ) मानस रोग सप्तम और अति गंभीर प्रश्न है |यदि हम राम कथा को अपने जीवन से जोड़ना चाहें तो ये उपादेय भी बहुत है |इसी प्रश्न में मानस की सार्थकता छिपी है |इसीलिए मानस का समापन राम चरित्र से न हो कर मानस रोगों से जो किया गया है उसका  मुख्य तात्पर्य यही है की हम इस कथा को भूतकाल के एक महान चित्र के रूप में न देख के ,उसके रूप में हम अपने जीवन का दर्पण देखें _____हाँ दर्पण -या शीशा --मन रूपी शीशा ..जहाँ मन का हर  रोग पकड़ में आ जाएगा तो उपचार भी सुलभ होगा __________|

रामचरितमानस एक दर्पण है जिसमे व्यक्ति अपनी त्रुटियों और अपूर्णता का अवलोकन कर अपने व्यक्तित्व का समग्र विकास कर सकता है |अन्य ग्रन्थ एक विशेष कालखंड के चरित्रों ,घटनाओं और समाज को प्रतिबिम्बित करते है ,जिस काल की घटना होती है उस काल का चित्र हमारे सम्मुख साकार हो उठता है |ऐसा नहीं है की मानस में चरित्रों का वर्णन नहीं है अपितु इसमें तो राम के साथ उनके भक्तो  प्रियजनों ,समाज और उनके विरोधियों का भी ऐसा सांगोपांग विश्लेषण है कि यदि आपके पास सूक्ष्म दृष्टि है तो आपको इसमें चित्रित  सूक्ष्म से सूक्ष्म रेखा भी दिखाई दे सकती है | ये सब होने पे भी मेरा मानना है कि रामचरितमानस केवल चित्रकथा या कथा ही  नहीं है जिसमे इतिहास को कहते हुए परमात्मा की लीलाओं का वर्णन हो| यह तो एक दर्पण है जो हमारे वर्तमान को प्रतिबिम्बित करता है |चित्र और चित्रकथाएं तो हर घर में अलग -अलग हो सकती है या न भी हो सकती हैं ,पर दर्पण !शायद ही कोई घर ऐसा हो जहाँ दर्पण या शीशा न हो |इसीलिए मानस का समापन ,मानस रोगों से किया गया है ताकि हम उसमें अपने भूतकाल को ही न देखें अपितु उसके रूप में अपने जीवन का दर्पण पा लें | जिसके माध्यम से हम सही रूप में अपने को देख सकें |हम त्रेता युग के व्यक्तियों  में अपना और आसपास के व्यक्ति का चरित्र पढ़ सकें | तो रामकथा लिखने  से पहले गोस्वामीजी गुरु से प्रार्थना कर रहे हैं___________
_गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन |
नयन अमिय दृग दोष विभंजन ||
  _तेही करी बिमल बिबेक बिलोचन 
|बरनऊं राम चरित भव मोचन || 
कि आप  मेरे नेत्रों का दोष दूर करें क्यूंकि अभी तो मैं  आसपास के चरित्रों  को ही ठीक से  नहीं देख पा रहा हूँ तो  त्रेता युग में हुए भगवान के  चरित्र को कैसे देखूंगा | गुरु के चरणों की धूल को उन्होंने अंजन की उपमा दी है जो दृष्टि दोष दूर करता है और निर्दोष दृष्टि देता है |अर्थात  गुरु की कृपा से विवेक पूर्ण उज्ज्वल दृष्टि मिले जिससे त्रेता युग मेंश्री राम के चरित्र को आज के परिप्रेक्ष्य में ही देख सकें .|पर जब अयोध्याकांड लिखना शुरू करते हैं तो पुन: गुरु की चरण रज चाहते हैं ,अब! जब पहले ही बालकाण्ड में  स्वीकार कर लिया किप्रभु चरित्र दिखाई दे रहा है तो फिर से क्यूँ चरण रज चाहिए ?तो उत्तर है अभी तो केवल श्री राम दिखाई देते हैं परअब  जो चरण रज मिलेगी  उससे  अपने मन के  दर्पण को साफ़ करके मैं रघुनाथजी के विमल यश का वर्णन करना चाहता हूँ |
श्री गुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि |
बरनऊँरघुवर विमलजसु जो दायक फल चारी ||
तात्पर्य ये है की गुरु से पहले प्रभु को देखने की दृष्टि मिली थी पर दर्पण नहीं मिला था जिसमे, हम भी -श्री राम को अपने साथ देख सकें | जब तक हम रामजी के साथ न होंगे सही अर्थों में श्री राम को देखने की सार्थकता नहीं होगी | इस प्रकार गोस्वामीजी एक गूढ़ संदेश दे रहे हैं| वे विवेक की तुलना दृष्टि से करते हैं और दर्पण की मन से |रामचरित्र मानस में जो ये ''मानस'' जुड़ाहै ये मन ही है , यदि मन रूपी दर्पण स्वच्छ होगा और दृष्टि परिष्कृत होगी तो ही रामजी का  चरित्र सार्थक होगा |ये एक विलक्षणसंकेत है गोस्वामीजी का 
दशरथ पुत्र जन्म सुनी काना |
मानहु ब्रह्मानन्द समाना ||
परमानन्द पूरी मन राजा |
कहाबोलाईबजावहु बाजा ||
दशरथजी ने राम को पुत्र रूप में पा लिया है |वो ब्रह्मानन्द में समागये हैं |अब प्रभु को पाने से भी अधिक क्या कोई आनन्द है जो वो आनन्दके लिए बाजा बजाने को कह रहे हैं हाँ वे इस अनुभूति को सब के साथ बांटना चाहते हैं|वैसे तो प्रभु सबको ही प्राप्त हैं पर विरले ही होते हैं जिनको इसका भान हो पाता है ,सो राजा इस अनुभूति को बाँटना चाहते हैं |बालकाण्ड में दशरथजी केवल राम को ही देखते हैं पर  अयोध्या कांड में जब गोस्वामी जी गुरु से दर्पण मांग रहे हैं तो देखिये ______________
त्रिभुवन तीन काल जग माहि |
भूरी भाग दशरथ सम नाही||
मंगल मूल मय राम सुत जासु |
सो कछु कहियथोर सबु तासु ||
दशरथ से भाग्यवान तीनोलोकों में कोई नहीं है और उस पर राम जैसा पुत्र |ये सब सुन के तो राजा को फूलजाना चाहिए पर नहीं वो अपने लिए दर्पण मंगवाते हैं और उसमें अपना चेहरा देखते हैं ____________
रायँ सुभाय मुकुर कर लीन्हा|
बदनु बिलोकि मुकुट सम कीन्हा ||
यहाँ पे तुलसी का गुरु से दर्पण मांगने का अभिप्राय समझ आता  है | श्री राम तो पूर्ण हैं ,समग्र हैं ,पर मात्र उनकी पूर्णता को देख कर और उनके संग रह के हममें भी पूर्णता  नहीं आ जाएगी |इसकेलिए हमे अपने मन मुकुर को स्वच्छ रखके रामजी जैसा बनने का प्रयास करना पड़ेगा | ऐसे ही ,जैसे किसी गरीब की गरीबी किसी धनी व्यक्ति की प्रशंसा करने से या उसके निकट रहने से दूर नहीं होतीउसके लिए प्रयास करना पड़ता है |
और दर्पण है भी बड़ी अनोखी वस्तु |ये प्रिय और झगड़ालू दोनों एक साथ है | जब कोई व्यक्ति दर्पण देखता है तो उसे प्रसन्नता होती है और अपने दोष भी दिखाई देते हैं जिन्हें वो दूर करने का भरसक प्रयत्न करता है ताकि सुन्दरता बनी रहे यानी दर्पण देखने का अर्थ हुआ अपनी आँखों से अपनी कमी देखना और विवेकी दृष्टि से उसे दूर करना |पर यदि कोई दूसरा हमें कह दे ___जा शीशे में मुहं देख के आ ! तो हम क्षुब्ध हो जाते हैं |तो मानस को स्वच्छ व् निर्मल रखने को और रामचरित्र से अपने जीवन को सार्थक  करने के लिए गोस्वामीजी  ने मानस को ही दर्पण बना दिया है |एक ऐसा ग्रन्थ जो जीवन में  भगवदता  लाता है और सदैव  प्रभु का सानिध्य प्रदान करके मनोमालिन्य ,भय ,जड़ता को दूर कर चेतना और जागृती का  संचार करता है |...और भी कई उदाहरणों से जैसे अहिल्या उद्धार ,त्रिजटा मरण ,शुरपनखा ,सीता हरण ,जटायू ,शबरी ,बलि सुग्रीव इत्यादि से मानस रोगों को विस्तार से बताया गया है रामचरित मानस में बस आवश्यकता है श्रद्धा और सूक्ष्म दृष्टि की जो रामजी के समीप जाने के निर्णय मात्र से ही आजाती है -----------रामजी कल्याण करें _____________________________आभा ____________________


                                                                                                                                                                                                   








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