Sunday, 23 February 2014



विश्व- पुस्तक मेला ---एक सुखद अनुभव ! मन आनन्दित है ,आह क्या मैं सचमुच में यहाँ हूँ ! यही तो है मेरी कल्पनाओं का परी लोक |जैसे मशीन में पैसा डालने पे बच्चे की झोली में अनगिनत रंग-बिरंगी कैंडी का झरना बहने लगता है वैसे ही पुस्तकों का समुद्र लहलहा रहा है | मैं फुदकी चिड़िया की मानिंद कभी इस स्टाल -कभी उस स्टाल पर घूमती रही |किताबों का सैलाब ,हर विषय पे मन माफिक पुस्तकें एक ही जगह मिलने की ख़ुशी क्या होती है ये यहीं पे आके महसूस किया जा सकता है |गीताप्रेस हो या पैन्गुइन प्रकाशन भीड़ का रेला बह रहा है | यहाँ आके लगता है कि आज भी किताबों के प्रति दिलचस्पी बरकरार है लोगों में | हिन्दुस्तानको सही में देखना हो तो इस तरह की जगहों पे ही देखा जा सकता है ---पोलिटिक्स से परे एक सुकून भरा माहौल |
एक सुकून यह भी कि मेरी लाइब्रेरी में यहाँ मौजूद कई लेखकों की पुस्तकें हैं |बेस्ट सेलर भी और चर्चित भी |
सबसे बड़ी ख़ुशी छोटे-छोटे बच्चों को देख के हुई जिन्होंने पुस्तकें खरीदते ही सीढ़ियों में ,पेड़ के नीचे लॉन में हर जगह बैठ के पढना शुरू कर दिया , इतनी उत्सुकता और ऐसे पढ़ रहे हैं मानो अभी ही परीक्षा देनी है |यही तो आशा है हमारे सुनहरे भविष्य की |
क्या खरीदूं क्या छोडूँ मन है की बेलगाम हो रहा है ,बुद्धि समझाती है इतना पढ़ पाएगी ? मन कहता है क्यूँ नहीं जहाँ चाह वहां राह ! खूब सारी पुस्तकें खरीद लायी हूँ | अभी सबके विषय में टिप्पणीं और लेखक की कलम से पुस्तक विवेचना पढ़ रही हूँ |
हिंदी युग्म के प्रकाशक श्री शैलेशजी से भेंट एक सुखद और मधुर अनुभव रहा ---बेहतरीन काम कर रहे हैं ,मेरी ढेर सी शुभ कामनाएं उन्हें एक उभरता हुआ सितारा हैं वो ! उनके स्टाल से भी कुछ पुस्तकें खरीदीं और सुश्री वन्दना गुप्ता लेखिका ''बदलती सोच के नये अर्थ ' और श्री किशोर चौधरी लेखक ''चौराहे पे सीढियां '' से मिलना भी एक सुखद अनुभूति थी |
बहुत समय से कुरान पढने की इच्छा थी | यहाँ पे फ्री में बंट रही थी तो सोने पे सुहागा हो गया |
लौट के सभी ने एक -एक पुस्तक ले ली और पन्ने पलट के अवलोकन करना चालू | किसी को नमक स्वादानुसार में नमक ज्यादा लगा तो कोई इस्लाम फैक्ट्स वर्सेस फिक्शन को पढ़ के हतप्रभ था कि ये धर्म इतना कट्टर नहीं है | कवितायें कहानियाँ उपन्यास ,लेख ,बेस्ट सेलर और रिलीजियस बुक्स ! आज अजय की बहुत कमी महसूस हो रही थी ,वो मेरे लिए ढेरों पुस्तकें खरीद देते थे और फिर मैं पढ़ के उनको क़िताब में क्या है सुनाया करती थी |----  आभा ----

No comments:

Post a Comment