Monday, 8 December 2014

 रेप होने पे , मीडिया इतना संवेदनशील है  कि डिस्कशन के लिए पूजा बेदी और शोभा डे  को( अपना टी आर पी बढ़ाने के लिए  ) टी वी  पे लाकर बहस करवाता है , क्या ये सही में समस्या का हल ढूंढने की कोशिश कर रहे है।  हर रेप के बाद कुछ लोगों को बिठा के  अनर्गल प्रलाप करवाना ,और एक दूसरे की सरकारों पे छींटा कशी  करवाना।
मुझे पिछले महीने दो तीन बार टैक्सी से अकेले यात्रा करनी पड़ी ,तो अपने जानकार की टैक्सी को ही बुलाया उसपे भी हर आधे घंटे पे कोई न कोई फोन करदेता था खैर खबर को , कहाँ पहुंची ,सोना मत --वही सब हिदायतें जो मैं किसी को ऐसी स्थिति   में    देती।  पर जब रात  को ३. ३०  बजे की फ्लाइट थी और दिल्ली की ही कैब लेनी थी तो कोई भी मुझे अकेले भेजने को तैयार न हुआ। हरिद्वार और यमुनानगर से भाई केवल आधे घंटे की दूरी तक मुझे छोड़ने जाने के लिए  ५-७ घंटे की दूरी  तय करके  आने को तैयार थे पर अकेले आधे घंटे की कैब  में भेजने को तैयार नहीं थे। इधर मुझे सबकी परेशानी दिखाई दे रही थी। जिस  परिवार को  मुझे छोड़ने की जिम्मेदारी दी गयी वो रात  को ८ बजे अपने आफिस नॉएडा से द्वारका अपने घर पहुंचा सुबह ६ बजे उसे उठके फिर से बच्चों को स्कूल छोड़ते हुए नॉएडा जाना होता है ,ऐसे में उसे रात तक जगाना मुझे बहुत परेशान कर रहा था ( हालाँकि वो हमेशा ही मेरी सारी परेशानियों में सब से आगे बढ़ के मेरे साथ रहता है ,और मुझे अपनों से भी अधिक प्यारा  है )-तो मैंने १० बजे ही एयर पोर्ट पे जाना तय किया ताकि बच्चों को रात तक न जगना पड़े -पर एक परिवार का शिड्यूल तो डिस्टर्ब हुआ ही। जब हम बुजुर्ग महिलाओं के लिए ही घर वाले इतना परेशान हो जाते हैं तो बच्चियों की सुरक्षा के लिए तो भगवान  पे ही भरोसा है ,अपने डैनों में छिपा के भी नहीं रख सकते।  हम  टैक्स देते है ताकि हमे देश में सुख सुविधा मिले। पर क्या कभी वो मिल पाएगी ,क्या कभी बच्ची  हो या बुजुर्ग - महिला के बाहर जाने पे घरवाले निश्चिन्त होक सो सकेंगे ,जब तक सुरक्षित पहुंचने की खबर न आ जाए।  रोज ही रेप हो रहे हैं दिल्ली में कोई कोईरेप इतना भाग्यवान होता है कि  मीडिआ  की नजरे उस पे इनायत हो जाती हैं और गर्म गर्म बहस होने के बाद इस मुद्दे को फाइलों में पैक  कर दिया जाता है किसी नयी दुर्घटना के लिए किन्हीं दूसरी मॉडल्स या फ़िल्मी सितारों के साथ बहस के लिए।  हम संवेदनहीनता के युग में जी रहे है , अभिशप्त हैं अपनी बेटियों -माओं को सुरक्षित न रखने के लिए। और संवेदनहीनता की पराकाष्ठा वहां होती है जब किसी माननीय जज का डिसीजन आता है की ८४ वर्ष की महिला के साथ रेप को रेप नहीं माना  जा सकता  क्यूंकि वो रजोनिवृत्त हो चुकी होती है।
जब तक हम रेप साबित होने पे दो चार रेपिस्टों को सरे आम कड़ी से कड़ी सजा नहीं देंगे तब तक स्थिति के सुधरने की आशा बेमानी है।

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