Sunday, 9 April 2017

यात्रा का समय ,जब थकन हावी हो ,मोबाइल ,लैपी ,आई पैड खोलने का भी मन न हो --ऐसे में मेरा प्रिय शगल होता है साहित्य को याद करना गुनगुनाना ,कुछ पुराना कुछ नया --इस बार राम चिंतन -आधुनिकता की कसौटी पे --साकेत ,संशय की एक रात ,शूर्पणखा ,राम की शक्ति पूजा ,उर्मिला ,मंदोदरी ,भरत की प्रतिज्ञा जैसे साहित्य का मनन मंथन --  और कुछ विश्लेषण  कुछ आज ,कुछ फिर कभी शीघ्र ही --स्वांत:सुखाय --अपने जड़त्व को दूर करने की कोशिश  ----




मानस और आधुनिक कवियों के काव्य से --''रामके वन प्रदेश में जाने का मंतव्य ''-
    ''सीता कृषि है जो भी चाहो वह सब माँ से लेलो।

     माथा टेक मांगने वालों -धन निज हाथों से ले लो।। ''

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वन प्रदेश में राम का आगमन --यानि जड़ से चेतन की ओर ------
रामजी ने त्रेता युग में हमें संदेश  दिया राजनीती का ,कूटनीति का --शत्रु यदि अराजक है ,सबल है ,संख्या बल में अधिक  है ,तो धैर्य से काम लो। रणनीति ऐसी बनाओ जिसकी आड़ में तुम शत्रु के ठिकाने तक भी पहुंच जाओ और उसे भान भी न हो  --सर्जिकल स्ट्राइक - :) --इसी रणनीति के तहत ,विश्वामित्र ने राम लक्ष्मण को शिक्षा देके आयुध विद्या में पारंगत किया ,और भी कई विद्याएँ सिखाईं तथा  वन में ताड़का  , मारीच ---आदि -आदि पे उस विद्या का सफल प्रयोग भी किया। राजा जनक  से मैत्रीऔर  विवाह संबंध भी इसी नीती का परिणाम था। राजा जनक से एक बार शिवजी के दरबार में वेदांत - शास्त्रार्थ में रावण हार चुका था  तो ये मैत्री रावण को मानसिक रूप से कमजोर करने के लिए कारगर थी ,फिर  जनक एक शक्तिशाली राजा भी थे,  वो कृषि कार्य में दक्ष थे और उनके राज्य में कृषि को निरंतर  उन्नत बनाने संबंधी विभिन्न शोध होते रहते थे , राजा जनकउनके  भाई राज्य की रानियां - उनकी चारों बेटियां परम-विदुषी और कृषि-विज्ञान  की शोधार्थी थीं ,विश्वामित्र और गुरु वशिष्ठ ने राम -सीता विवाह के लिये दोनों राजाओं से मंत्रणा की ,पर जनक विदेह मनीषी थे ,उन्हें युद्ध -राज्य विस्तार की कोई इच्छा नहीं थी ,वो तो प्रकृति पूजक थे ,उनकी बड़ी पुत्री सीता का नाम ही हल की नोक से चलने वाली रेख के नाम पे था --राम के लिए ये विवाह आसान नहीं था ,वीर राजकुमार होने के साथ उन्हें राजा जनक के समक्ष अपने को प्रकृति प्रेमी और कृषि कर्मी भी साबित करना होगा ये विश्वामित्र को अच्छे से मालूम था --तो वो वन में राजकुमारों [राम -लक्ष्मण ]की शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात उन्हें गौतम ऋषि के शाप को भोग रही अहिल्या की अह्लय भूमि में ले गये --जिसपे बिना हल चलाये राम को खेती करने की विद्या सिखाई गयी और  वहां रह रही अहल्या की सहायता से उस बंजर -शिला समान  भूमि को दोनों भाइयों ने, तकनीकी का सहारा लेकर - हरा-भरा किया।  सूचना  हरकारों व् सूत्रधारों द्वारा जनक  तक पहुंचाने का पूरा ध्यान रखा गया । ----- परशुराम से मैत्री ---परशुराम विश्वामित्र सरीखे ही आयुध विद्या में निपुण थे और राम की आखिरी परीक्षा वो ही ले सकते थे ,पर वो कहां मिलेंगे ये किसी को भी मालूम नहीं होता था क्यूंकि वो यायावर थे --तो  जनक के दरबार के शिवधनुष को  तुड़वाया गया --वो धनुष एक ऐसा आयुध था जिसके टूटने से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड गूँज सुनाई देती और उसे सुन  परशुराम जहां कहीं भी  हों जनक की सभा में आ जाते -  और ये प्रयोग सफल रहा ----  इसी नीति के तहत वनवास हुआ।वन में रामजी ने सभी ऋषिमुनियों और जनजातियों को अभय किया ,अपने पराक्रम से। रावण जो पंचवटी तक घुस आया था और उसने मारीच ,खर-दूषण ,शूर्पणखा  के अधीन चौकियां और आतंकवादी अड्डे स्थापित किये हुए थे ,उन्हें ध्वस्त किया ,बाकी सभी आतताइयों को मार गिराया बस शूर्पणखा को छोड़ दिया ताकि वो राम की आहट व्  शक्ति का सन्देश रावण को पहुंचा सके।  माँ सीता ने वनवासियों  की कृषि को उन्नत करने के गुर सिखाये , वनवासिनियों को कुटीर उद्योगों में लगाया तथा  स्वयं की रक्षा की शिक्षा भी दी ---
          '' ऊन कात सीता माता ने कपड़े बना लिए थे ,
           रुई और रेशम से सुंदर कुर्ते कई सीए थे। । ''
सीता कृषि की अधिष्ठात्री देवी है।  उसने वनवासियों को उन्नत कृषि के तरीके बताये जिससे उनकी आर्थिकी समुन्नत हुई और जंगल-जंगल ,ग्राम-ग्राम सम्पन्नता छा गयी।
    ''सीता कृषि है जो भी चाहो वह सब माँ से लेलो।
     माथा टेक मांगने वालों -धन निज हाथों से ले लो।। ''
जिससे वनवासियों का आत्मसम्मान बढ़ा।
साथ ही राम -लखन ने छोटी -छोटी नदियों पे बाँध बनाके -उसके जल के बहुविध उपयोग से वनवासियों के जीवन को उन्नत किया ---राम कह रहे हैं ---
''देखो कैसा स्वच्छंद यहां लघु नद है।
इसको भी पुर में लोग बाँध लेते हैं ,
हाँ ! वे इसका उपयोग बढ़ा देते हैं ''---
शत्रु से लड़ने की नीति रीती ;जैसा शत्रु वैसी नीति। बाली रावण का मित्र था तो उसे मार गिराया , सुग्रीव से मित्रता ,लंका में हनुमान को जासूसी करने भेजा और अपना बल दिखाने  का भी निर्देश --हनुमान का विभीषण को अपने पक्ष में करना ,और विभीषण का लाव लश्कर  के साथ राम की सेना में आ मिलना।   हालाँकि कतिपय जगहों पे विभीषण का अंतर्द्वन्द भी दिखाई देता है
      ''कल
जब हम नही केवल
वृद्ध ठंडी शिला सा
इतिहास होगा।
जब हमारे तर्क तक मर जाएंगे ,
तब
हमें क्या कहकर पुकारा जाएगा ?
राष्ट्र संकट के समय मैं
मैं आक्रमण के साथ था ,
राज्य पाने के लिए ------[संशय की एक रात ]---
----साथ ही रावण के कुल गुरु --[रावण के प्रपितामह को माँ पार्वती ने पाला  था --वो शिव का धर्म पुत्र था ,इस नाते शिव रावण के मुहंबोले पड़ दादा भी थे ] शंकरजी की आराधना -पूजा ,अभियान से पहले उनका आह्वान कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना ये रामजी के सफल राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ होने के लक्षण थे। सागर के एक तरफ रावण की लंका थी दूसरी और सागर का राज्य था ,उसे भी साम-दाम दंड भेद से अपनी तरफ करके सहायता के लिए तैयार किया और राम सेतु बनवाया।ऐसी  ही कई कूटनिक चालें हैं जो रामजी का  चतुर और प्रखर राजनीतिज्ञ होना  दर्शाती हैं --ये राम चरित्र को गंभीरता से पढ़ने और मनन करने से ही अनुभव होगा।   
रावण शक्तिशाली शत्रु था ,उसने एक बार कौशल के राजा को मार के कौशल पे अधिकार भी जमाया था।  अत: उसको पराजित करने के लिए राम को अपनी नीति बनाने के लिए समय चाहिए था ---वो उन्हें चौदह वर्ष के वनवास के रूप में मिला , इस नीति को बनाने में उनके साथ कैकई और सीता भी शामिल थीं। उन्होंने नीति ऐसी बनाई ताकि रावण वन प्रदेश में ही उलझा रहे और उधर अयोध्या में दोनों भाई निष्कंटक राज कर सकें।
 राम युद्ध के पक्ष में कभी नहीं थे --पर  वो कहते हैं --
हम कोटि-कोटि जनों की तो केवल प्रतीक है
     रावण अशोक बन की सीता,
हम साधारण जन की अपहृत स्‍वतंत्रता
-----वो आम जन की स्वतंत्रता के पक्षधर थे --जिस स्वतन्त्रता को रावण ने अपहृत कर लिया था ,रावण जो देवाधिदेव शंकर से वरदान पाकर महाबलशाली हो गया था ,फलस्वरूप उसमे अहंकार आ गया और वो राक्षसी प्रवृतियों युत होकर मानवता का दुश्मन बन बैठा। 
------------आज भी रामचरित मानस से  देश के नीतिनियन्ता लाभ उठा सकते हैं ,एक सन्देश तो स्पष्ट ही है ----पूरी तैयारी के साथ शत्रु को उसके घर में घुस के मारो और नेस्तनाबूत कर दो।  घरमे घुस के भारत ने बंगलादेश के समय मारा पर नेस्तनाबूत न कर पाया ---अब समय है --और रामजी का आदेश भी शत्रु को उसके घर में घुस के मारो और नेस्तनाबूत कर दो ---बस यूँ ही साकेत और संशय की एक रात को याद कर रही थी तो लिखने का मन हो आया ----

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