भैसन्ही माह रहत नित बकुला '' बहुत पहले शरद जोशी की इस रचना में भैंसों का जिक्र आया था .बगुलों और भैंसों के चरित्र को क्या खूबी से बयाँ किया गया था --बगुले अक्सर वहीँ रहते हैं जहाँ भैंसें चर रही हों या बैठी जुगाली कर रही हों .भैंसें वेजिटेरियन और बगुले नॉनवेज,एक चौपाया एक दो पाया पाखी ,एक धीमी गति पे विश्वास करने वाला और एक फुर्तीला , घाघ पर पता नहीं क्यूँ दोनों सदैव आस-पास ही रहते हैं .यदि बगुले को गौर से देखा जाय तो स्थानीय नेता सा ही लगता है | शिकार पे नजर रखे विनय की प्रतिमूर्ति |उपर से धीर -गम्भीर अंदर से महा चालू और चालाक |भैंसें गंदले और साफ़ जल में अंतर नहीं कर पाती और जल देखते ही तालाब में उतर जाती हैं और साफ़ जल को भी कीचड़ कर देती हैं और गंदला जल तो उन्हें निमन्त्रण देता सा प्रतीत होता है | नेता भी भैंसों की तरह ही होते है ये अपने छुद्र लाभ के लिए किसी भी गंदे या उलझन भरे कार्य में उतरजाते हैं और अपने को गन्दा करने के साथ -साथ -समाज के आर्थिक ,सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को कीचड़ के देते हैं |नव दौलतिया संस्कृति के सारे कुकर्मों से ये ही व्यक्ति जुड़ा होता है |
भैंस और बगुले की ये दोस्ती किसी वैचारिक या सैद्धांतिक आधारपे है ये साबित करना तो मुश्किल है पर बगुला रूपी नेता चालक बड़ा है वो आराम से बैठी भैंस को पानी में जाने को लालायित करता है और एक बार भैंस गई तालाब में तो ---एक मछली सारे तालाब को गन्दा करती है और यहाँ तो पूरी साबुत भैंस ही उतर रही है तालाब हिचकोले खायेगा ,कीचड़ डोलेगा और किनारे बैठा बगुला आराम से मछलियाँ खायेगा .ऐसे ही जैसे भैंसें बगुलों को अपनी पीठ पे बैठा लेती हैं असामाजिक और काले धंधे में लगे लोग इन नेताओं को आदर देते हैं और नेता भी इनके बिना रह नहीं पाता | राजनीती में भी कम लातिहाब नहीं है इंच भर भी संवेदना नहीं होती पर आंसू जोर शोर से टेली -कास्ट किये जाते हैं | किनारे बैठा बगुला जनता रूपी परेशानहाल लोगों और धरने प्रदर्शन करने वालों का इंतजार करता है और अपने द्वारा ही पैदा की गयी समस्याओं के समाधान के लिए उन्हें लपक के अपने बगुले पन का प्रदर्शन करता है .
मुझे लगता है किसी भैंस ने ये कालजयी रचना पढ़ ली होगी | और उसने सबको जाके बताया होगा कि देखो बहनों ये नेता तो रोज ही दूरदर्शन पे आ रहे हैं और हमें कोई पूछ भी नहीं रहा ,यहाँ तक कि ये कहते हैं 'भैंस के आगे बीन बजाओ भैंस खड़ी पगुराय ',अरे शरद जी ने तो कहा था कि कीचड़ वाली भैंस की पीठ पे बैठ के ही ये अपना धंधा चलाते हैं फिर हम नेपथ्य में क्यूँ हों !और सभी ने निश्चय किया हम अपनी ताकत से सरकार को हिला देंगी ,जिम्मेदारी मिली आजमखान की भैंसों को क्यूँ कि वो क्वीन विक्टोरिया की कैटेगरी में आती है ,और देखिये अक्ल बड़ी या भैंस वाली भैंस ने क्या कांड रच दिया ,सारा पुलिस महकमा ,सारे टीवी चैनल, हिल गये .गोबर सी महकने लगी बसंत ऋतू | बगुले और भैंस का पवित्र रिश्ता एक बार फिरसे अपवित्र हो गया |__________________ आभा
भैंस और बगुले की ये दोस्ती किसी वैचारिक या सैद्धांतिक आधारपे है ये साबित करना तो मुश्किल है पर बगुला रूपी नेता चालक बड़ा है वो आराम से बैठी भैंस को पानी में जाने को लालायित करता है और एक बार भैंस गई तालाब में तो ---एक मछली सारे तालाब को गन्दा करती है और यहाँ तो पूरी साबुत भैंस ही उतर रही है तालाब हिचकोले खायेगा ,कीचड़ डोलेगा और किनारे बैठा बगुला आराम से मछलियाँ खायेगा .ऐसे ही जैसे भैंसें बगुलों को अपनी पीठ पे बैठा लेती हैं असामाजिक और काले धंधे में लगे लोग इन नेताओं को आदर देते हैं और नेता भी इनके बिना रह नहीं पाता | राजनीती में भी कम लातिहाब नहीं है इंच भर भी संवेदना नहीं होती पर आंसू जोर शोर से टेली -कास्ट किये जाते हैं | किनारे बैठा बगुला जनता रूपी परेशानहाल लोगों और धरने प्रदर्शन करने वालों का इंतजार करता है और अपने द्वारा ही पैदा की गयी समस्याओं के समाधान के लिए उन्हें लपक के अपने बगुले पन का प्रदर्शन करता है .
मुझे लगता है किसी भैंस ने ये कालजयी रचना पढ़ ली होगी | और उसने सबको जाके बताया होगा कि देखो बहनों ये नेता तो रोज ही दूरदर्शन पे आ रहे हैं और हमें कोई पूछ भी नहीं रहा ,यहाँ तक कि ये कहते हैं 'भैंस के आगे बीन बजाओ भैंस खड़ी पगुराय ',अरे शरद जी ने तो कहा था कि कीचड़ वाली भैंस की पीठ पे बैठ के ही ये अपना धंधा चलाते हैं फिर हम नेपथ्य में क्यूँ हों !और सभी ने निश्चय किया हम अपनी ताकत से सरकार को हिला देंगी ,जिम्मेदारी मिली आजमखान की भैंसों को क्यूँ कि वो क्वीन विक्टोरिया की कैटेगरी में आती है ,और देखिये अक्ल बड़ी या भैंस वाली भैंस ने क्या कांड रच दिया ,सारा पुलिस महकमा ,सारे टीवी चैनल, हिल गये .गोबर सी महकने लगी बसंत ऋतू | बगुले और भैंस का पवित्र रिश्ता एक बार फिरसे अपवित्र हो गया |__________________ आभा
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