'' माँ का लाडला मान गया ''
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जब दिमाग कुछ न करने के मूड में हो ,विचारों को सर्दी लग गयी हो तब दिल को अचानक ठिठोली सूझे ! दिमाग से पंगा लेने की!
शरीर का तापमान अचानक बढ़ जाए लिखने का मन हो जाए ( लिखने के लिए शरीर का तापमान ९८ .४ से कुछ अधिक ही होना मांगता है न ) तो बिना दिमाग के जो लिखा जाए वो ही मैंने आज लिखा ,हल्का फुलका बिना अर्थ का ------कोहरे की चादर पहने ठिठुरन की बंधक बनी धरती को सर्दी से निजात दिलाने की एक माँ की अपने बेटे से मनौवल ---------------
उठो लाल अब आँखें खोलो ,
पानी लाई हूँ मुहं धो लो |
उठो छोड़ बादल की रजाई ,
जाओ जग में करने उजेरा |
बादल की मखमली रजाई ,
कोहरे की कम्बल की नरमाई ,
मुहं पे ओढ़ सूरज मचला ,
सोने दे माँ सोने दे मुझ को |
रोज सवेरे मैं उठता हूँ ,
और काम पे लग जाता हूँ ,
बदले में मैं क्या पाता हूँ ,
तू ही समझा दे ये मुझको |
साँथरी ये मखमल की मेरी ,
उठने का ना मन है मेरा ,
इंसा के बेटे, मन मर्जी करते !
क्या एक अनोखा तेरा बेटा ?
सोने दे, माँ! सोने दे मुझ को ,
कुछ दिन तो, मन की करने दे मुझ को |
अरे लाडले! भोर हुई ,
पर ये अँधियारा है बड़ा हठीला ,
जाग -जाग ओ मेरे मुन्ने !
जा कर दे ,जग में उजियारा |
जब तक तू ना जागेगा पगले ,
पक्षी कलरव कैसे गायेंगे ?
बछड़े भूखे रह जायेंगे !
पेड़ पौधे भी क्या खायेंगे ?
धरा बाट जोहती है तेरी ,
जागो मेरे जीवन- धन जागो !
कुहरे की इस मोटी चादर से ,
जगति को तुम मुक्ति दिलाओ !
हल्का सा मुँह खोला सूरज ने ,
मरियल सी, धूप खिली धरती पे ,
पर फिर वो हठी मान -धन माँ का ,
ओढ़ रजाई कम्बल अपनी ,
स्वप्न लोक में जा बैठा |
माँ ने की मनुहार बथेरी ,
मुँख चूमा बालों को सहलाया ,
पर आज मनावल पर भी लाडेसर ,
माँ के झांसे में ना आया |
बोला माँ मैं धरने पर हूँ ,
मेरी मांगें पहले पूरी हो ,
तभी धरा पे जाऊँगा मैं ,
कोहरा दूर भगाऊँगा मैं |
अरे बावले! तू राजा धरती का ,
तेरी भी क्या मांगें होंगी ,
पालक है तू इस जगती का ,
शाशक तू ही, तू! पालन करता |
टस से मस हुआ ना सूरज ,
धरती पे कोहरे ने चादर फैलायी .
टप-टप- टप- टप टपके दिन भर ,
दुनिया काँपे थर -थर थर थर ,
पेड़ पौधे सब कुम्हलाये ,
तुलसी जी भी झुलस गयी हैं |
पशु -पक्षी और सब बच्चों की
सर्दी के कारण शामत आयी |
माँ ने पूछा ! अरे दुलारे ,
चल बतला क्या मांगें है तेरी ,
खड़ी फसल सब जल जायेगी ,
जल्दी से तू बतला दे मुझको |
खुश हो बोला राजदुलारा ,
अम्मा की आँखों का तारा ,
तिल के लड्डू ओ गुड़ शक्कर .
मूंगफली की कड़क सी चक्की ,
रेवड़ियां और गजक सुनहरी ,
ओ एक ढेरी मूंगफलियों की ,
छील-छील के मुझे खिला दे ,
कहानी नानी वालि सुना दे |
बादाम ओ गाजर का हलुवा ,
अदरख वाली चाय पिला दे ,
और कुछ भी हैं मांगे मेरी ---
अरे शांत हो बच्चे मेरे !
चुप कर तू मेरे ओ लल्ला !
देख धारा में मचा है हल्ला ,
सब कुछ है गीलम-गीला |
अस्त -व्यस्त सी जगति सारी ,
पूरे दिन भर घना कोहरा ,
टपक रहा है ,बरस रहा है ,
मेरे बच्चे! मैं भी ठिठुर रही हूँ ,
चाहत तेरी कैसे पूरी हो ?
तुझ बिन लकड़ी गीली है भैया ,
कैसे जलाए चूल्हा ये मैया |
सूरज तो जिद पर अड़ा है ,
कोहरा बादल लपेट पड़ा है ,
मैया मैं हड़ताल करूंगा ,
इंसा जैसा मैं भी बनूंगा !
मैया को सूझी इक चाल ,
बोली सुन ओ मेरे लाल !
तुझ बिन कोई काम न उसरे ,
चल मैं भी करती हूँ !तुझ संग हड़ताल |
जब तू ही नहीं दिखाई देगा,
कैसी चक्की कैसा हलुवा ,
अंधियारे में राह न सूझे ,
ठिठुरन में कुछ काम न बुझे |
सूरज की गर्मी न हो भाई ,
कहाँ का चूल्हा कहाँ से चाय
बकरी और गैया ने भी ,
दूध देने से करदी मनाही |
हंस कर उठ बैठा सूरज ,
गलबहियाँ अम्मा के डालीं ,
मुहं धो कर के फिर उसने ,
अदरख वाली चाय!
सुड़क डाली ,
आसमान पे चमका फिर से ,
छोड़ बादलों की मखमली रजाई,
कोहरे को फिर दूर भगाया ,
ठिठुरन से सबको आजाद कराया |
ख़त्म हुई हड़ताल सूर्य की ,
सबने मंगल गीत गाया |
बसंत आया -बसंत आया ||
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जब दिमाग कुछ न करने के मूड में हो ,विचारों को सर्दी लग गयी हो तब दिल को अचानक ठिठोली सूझे ! दिमाग से पंगा लेने की!
शरीर का तापमान अचानक बढ़ जाए लिखने का मन हो जाए ( लिखने के लिए शरीर का तापमान ९८ .४ से कुछ अधिक ही होना मांगता है न ) तो बिना दिमाग के जो लिखा जाए वो ही मैंने आज लिखा ,हल्का फुलका बिना अर्थ का ------कोहरे की चादर पहने ठिठुरन की बंधक बनी धरती को सर्दी से निजात दिलाने की एक माँ की अपने बेटे से मनौवल ---------------
उठो लाल अब आँखें खोलो ,
पानी लाई हूँ मुहं धो लो |
उठो छोड़ बादल की रजाई ,
जाओ जग में करने उजेरा |
बादल की मखमली रजाई ,
कोहरे की कम्बल की नरमाई ,
मुहं पे ओढ़ सूरज मचला ,
सोने दे माँ सोने दे मुझ को |
रोज सवेरे मैं उठता हूँ ,
और काम पे लग जाता हूँ ,
बदले में मैं क्या पाता हूँ ,
तू ही समझा दे ये मुझको |
साँथरी ये मखमल की मेरी ,
उठने का ना मन है मेरा ,
इंसा के बेटे, मन मर्जी करते !
क्या एक अनोखा तेरा बेटा ?
सोने दे, माँ! सोने दे मुझ को ,
कुछ दिन तो, मन की करने दे मुझ को |
अरे लाडले! भोर हुई ,
पर ये अँधियारा है बड़ा हठीला ,
जाग -जाग ओ मेरे मुन्ने !
जा कर दे ,जग में उजियारा |
जब तक तू ना जागेगा पगले ,
पक्षी कलरव कैसे गायेंगे ?
बछड़े भूखे रह जायेंगे !
पेड़ पौधे भी क्या खायेंगे ?
धरा बाट जोहती है तेरी ,
जागो मेरे जीवन- धन जागो !
कुहरे की इस मोटी चादर से ,
जगति को तुम मुक्ति दिलाओ !
हल्का सा मुँह खोला सूरज ने ,
मरियल सी, धूप खिली धरती पे ,
पर फिर वो हठी मान -धन माँ का ,
ओढ़ रजाई कम्बल अपनी ,
स्वप्न लोक में जा बैठा |
माँ ने की मनुहार बथेरी ,
मुँख चूमा बालों को सहलाया ,
पर आज मनावल पर भी लाडेसर ,
माँ के झांसे में ना आया |
बोला माँ मैं धरने पर हूँ ,
मेरी मांगें पहले पूरी हो ,
तभी धरा पे जाऊँगा मैं ,
कोहरा दूर भगाऊँगा मैं |
अरे बावले! तू राजा धरती का ,
तेरी भी क्या मांगें होंगी ,
पालक है तू इस जगती का ,
शाशक तू ही, तू! पालन करता |
टस से मस हुआ ना सूरज ,
धरती पे कोहरे ने चादर फैलायी .
टप-टप- टप- टप टपके दिन भर ,
दुनिया काँपे थर -थर थर थर ,
पेड़ पौधे सब कुम्हलाये ,
तुलसी जी भी झुलस गयी हैं |
पशु -पक्षी और सब बच्चों की
सर्दी के कारण शामत आयी |
माँ ने पूछा ! अरे दुलारे ,
चल बतला क्या मांगें है तेरी ,
खड़ी फसल सब जल जायेगी ,
जल्दी से तू बतला दे मुझको |
खुश हो बोला राजदुलारा ,
अम्मा की आँखों का तारा ,
तिल के लड्डू ओ गुड़ शक्कर .
मूंगफली की कड़क सी चक्की ,
रेवड़ियां और गजक सुनहरी ,
ओ एक ढेरी मूंगफलियों की ,
छील-छील के मुझे खिला दे ,
कहानी नानी वालि सुना दे |
बादाम ओ गाजर का हलुवा ,
अदरख वाली चाय पिला दे ,
और कुछ भी हैं मांगे मेरी ---
अरे शांत हो बच्चे मेरे !
चुप कर तू मेरे ओ लल्ला !
देख धारा में मचा है हल्ला ,
सब कुछ है गीलम-गीला |
अस्त -व्यस्त सी जगति सारी ,
पूरे दिन भर घना कोहरा ,
टपक रहा है ,बरस रहा है ,
मेरे बच्चे! मैं भी ठिठुर रही हूँ ,
चाहत तेरी कैसे पूरी हो ?
तुझ बिन लकड़ी गीली है भैया ,
कैसे जलाए चूल्हा ये मैया |
सूरज तो जिद पर अड़ा है ,
कोहरा बादल लपेट पड़ा है ,
मैया मैं हड़ताल करूंगा ,
इंसा जैसा मैं भी बनूंगा !
मैया को सूझी इक चाल ,
बोली सुन ओ मेरे लाल !
तुझ बिन कोई काम न उसरे ,
चल मैं भी करती हूँ !तुझ संग हड़ताल |
जब तू ही नहीं दिखाई देगा,
कैसी चक्की कैसा हलुवा ,
अंधियारे में राह न सूझे ,
ठिठुरन में कुछ काम न बुझे |
सूरज की गर्मी न हो भाई ,
कहाँ का चूल्हा कहाँ से चाय
बकरी और गैया ने भी ,
दूध देने से करदी मनाही |
हंस कर उठ बैठा सूरज ,
गलबहियाँ अम्मा के डालीं ,
मुहं धो कर के फिर उसने ,
अदरख वाली चाय!
सुड़क डाली ,
आसमान पे चमका फिर से ,
छोड़ बादलों की मखमली रजाई,
कोहरे को फिर दूर भगाया ,
ठिठुरन से सबको आजाद कराया |
ख़त्म हुई हड़ताल सूर्य की ,
सबने मंगल गीत गाया |
बसंत आया -बसंत आया ||
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