Monday, 3 April 2017

सूना -सूना सा ये पथ ,
रीता है मन ;
    झोली जीवन की खाली ;
     जन्म लिया दुलार पाया ;
     मात- पिता  बाबा नाना
     सब पे ही अधिकार पाया ;
     और बढे फिर, सखा- सहोदर ;
     भाई- बहन, नाते -रिश्ते ;
     पर झोली जीवन की खाली ?
    जीवन पथ पर चलते -चलते ,
    प्यार मिला . संसार मिला ;
     धन -वैभव बच्चों का आना ,
     जीवन में उत्साह मिला  ;
      सासरे के सभी  रिश्ते  ;
     स्नेह उलीचा ,स्नेह मिला   ,
     पर झोली जीवन की खाली ?
     प्यार और इजहार हमेशा ,
    इंकार और दुत्कार कहीं पर ;
    कुछ पाया ,खोया भी कुछ ;
    मोती से वो स्वप्न सुहाने;
    भर -भर के झोली में डाले;
    अरमानो से सजी सेज  वह ,
    उल्लासों का सुन्दर जंगल ;
    पर झोली जीवन की खाली ?
     सीने वाले ने शायद ,
    गहरी सिल दी है ये झोली ,
   मेरे अंतर में बैठा वो ;
  मुझ से बातें करता रहता ;
  उसे ढूंढने को उलटी जब ;
   झोली जीवनकी खाली ?
   अब तेरी यादों के मोती ;
   तुझ् संग बीते पल की बातें ,
  कुछ आंसू - कुछ तन्हाई ,
  स्वप्न सुहाने उस पार मिलन के ,
  अंजुरी भर झोली में हैं डाले ,
  यादों के ये स्वर्णिम मोती ,
जब चाहूँ  मैं चुग लेती हूँ
फिर सब यादों से मै ,ये 
खाली झोली भर लेती हूँ ..
  मेरे अंतर में रहने वाले ,
 तुझ को जो पहचान सकूँ मैं ,
अपने जीवन की झोली में
 तेरे ही करतब देखूं मैं .
  सदियों से तू खेल खिलाता ;
  भर भर झोली हमें लुभाता
 पर झोली जीवन की खाली ?
  क्यूँ ? झोली जीवन की खाली !
.....आभा ......

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