Thursday, 13 April 2017

घुमन्तु  वो  दूधिया बादल
 अक्स मेरा बना - हँसता  है अक्सर।
हाँ !
मुझे मैं दिखाई देती हूँ किसी पल उसमे
 औ !
तुम भी  आते हो नजर पास वहीँ कहीं।
हलचल निर्वात में भी हवाओं की
 बदलती  है बादलों की  सूरत ,
औ -कह जाती है
चुपके से कहानियां न सुनाई देने वाली -
ऐसे ही ! जैसे  जिंदगी की हलचल
बचपन को   बुढ़ापे की ओढ़नी चढ़ाती है
ये नीला आसमां  -जमीं  है बादल की
हाँ !  है कुछ ऐसा ही है
 रंग मेरी रूह का भी
स्नेह भरे  दीपक में  प्यार की शिखा
नीली  लौ से जगमगाती  नीली छत
हाँ ! जमीं से छत ही तो हो गयी हूँ
 सीख लिया बादलों से आकारों में ढलना
 शक्ति कणो  का कर संचय  हुई सघन
 तिरती हूँ स्वछंद पर
  रिश्तों की डोर से बंधी
 सीरत न बादल की बदली न ,मेरी!
सदियों से हम यूँ ही हैं  -
''मीठे  पानी से ''
बरसें तो   झरने नदियां बन बह जायें
 थक के रुकें तो  खारा समंदर -
पवन!  भटकाता है राह बादल को
औ बदल देता है आकार  उसका
 दो तीन चार पास आये
तो   पुष्प गुच्छ बनाये
  पल में ही फूलो को देता है बिखरा -
हाँ मैं ही हूँ वो पवन भी !
हाँ! मैं ही हूँ वो पवन -
तुझसे मिलने की चाह में
बिखरती हुई
 -स्वयं को  दिशा मुक्त करती हुई
स्वयं को दिशा मुक्त करती हुई ।।आभा।

Tuesday, 9 D

Tuesday, 11 April 2017



सिन्धु-तरन , सिय सोच हरन , रबि-बालबरन-तनु |
भुजबिसाल , मूरति कराल काहुको काल- जनु ||
गहन-दहन-निरदहन-लंक नि:सनक, बंक-भुव |
जातुधान - बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव ||
कह तुलसिदास सेवतसुलभ , सेव हित संतत निकट |
गुनगनत , नमत ,सुमिरतजपत ,समनसकल-संकट-बिकट |-----
---तुलसी कहते हैं -हनुमान जीकी सेवा सहज और सरल है | गुणगान ,स्मरण,जप समर्पण बस और कुछ नही ===
उथपे थपनथिर थपे उथपनहार ,
केसरीकुमार बल आपनो संभारिये ||
राम के गुलामनि को कामतरु रामदूत,
मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिये ||
======मेरे जैसे दीन को उबारने के लिये आपको फिर से अपनेबल का स्मरण करना पड़ेगा क्यूंकि हे रामदूत हमें आपका ही भरोसा है --आप कल्पवृक्ष हैं |
==============कोई न कोई बड़ा सर पे होना ही चाहिये ,और बजरंगबली सा साहेब मिल जाये तो जीवननैया आसानी से भवसागर पार कर जायेगी | मांगना ! जी कभी-कभी लगता है कोई होता जिससे हम भी मांगते --औरकुछ नही तो साहस जीने के लिए , हनुमानजी से बड़ा दाता कौन ,रामजी के कान्हाजी के सभी के काज बनाने वाले हैं ---पर लगता है मेरे लिये वो बूढ़े हो गये हैं===
तेरे थपे उथपे न महेस ,
थपै थिरको कपि जेघर घाले ||
तेरे निवाजे गरीबनिवाज ,
बिराजत बैरिन के उर साले ||
संकट सोच सबै तुलसी लिए ,
नाम फटै मकरीके -से जाले ||
बूढ़ भये , बली, मेरिहि बार |
कि हारि परे बहुतै नतपाले||
========हे हनुमानजी आप जिसे बसादें उसे शिव भी नही उजाड़ते तो क्या मेरी बारी में बूढ़े हो गये हैं या बहुत सेगरीबों का पालन करते करते थक गये हैं ---तुलसिदासजी कीभक्ति  पूर्ण समर्पण , जिसे जीवन अर्पण  तो उसे ही  अपनी पीड़ा पे उलाहना भी दी जायेगी ना  --इष्ट को ही उलाहना भी ===हनुमानजी मेरे भी इष्ट हैं .वो मेरे राखी- भाई हैं ,-==आज जन्मजयंती  पे इष्ट  की आरती तुलसीकृत हनुमानबाहुक के कुछ पदों से --और उलाहना इसलिये कि चौंक के मेरी ओर देखभर लें बस |
==हनुमंतजयन्ती की शुभकामनायें ----आभा --  :) 

Sunday, 9 April 2017

यात्रा का समय ,जब थकन हावी हो ,मोबाइल ,लैपी ,आई पैड खोलने का भी मन न हो --ऐसे में मेरा प्रिय शगल होता है साहित्य को याद करना गुनगुनाना ,कुछ पुराना कुछ नया --इस बार राम चिंतन -आधुनिकता की कसौटी पे --साकेत ,संशय की एक रात ,शूर्पणखा ,राम की शक्ति पूजा ,उर्मिला ,मंदोदरी ,भरत की प्रतिज्ञा जैसे साहित्य का मनन मंथन --  और कुछ विश्लेषण  कुछ आज ,कुछ फिर कभी शीघ्र ही --स्वांत:सुखाय --अपने जड़त्व को दूर करने की कोशिश  ----




मानस और आधुनिक कवियों के काव्य से --''रामके वन प्रदेश में जाने का मंतव्य ''-
    ''सीता कृषि है जो भी चाहो वह सब माँ से लेलो।

     माथा टेक मांगने वालों -धन निज हाथों से ले लो।। ''

================
वन प्रदेश में राम का आगमन --यानि जड़ से चेतन की ओर ------
रामजी ने त्रेता युग में हमें संदेश  दिया राजनीती का ,कूटनीति का --शत्रु यदि अराजक है ,सबल है ,संख्या बल में अधिक  है ,तो धैर्य से काम लो। रणनीति ऐसी बनाओ जिसकी आड़ में तुम शत्रु के ठिकाने तक भी पहुंच जाओ और उसे भान भी न हो  --सर्जिकल स्ट्राइक - :) --इसी रणनीति के तहत ,विश्वामित्र ने राम लक्ष्मण को शिक्षा देके आयुध विद्या में पारंगत किया ,और भी कई विद्याएँ सिखाईं तथा  वन में ताड़का  , मारीच ---आदि -आदि पे उस विद्या का सफल प्रयोग भी किया। राजा जनक  से मैत्रीऔर  विवाह संबंध भी इसी नीती का परिणाम था। राजा जनक से एक बार शिवजी के दरबार में वेदांत - शास्त्रार्थ में रावण हार चुका था  तो ये मैत्री रावण को मानसिक रूप से कमजोर करने के लिए कारगर थी ,फिर  जनक एक शक्तिशाली राजा भी थे,  वो कृषि कार्य में दक्ष थे और उनके राज्य में कृषि को निरंतर  उन्नत बनाने संबंधी विभिन्न शोध होते रहते थे , राजा जनकउनके  भाई राज्य की रानियां - उनकी चारों बेटियां परम-विदुषी और कृषि-विज्ञान  की शोधार्थी थीं ,विश्वामित्र और गुरु वशिष्ठ ने राम -सीता विवाह के लिये दोनों राजाओं से मंत्रणा की ,पर जनक विदेह मनीषी थे ,उन्हें युद्ध -राज्य विस्तार की कोई इच्छा नहीं थी ,वो तो प्रकृति पूजक थे ,उनकी बड़ी पुत्री सीता का नाम ही हल की नोक से चलने वाली रेख के नाम पे था --राम के लिए ये विवाह आसान नहीं था ,वीर राजकुमार होने के साथ उन्हें राजा जनक के समक्ष अपने को प्रकृति प्रेमी और कृषि कर्मी भी साबित करना होगा ये विश्वामित्र को अच्छे से मालूम था --तो वो वन में राजकुमारों [राम -लक्ष्मण ]की शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात उन्हें गौतम ऋषि के शाप को भोग रही अहिल्या की अह्लय भूमि में ले गये --जिसपे बिना हल चलाये राम को खेती करने की विद्या सिखाई गयी और  वहां रह रही अहल्या की सहायता से उस बंजर -शिला समान  भूमि को दोनों भाइयों ने, तकनीकी का सहारा लेकर - हरा-भरा किया।  सूचना  हरकारों व् सूत्रधारों द्वारा जनक  तक पहुंचाने का पूरा ध्यान रखा गया । ----- परशुराम से मैत्री ---परशुराम विश्वामित्र सरीखे ही आयुध विद्या में निपुण थे और राम की आखिरी परीक्षा वो ही ले सकते थे ,पर वो कहां मिलेंगे ये किसी को भी मालूम नहीं होता था क्यूंकि वो यायावर थे --तो  जनक के दरबार के शिवधनुष को  तुड़वाया गया --वो धनुष एक ऐसा आयुध था जिसके टूटने से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड गूँज सुनाई देती और उसे सुन  परशुराम जहां कहीं भी  हों जनक की सभा में आ जाते -  और ये प्रयोग सफल रहा ----  इसी नीति के तहत वनवास हुआ।वन में रामजी ने सभी ऋषिमुनियों और जनजातियों को अभय किया ,अपने पराक्रम से। रावण जो पंचवटी तक घुस आया था और उसने मारीच ,खर-दूषण ,शूर्पणखा  के अधीन चौकियां और आतंकवादी अड्डे स्थापित किये हुए थे ,उन्हें ध्वस्त किया ,बाकी सभी आतताइयों को मार गिराया बस शूर्पणखा को छोड़ दिया ताकि वो राम की आहट व्  शक्ति का सन्देश रावण को पहुंचा सके।  माँ सीता ने वनवासियों  की कृषि को उन्नत करने के गुर सिखाये , वनवासिनियों को कुटीर उद्योगों में लगाया तथा  स्वयं की रक्षा की शिक्षा भी दी ---
          '' ऊन कात सीता माता ने कपड़े बना लिए थे ,
           रुई और रेशम से सुंदर कुर्ते कई सीए थे। । ''
सीता कृषि की अधिष्ठात्री देवी है।  उसने वनवासियों को उन्नत कृषि के तरीके बताये जिससे उनकी आर्थिकी समुन्नत हुई और जंगल-जंगल ,ग्राम-ग्राम सम्पन्नता छा गयी।
    ''सीता कृषि है जो भी चाहो वह सब माँ से लेलो।
     माथा टेक मांगने वालों -धन निज हाथों से ले लो।। ''
जिससे वनवासियों का आत्मसम्मान बढ़ा।
साथ ही राम -लखन ने छोटी -छोटी नदियों पे बाँध बनाके -उसके जल के बहुविध उपयोग से वनवासियों के जीवन को उन्नत किया ---राम कह रहे हैं ---
''देखो कैसा स्वच्छंद यहां लघु नद है।
इसको भी पुर में लोग बाँध लेते हैं ,
हाँ ! वे इसका उपयोग बढ़ा देते हैं ''---
शत्रु से लड़ने की नीति रीती ;जैसा शत्रु वैसी नीति। बाली रावण का मित्र था तो उसे मार गिराया , सुग्रीव से मित्रता ,लंका में हनुमान को जासूसी करने भेजा और अपना बल दिखाने  का भी निर्देश --हनुमान का विभीषण को अपने पक्ष में करना ,और विभीषण का लाव लश्कर  के साथ राम की सेना में आ मिलना।   हालाँकि कतिपय जगहों पे विभीषण का अंतर्द्वन्द भी दिखाई देता है
      ''कल
जब हम नही केवल
वृद्ध ठंडी शिला सा
इतिहास होगा।
जब हमारे तर्क तक मर जाएंगे ,
तब
हमें क्या कहकर पुकारा जाएगा ?
राष्ट्र संकट के समय मैं
मैं आक्रमण के साथ था ,
राज्य पाने के लिए ------[संशय की एक रात ]---
----साथ ही रावण के कुल गुरु --[रावण के प्रपितामह को माँ पार्वती ने पाला  था --वो शिव का धर्म पुत्र था ,इस नाते शिव रावण के मुहंबोले पड़ दादा भी थे ] शंकरजी की आराधना -पूजा ,अभियान से पहले उनका आह्वान कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना ये रामजी के सफल राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ होने के लक्षण थे। सागर के एक तरफ रावण की लंका थी दूसरी और सागर का राज्य था ,उसे भी साम-दाम दंड भेद से अपनी तरफ करके सहायता के लिए तैयार किया और राम सेतु बनवाया।ऐसी  ही कई कूटनिक चालें हैं जो रामजी का  चतुर और प्रखर राजनीतिज्ञ होना  दर्शाती हैं --ये राम चरित्र को गंभीरता से पढ़ने और मनन करने से ही अनुभव होगा।   
रावण शक्तिशाली शत्रु था ,उसने एक बार कौशल के राजा को मार के कौशल पे अधिकार भी जमाया था।  अत: उसको पराजित करने के लिए राम को अपनी नीति बनाने के लिए समय चाहिए था ---वो उन्हें चौदह वर्ष के वनवास के रूप में मिला , इस नीति को बनाने में उनके साथ कैकई और सीता भी शामिल थीं। उन्होंने नीति ऐसी बनाई ताकि रावण वन प्रदेश में ही उलझा रहे और उधर अयोध्या में दोनों भाई निष्कंटक राज कर सकें।
 राम युद्ध के पक्ष में कभी नहीं थे --पर  वो कहते हैं --
हम कोटि-कोटि जनों की तो केवल प्रतीक है
     रावण अशोक बन की सीता,
हम साधारण जन की अपहृत स्‍वतंत्रता
-----वो आम जन की स्वतंत्रता के पक्षधर थे --जिस स्वतन्त्रता को रावण ने अपहृत कर लिया था ,रावण जो देवाधिदेव शंकर से वरदान पाकर महाबलशाली हो गया था ,फलस्वरूप उसमे अहंकार आ गया और वो राक्षसी प्रवृतियों युत होकर मानवता का दुश्मन बन बैठा। 
------------आज भी रामचरित मानस से  देश के नीतिनियन्ता लाभ उठा सकते हैं ,एक सन्देश तो स्पष्ट ही है ----पूरी तैयारी के साथ शत्रु को उसके घर में घुस के मारो और नेस्तनाबूत कर दो।  घरमे घुस के भारत ने बंगलादेश के समय मारा पर नेस्तनाबूत न कर पाया ---अब समय है --और रामजी का आदेश भी शत्रु को उसके घर में घुस के मारो और नेस्तनाबूत कर दो ---बस यूँ ही साकेत और संशय की एक रात को याद कर रही थी तो लिखने का मन हो आया ----

Tuesday, 4 April 2017

इस बारी नवरात्रि में फ्रांस की देवी ---रोमन गॉडेस --''Libertas '' --जिसके एक हाथ में स्ववतंत्रा की टॉर्च और एक हाथ में संविधान की पुस्तक --'' tabula asata ''जिसमे   "July 4, 1776", अंकित है वो तारीख जिस दिन  अमेरिका की स्वतन्त्रता की घोषणा हुई। 
Statue of Liberty (Liberty Enlightening the World) ------ कई बार न्यूयार्क आ गयी ,पर हर बार जाना रह गया ,एक बार तो बैटरी पार्क से ही भीड़ देख के वापिस आये। 
देवी ने नवरात्रि में ही दर्शन देने थे ये मुझे कहाँ  पता था ---मुझे सब मूर्ख कहें पर विश्व में जहां कहीं भी देवी किसी भी रूप में पूजी जाती है --मेरी श्रद्धा  उसमें वही होती है जो  ''माँ दुर्गे ''में होती  है ---
-----माँ दुर्गे  तेरी ही बहनें है संपूर्ण विश्व में --आकाशों वाली देवी  धरती पे भी सभी जगह मिल जाती है  बस मन में धारणा हो ----अष्टमी नवमी मङ्गलमयी हो --सभी देवियों के दर्शन  के साथ -साथ रोमन देवी ''Libertas '' ---के भी करवा रही हूँ आप सभी को ---लाइक कमेंट आप नही करेंगे मुझे पता है और मुझे कभी दरकार भी नही रहती जबरदस्ती की औपचारिकता की पर देवी तो देवी है  -- मुझे  पता है दर्शन वो भी फर्स्टहैण्ड --आपको हो ही जाएंगे  ---- जय माँ शेरों ,वाली पहाड़ों वाली और लिबर्टी आइसलैंड (स्वतन्त्रता ,संविधान ) वाली ,सभी का मंगल करो ---- 



भये प्रगट कृपाला ..- राम तुम आशा विश्वास  हो हमारे ,तुम जीवन धन हो हमारे , आज बधाई हमें भी तुम्हारे जनम्बार की ------
*********
'' भये प्रगट कृपाला दीन दयाला कौसल्या हितकारी ! '' ..
चहुँ और आनन्द व्याप्त हो गया ,स्वर्ग की अप्सराएँ और देवता पुष्प वर्षा करने लगे ,माता को अपना विराट स्वरूप दिखाया तो वो हाथ जोड़ के बोली प्रभु मुझे तो आपके बाल रूप में ही रमना है , मैं तो भक्त हूँ आपको अपने अनुशासन में रखना चाहती हूँ ,पुत्र भाव का वरदान माँगा था , सो बालरूप में आजाओ और ये ब्रह्म वाली स्मृति मेरी बुद्धि से मिट जाए अन्यथा मैं आपके कान कैसे पकडूँगी शरारत करने पे ..
"सुनी बचन सुजाना रोदन ठाना होई बालक सुर भूपा |''
 और रुदन सुनके दशरथ के आनंद का तो कहना ही क्या ..
'' मानहुं ब्रह्मानन्द सामना "|
ब्रह्म को पा लेने का आनंद | अब और क्या चाहिए जब ब्रह्म को ही पा लिया पर नहीं दशरथ महाराज कहते हैं..
"जाकर नाम सुनत सुभ होई मोरे गृह आवा प्रभु सोई |
परमानन्द पूरि मन राजा कहा बुलाई बजावहु बाजा || ..
भला परमानन्द पाने के बाद भी कोई आनंद शेष रहता है ,जी हाँ --उस आनंद को सबके साथ बाँटना . संगीत -नृत्य -गीत -और अपने को भूल जाना सबके साथ मिलके झूमना , आज तो
' वृन्द -वृन्द मिली चलीं लोगाईं  सहज श्रृंगार किये उठी धाई' ||
राजा अपने आनंद को सबके साथ बाँटना चाहते हैं | सो वो बाजे बजाने को कह रहे है दान दे रहे हैं ,पित्रों को पूज रहे हैं | आज भी हिन्दू परिवारों में किसी भी उत्सव- त्यौहारमें देवता से पहले पित्रों के लिए थाली लगाई जाती है ,फिर बच्चे का जन्म तो पित्रों को सबसे बड़ा उपहार है ,उनकी पूजा अर्चना सर्व प्रथम होनी ही चाहिए |
 राम हमारी अस्मिता के द्योतक ,मर्यादा-पुरुषोत्तम |
 भारतीय मनीषा की सबसे पहली कविता के नायक | 
आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने आदिकवि बाल्मीकि के समय में थे |
और कलयुग में तो केवल राम नाम ही आधार है 
कलयुग केवल राम आधारा ,सुमरि -सुमरि नर उतरहिं पारा --तुलसी कहते हैं -
एहि कलि-काल न साधन दूजा जोग जग्य जप तप व्रत पूजा ||
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि  संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि ||
बस केवल रामनाम से ही उद्धार है तो फिर ऐसे ठाकुरजी का जन्म-दिवस क्यूँ न प्रफ्फुलित कर दे सबको | सब खुश होवें ,सुखी होवें और देश समृद्ध होवे इसी कामना के साथ सभी को रामनवमी की शुभकामनायें | नौ दिन के व्रत-उपवास और माँ की आराधना से उर्ज्वसित मन सकारात्मक होवे |
देश भी परिवर्तन के कगार पे है | आशा है आंशिक ही सही भारत में राम-राज्य आये और देश के दैहिक -दैविक और भौतिक तापों के हरण का मार्ग प्रशस्त हो | वन्दे मातरम !
रामजन्म के इस शुभ अवसर पे आप सबको बधाई ..आभा

Monday, 3 April 2017

सूना -सूना सा ये पथ ,
रीता है मन ;
    झोली जीवन की खाली ;
     जन्म लिया दुलार पाया ;
     मात- पिता  बाबा नाना
     सब पे ही अधिकार पाया ;
     और बढे फिर, सखा- सहोदर ;
     भाई- बहन, नाते -रिश्ते ;
     पर झोली जीवन की खाली ?
    जीवन पथ पर चलते -चलते ,
    प्यार मिला . संसार मिला ;
     धन -वैभव बच्चों का आना ,
     जीवन में उत्साह मिला  ;
      सासरे के सभी  रिश्ते  ;
     स्नेह उलीचा ,स्नेह मिला   ,
     पर झोली जीवन की खाली ?
     प्यार और इजहार हमेशा ,
    इंकार और दुत्कार कहीं पर ;
    कुछ पाया ,खोया भी कुछ ;
    मोती से वो स्वप्न सुहाने;
    भर -भर के झोली में डाले;
    अरमानो से सजी सेज  वह ,
    उल्लासों का सुन्दर जंगल ;
    पर झोली जीवन की खाली ?
     सीने वाले ने शायद ,
    गहरी सिल दी है ये झोली ,
   मेरे अंतर में बैठा वो ;
  मुझ से बातें करता रहता ;
  उसे ढूंढने को उलटी जब ;
   झोली जीवनकी खाली ?
   अब तेरी यादों के मोती ;
   तुझ् संग बीते पल की बातें ,
  कुछ आंसू - कुछ तन्हाई ,
  स्वप्न सुहाने उस पार मिलन के ,
  अंजुरी भर झोली में हैं डाले ,
  यादों के ये स्वर्णिम मोती ,
जब चाहूँ  मैं चुग लेती हूँ
फिर सब यादों से मै ,ये 
खाली झोली भर लेती हूँ ..
  मेरे अंतर में रहने वाले ,
 तुझ को जो पहचान सकूँ मैं ,
अपने जीवन की झोली में
 तेरे ही करतब देखूं मैं .
  सदियों से तू खेल खिलाता ;
  भर भर झोली हमें लुभाता
 पर झोली जीवन की खाली ?
  क्यूँ ? झोली जीवन की खाली !
.....आभा ......