जाता वर्ष सभी कठिनाइयो को अपने साथ लेता जाए सर्वे भवन्तु सुखिन: का आशीर्वाद दे ______________
जीवन चलने का नाम ! माना कि रुकना मना है ,
पर ,ठहर जाओ ! ठहरो !वर्ष जो जा रहा है ,देखो उसे ,
उसकी पोटली खोलो --बाँध दो उसमे
उड़ते जहाजों के गायब होने की घटनाये
फिर कभी न ये मानवता का दिल न दहलाएं
कश्मीर की बाढ़ ,और साम्प्रदायिक हिंसाएं
केदारनाथ की त्रासदी भी भूले न थे अभी
फैलिन तूफ़ान को ,बाढ़ की विभीषिका को
सुनामी और सूखे के कहरको
इन सभी राक्षसी मेहमानों को
बांधा तो था हमने उस पोटली में
बलात्कार के चीत्कार को -
भ्रष्टाचार के व्यवहार को -
कन्या भ्रूण के अत्याचार को -
दहशत गर्दों के दुराचार को -
बांध दो बांध दो जाते वर्ष की पोटली में .
ये बहती गंगा का प्रदूषण-
हवाओं में घुलता जहर -
भूख से पेट में पैर गड़ा के सोये बच्चे -
और कंकाल बने माँ -बाप के शरीर -
ये दंगों में बेघर मासूम -
ये शहीदों के कटे सिरों का दर्द -
ये किसानो की आत्म हत्या ,
ये सियासत दानों का झूठा प्रपंच
ये बाबाओं की मक्कारी,
ये फ़िल्मी दुनिया की निर्लज्जता सारी
सबकुछ बाँध दो जाते वर्ष की पोटली में .
और गांठे खूब कसके और खूब सारी बांधना -
देखना कोई भी छिद्र न हो पोटली में -
कुछ भी नीचे गिर गया तो -
तो जमीन अभी गीली है -
ये विषमताओं का राक्षस रक्त बीज है -
कुछ भी पोटली से सरक गया तो -
तो - तेजी से पनपेगा -
अब कोई दुर्गा नहीं है जो काली को पैदा करे
औ खत्म करदे इन राक्षसों को ,
छद्म धर्म निरपेक्षता के ठेकेदारों को
उठा के बाँध दो इस पोटली में
सांस भी न ले पाएं वो आगे से
तो रुको, ठहरो !जश्न से पहले -
इस राक्षस को विदा करो
जश्न मनाओ ,आगत का स्वागत करो -
पर जाने वाले से भी आशीष लो -!
जो जज्बा मुसीबत के समय होता है -
उसे बनाये रखना !दुश्वारियों को विदा करना
सही सोच और जज्बा देता जाए जाता वर्ष
मंगल भवनि अमंगल हारी हो ये नव वर्ष।
और मेटत कठिन कुअंक भाल के हो ये नव वर्ष।।आभा।।
जीवन चलने का नाम ! माना कि रुकना मना है ,
पर ,ठहर जाओ ! ठहरो !वर्ष जो जा रहा है ,देखो उसे ,
उसकी पोटली खोलो --बाँध दो उसमे
उड़ते जहाजों के गायब होने की घटनाये
फिर कभी न ये मानवता का दिल न दहलाएं
कश्मीर की बाढ़ ,और साम्प्रदायिक हिंसाएं
केदारनाथ की त्रासदी भी भूले न थे अभी
फैलिन तूफ़ान को ,बाढ़ की विभीषिका को
सुनामी और सूखे के कहरको
इन सभी राक्षसी मेहमानों को
बांधा तो था हमने उस पोटली में
बलात्कार के चीत्कार को -
भ्रष्टाचार के व्यवहार को -
कन्या भ्रूण के अत्याचार को -
दहशत गर्दों के दुराचार को -
बांध दो बांध दो जाते वर्ष की पोटली में .
ये बहती गंगा का प्रदूषण-
हवाओं में घुलता जहर -
भूख से पेट में पैर गड़ा के सोये बच्चे -
और कंकाल बने माँ -बाप के शरीर -
ये दंगों में बेघर मासूम -
ये शहीदों के कटे सिरों का दर्द -
ये किसानो की आत्म हत्या ,
ये सियासत दानों का झूठा प्रपंच
ये बाबाओं की मक्कारी,
ये फ़िल्मी दुनिया की निर्लज्जता सारी
सबकुछ बाँध दो जाते वर्ष की पोटली में .
और गांठे खूब कसके और खूब सारी बांधना -
देखना कोई भी छिद्र न हो पोटली में -
कुछ भी नीचे गिर गया तो -
तो जमीन अभी गीली है -
ये विषमताओं का राक्षस रक्त बीज है -
कुछ भी पोटली से सरक गया तो -
तो - तेजी से पनपेगा -
अब कोई दुर्गा नहीं है जो काली को पैदा करे
औ खत्म करदे इन राक्षसों को ,
छद्म धर्म निरपेक्षता के ठेकेदारों को
उठा के बाँध दो इस पोटली में
सांस भी न ले पाएं वो आगे से
तो रुको, ठहरो !जश्न से पहले -
इस राक्षस को विदा करो
जश्न मनाओ ,आगत का स्वागत करो -
पर जाने वाले से भी आशीष लो -!
जो जज्बा मुसीबत के समय होता है -
उसे बनाये रखना !दुश्वारियों को विदा करना
सही सोच और जज्बा देता जाए जाता वर्ष
मंगल भवनि अमंगल हारी हो ये नव वर्ष।
और मेटत कठिन कुअंक भाल के हो ये नव वर्ष।।आभा।।