'' सखि फिर बसंत आया .''
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फिर चली आयी निगोड़ी ! कोयल ये काली मतवाली ,कानों में रस घोले बोली |बोली क्या! पंचम सुर में डोली ,सखि बसंत आया -सखि बसंत आया |
तरु -वासिनी ,अंतर्यामिनी ,तुझे किसने बतलाया इसका आना ?स्वागत में बसंत के दूर देश से आकर सदा ही गाये तू! ये मधुर तराना |कुहू कुहू बोली कोयल तब ! खिड़की खोलो बाहर झांको --सर्दी की ठिठुरन को दूर भगाता ,नर्म धूप की ऊष्मा में ,सुरभि की गागर भर लाया ! सखि बसंत आया |
अरे वाह ! सच में ही बसंत का आगाज हुआ है |हिम में तम में कोहरे की चादर में सोती प्रकृति को मानो अनंग मदन का बाण लगा हो |बसंत पंचमी अपनी सम्पूर्ण मादकता के साथ द्वार खड़ी इठला रही है |कामदेव की सखी रति अपनी पूरी सजधज के साथ उतर आयी है धरती पे, अपने प्रणय देवता को रिझाने को --जो, शिव के शाप से '' बिनु वपु व्यापहिंसभी पुनि ''और ''अबते रति तव नाथकर ,होइहिं नाम अनंग '' बिना शरीर के ही सब जगह व्याप्त है |तो उसको रिझाने का श्रृंगार भी अलौकिक ही होगा | वो कामदेव! जिसने शिव की समाधि को भंग करने के लिए लोक हित हेतु अपने प्राणों का बलिदान कर दिया ,लेकिन शिव को जगा भी दिया अपने फूलों के बाण और पराग के शर से ,वो ही कामदेव वसंत में सृजन ,प्यार ,मनुहार बन आता है ,अपने पूरे वैभव के साथ अनगिनत आयामों में ,आह्लाद और अमृत लुटता हुआ | बसंत का आगाज ही सरसों के चटख पीले फूलों की दूर तक फैली मखमली चादर ,और सरसों के खेतों की हरियाली के साथ होता है , मानो माँ प्रकृति ने रेशमी हरी ,पीले बूटों वाली मनभावन साड़ी पहनी हो जो दूर क्षितज पर जाके व्योम की नीलिमा से मिलके नीले आंचल का अहसास करवाती है जिसपे उदित होते सूर्य की सिंदूरी आभा और धूप की सुनहरी किरणों ने मिल के लहरिया जरी गोटे का काम करके उसे और भी सुंदर बना दिया है | महादेवी जी के शब्दों में ---,
कुमकुम से सीमान्त सजीला ,
केसर का आलेपन पीला |
भारतीय मनीषा में बसंत की अवधारणा ,नव सृजन ,नित नवता का आभास लिए हुए है ,प्रकृति का कण -कण मानो सृजनोत्सव मनाने को आतुर है -निरालाजी के शब्दों में ---
नव गति नव लय ताल छंद नव ,
नवल कंठ नव ,जलद मंद्र नव ,
नव नभ के नव विहग वृन्द को ,
नव पर नव सुर दे------------- |
करवटें बदलता मौसम ,अमरूद ,सेब ,आडू .खुबानी ,बादाम ,आलूबुखारे के वृक्षों की छोटे -छोटे टिमटिमाते -गुलाबी -सफ़ेद -पीले फूलों से लदी डालियाँ और फिजां में तिरती इन फूलों की मधुर सुगंध |आम के वृक्ष पे छोटे- छोटे दहकते लाल पत्ते और सुनहरी मंजरी |बौर के साथ -साथ लगता है कि आम्र वृक्ष भी बौरा गया है | आम की बौर ,टेसू के फूल और महुआ की मद मातीसुगंध में यूँ लगता है जैसे मन धरती पे है और शरीर फुनगी -फुनगी चढ़ के डोल रहा है | शहतूत का वृक्ष रातों रात नव पल्लवों से भर जाता है और रातभर में ही जाने कहाँ से अनगिनत खंजन पक्षी भी आ जाते हैं इन नर्म नाजुक पत्तों का स्वाद लेने को | बसंत का आगाज होते ही नीम्बू ,नारंगी ,संतरे के फूल उपवन को महका देते है | अनार की छोटी- छोटी लाल कलियाँ ,बौटल ब्रुश के रक्तिम पुष्प , बेल ,रुद्राक्ष ,जामुन ,खैर ,आंवला, हरड ,बहेड़ा ,पीपल ,मौलश्री ,के नव पल्लव मानो नव गीत की ही पीठिका रचने लगते हैं | नीम के वृक्ष पे असंख्यों छोटे -छोटे सितारों जैसे सफ़ेद फूल उग आये है मानो दीपकों की झिलमिलाती छाँव का एक संसार ही रच गया हो | बसंत आते ही पारिजात के छोटे छोटे नारंगी धवल पुष्पों का मखमली कालीन रात्रि के अंतिम प्रहर को ही वृक्ष के नीचे बिछने लगता है औरपुष्प सन्देश देते है ,कान्हा राधा और गोपियों संग आये थे यहाँ वसंतोत्सव मनाने ,हम उन्हीं के चरणों में समर्पित फूल हैं |गेंदे की क्यारियाँ ,चम्पा चमेली बेला ,मोगरे और वसंत मालती की लताएँ , गुलाब, कनेर ,डहेलिया ,पैंजी ,डेजी , लिली .ट्यूलिप ,हेसेंथ ,की क्यारियाँ और बहता सुगन्धित समीर --आमन्त्रण देता प्रतीत होता है आकाश में उमगते गुलाबी बादलों को | कश्मीर में सुदूर क्षितज तक फैली केसर की क्यारियाँ ,पहाड़ो में फूलने वाली पीली चटकीली फ्यूंली ,और बुरांश के लाल गुलाबी सफ़ेद वन ,सनुद्र किनारे काजू के फलों की लाल दहकती पंक्तियाँ और समुद्री पाखी की उड़ती कतारे ,वसंत के आह्लाद को और कई गुना बढ़ा देती हैं |रातकी रानी की कलियाँ ,रात्रि के प्रथम प्रहर से ही चटखने लगती है और आंगन मह -मह -महकने लगता है |
कचनार की खुबसूरत अनछुई कलियाँ मानो भवरों को गुंजन के लिए अपनी और आकर्षित करती हैं |बांस के नए पत्तों से बने झुरमुट और हवा से बजते कीचकों से निकलते मधुर स्वर बसंत का अनमोल उपहार ही तो हैं |स्वीट पी की झालरें यूँ प्रतीत होती हैं जैसे तितलियों ने अपने हाथों से शिव का रंग बिरंगा सुगन्धित सेहरा बुना हो | भांग की कोपलों को खाके गुलाटी मारते तोतों को देखने का अपना ही आनंद है ,तरह तरह के पक्षी ,कीट -पतंगे .भँवरे ,रंग बिरंगी तितलियाँ और उस पे माहौल को और खुशनुमा बनाती आकाश में ऊँची और ऊँची उडती रंग -बिरंगी पतंगें मानव मन को मदमस्त कर देती है |रचनाधर्मिता ,श्रृजन,चेतना का प्रवाह प्रकृति से मानव की ओर होता है |
वसंत ऋतू उत्सव ,आनंद ,उमंग ,उल्लास और चेतना की द्योतक है |कवियों ने वसंत को ऋतुओं का राजा कहा है |और है भी हर सुमन में संकेत होता है मिलन और विरह का |साहित्य वसंत के वर्णन से सराबोर है "कलिन में कुंजन में केलिन में कानन में ,',बगन में बागन में बगरयो बसंत है '' | बसंत मधु ऋतू है | कालिदास ने ऋतू -संहार में बसंत का जैसा वर्णन किया है वैसा कहीं नहीं दिखाई देता --
द्रुमा सपुष्पा: सलिलं सपदम ,
स्त्रीय सकामा: पवन: सुगंधी:|
सुखा: प्रदोषा: दिवसाश्च रम्या:,
सर्व प्रिये चारुतरं वसंते ||
बसंत के आगमन पे आदिकाल से ही उत्त्सवों की परम्परा रही है | कहीं वसंतोत्सव तो कहीं मदनोत्सव | विश्व के अन्य देशों में भी वसंत को अलग अलग तरीकों से आनंद और उत्साह से मनाया जाता है | अतीत में वसंत का नाता प्रेम ,आनंद और कामनापूर्ति के साथ था पर अब इसे सरस्वती पूजन के रूप में मनाया जाता है | सर्वप्रथम वीणा वादिनी से वरदान --या कुन्देन्द्युतुषार हार धवला ,या शुभ्र वस्त्रा भ्रिता...वर दे वीणा वादिनी वर दे .....हंस वाहिनी देवी .... फिर पीले वस्त्र ,पीला खाना ,मीठे चावल ,गुड़ . नृत्य संगीत|
वसंत प्रेम का प्रतीक है ,फागुन तो फगुआने की ही ऋतू है ,होली में उत्सवधर्मिता चरम पे होती है ,तो अब वैलेंटाइन डे की भी धूम होती है | ये सब शुद्ध प्रेम का ही प्रतीक है| मौसम खुलते ही युवा जोड़े उद्यानों में चहलकदमी करने लगते है ,एक दूसरे में खोये संवादरत जोड़ों को देख के रास्ता बदल लेना मेरी आदत में शुमार है | किसी कवि ने कहा भी है --------
इधर दो फूल मुहं से मुहं सटाए बात करते हैं ,
यहीं से काट लो रास्ता यही बेहतर ,
हमें दिन इस तरह के रास आये नहीं ये दीगर ,
तसल्ली है कहीं तो पल रहा है प्यार धरती पर |
उम्र की आग का परचम उठाये बात करते हैं ,
यहीं से काट लो रास्ता यही बेहतर |
और सुभद्रा कुमारी चौहान की वो कविता 'वीरों का कैसा हो बसंत '---------
भर रही कोकिला इधर तान ,
मारू बाजे पर उधर गान |
है रंग और रण का विधान ,
मिलने को आये आदि अंत ,
वीरों का कैसा हो बसंत ,
बसंत को एक नया अर्थ देती है | केसरिया अर्थ ,मात्रिभूमी के लिए प्राणों के उत्सर्ग का अर्थ |मेरा रंग दे बसंती चोला ,कहके तरुणाई को भी ललकारता है बसंत! एक नई चेतना और नई जागृति के साथ |
प्रेम पर्व आया है | मधु ऋतू आयी है | प्रकृति का अनुपम उपहार |एक जानी पहचानी आहट लिए ---इसे मोबाईल ,लैपटॉप .एस ऍम एस ,मेसजेस की दुनियाँ में रह के नहीं महसूस किया जा सकता है | प्रकृति का सानिध्य चाहियेगा | काफी हॉउस को छोड़ के बागीचों में जाना होगा तभी मन प्राण स्पन्दित होंगे |वासंती हवा में भीगना होगा ,सुगन्धित बयार में नहाना होगा तभी प्रेम और वासना में अंतर समझ आयेगा |इस बलात्कारी युग में जहाँ फूल सी बच्ची से लेकर किसी भी उम्र की स्त्री सुरक्षित नहीं है |जहाँ छोटे छोटे गेंदे और गुलाब -बाल मजदूरी करने को और कचरा बीनने को विवश है |जिनके सपने युवावस्था तक पहुंचने से पहले ही अधेड़ हो जाते हैं |,जहाँ फूल पे बैठी तितली के पीछे भागने की उम्र में फूल सी बच्ची- चौराहे पे फूल बेचते नजर आती है |जहाँ गुब्बारों से खेलने की उम्र में लाल बत्ती पे छोटे -छोटे ,नन्हे -मुन्हे ,गुब्बारे बेचते नजर आते हैं |जहाँ प्यार परवान चढने से पहले ही समाज की भेंट चढ़ जाता है |जहाँ जात-पात के भरम में पड़के प्रेम असमय ही

काल कवलित होक दम तोड़ देता है | ऐसे युग में जो कंक्रीट का जंगल है और जहाँ भावनाएं भी कंक्रीट ही हो गयी हैं या टैक्नोलोजी में उलझ के मशीनी हो गयीं हैं ,हमें वसंत को जीवन में उतारना ही होगा | बागों में ,उद्द्यानों में ,पार्कों में जाना होगा तभी मन प्राण स्पंदित होंगे |कलुष मिटेगा | सृष्टि से जुडाव होगा तो मासूमियत लौटेगी और प्रेम और प्यार पनपेगा| असल में वसंतोत्सव होगा! बागों में, नदिया के किनारे ,समुद्र के किनारे--काजू के खेतों में ,पर्वत प्रदेश में- बांज -बुरांस के जंगल में ,शहर के बाहर- खेतो में फूली सरसों की क्यारियों में और फूलों के बागीचों में और आपके घर के पास के उद्द्यान की छोटी सी गेंदा गुलाब की महकती बगिया में |
सभी को बसंत पंचमी की ढेर सी शुभ कामनाएं | प्रेम ,प्यार ,उल्लास और मनुहार के साथ बसंत आये सबके जीवन में | माँ शारदे का वरदान सभी को मिले |.............आभा ............