Wednesday, 10 December 2014

घुमन्तु है वो जो  दूधिया बादल
 अक्स मेरा बना के हँसता है अक्सर।
हाँ ! मुझे मैं दिखाई देती हूँ किसी पल उसमे
 औ !तुम भी नजर आते हो पास वहीँ कहीं।
हलचल निर्वात में भी हवाओं की है
बादलों की बदलती  सूरत ,
चुपके से कहानी ये कह जाती हैं।
ऐसे ही जैसे  जिंदगी की हलचल
बचपन पे  बुढ़ापे की ओढ़नी चढ़ाती है।
ये नीला आसमां  ,जमीं  है बादल की
हाँ !  है कुछ ऐसा ही है  रूह  मेरी का रंग।
स्नेह के  दीपक में  प्यार की शिखा की
नीली  लौ से जगमगाती  नीली छत।
हाँ ! जमीं से छत ही तो हो गयी हूँ
 सीख लिया बादलों से  बदलना आकार।
 शक्ति कणो  का कर संचय  हुई सघन
 तिरती हूँ स्वछंद  रिश्तों की डोर से बंधी।
पर सीरत न बादल की बदली न मेरी
सदियों से हम यूँ ही मीठे  पानी ही  हैं।
बरसते हैं तो नदिया झरने बन बहते है
और थक के  खारा समंदर हो जाते हैं।
पवन! जो भटकाता है राह बादल को
औ बदल देता है आकार  उसका
कभी दो पास लाके पुष्प गुच्छ बनता है
 औ पल में ही फूलो को बिखरा जाता है
हाँ मैं ही हूँ वो पवन भी !
हाँ! मैं ही हूँ वो पवन - -खुद को दिशा मुक्त करती हुई।।आभा।

No comments:

Post a Comment