{ पिता हमारा ! पथ प्रदर्शक ,ब्रह्म-प्रेम ,रस-धारा है }
..........................................................................
जीवन के इस महा-समर में घिर जाते हैं जब हम तम में ,
राहू- केतु बन---विपदायें दावानल सी दहलाती हैं ,\
कर्म-योगि बन पथ को साधो ,निर्माणों का मार्ग दिखाता है ,
औ जीवन की वैतरणी तरने को दृढ ,स्थिति-प्रज्ञ बनाता है ,
पिता हमारा ! पथ प्रदर्शक ,ब्रह्म-प्रेम ,रस- धारा है ....
माँ के कोमल सुरभित भावों को ,जीवन पथ पर दृढ़ता देता ,
विश्वाशों की ध्रुव-चेतना संग असी -धारा पे चलना सिखलाता है ,
. अपनी स्व की मर्यादाओं से औ अनुपम व्यवहारों से -----------,-
बाधाओं के गिरि-शिखरों पे चढना जो हमको सिखलाता है ,
पिता हमारा !पथ प्रदर्शक ,ब्रह्म-प्रेम ,रस-धारा है।।
तोड़ कर श्रृंगों का सीना ,सरित बन बह जाओ तुम ,
कोटि दावानल की लौ में ,शलभ बन जल जाओ तुम ,
समय हो कितना कठिन ,कर्तव्य-पथ से ना डिगो तुम ,
दृढ-हृदय के सामने यातनायें भी थकेंगी ---------------
कटु प्रहारों को सहकर जो दृढ रहना सिखलाता है ,
चलते रहना ध्येय तुम्हारा ,उद्धम का मार्ग दिखाता है
पिता हमारा !पथ प्रदर्शक ,ब्रह्म-प्रेम ,रस-धारा है ....
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जीवन के इस महा-समर में घिर जाते हैं जब हम तम में ,
राहू- केतु बन---विपदायें दावानल सी दहलाती हैं ,\
कर्म-योगि बन पथ को साधो ,निर्माणों का मार्ग दिखाता है ,
औ जीवन की वैतरणी तरने को दृढ ,स्थिति-प्रज्ञ बनाता है ,
पिता हमारा ! पथ प्रदर्शक ,ब्रह्म-प्रेम ,रस- धारा है ....
माँ के कोमल सुरभित भावों को ,जीवन पथ पर दृढ़ता देता ,
विश्वाशों की ध्रुव-चेतना संग असी -धारा पे चलना सिखलाता है ,
. अपनी स्व की मर्यादाओं से औ अनुपम व्यवहारों से -----------,-
बाधाओं के गिरि-शिखरों पे चढना जो हमको सिखलाता है ,
पिता हमारा !पथ प्रदर्शक ,ब्रह्म-प्रेम ,रस-धारा है।।
तोड़ कर श्रृंगों का सीना ,सरित बन बह जाओ तुम ,
कोटि दावानल की लौ में ,शलभ बन जल जाओ तुम ,
समय हो कितना कठिन ,कर्तव्य-पथ से ना डिगो तुम ,
दृढ-हृदय के सामने यातनायें भी थकेंगी ---------------
कटु प्रहारों को सहकर जो दृढ रहना सिखलाता है ,
चलते रहना ध्येय तुम्हारा ,उद्धम का मार्ग दिखाता है
पिता हमारा !पथ प्रदर्शक ,ब्रह्म-प्रेम ,रस-धारा है ....
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