कोहरे के बहाने
=========
सूरज की धूप
लिखती है
प्रतिदिन ही
कविता
आँचल पे प्रकृति के
चटख कभी गुनगुनी
तो अभी कोहरे से झाँकते हुए
सूरज पढ़ता है
धूप की कविता को
पंछी को प्यार है
सूरज की धूप की
कविता से -
पढ़ लेता है पंछी
पहली किरन की
स्याही से बने
सुनहरे इंगूरी
अक्षर को
उड़ चलता है
आसमानों में
सूरज को छूने
मैं समेटना चाहती हूँ
सूरज को आँचल में
चुरा लूँ सगरी धूप
चुपके से बतियाऊँ
मन के अँधेरे कोने को
जगमग कर लूँ
पर नहीं -
सृष्टि का प्यार है सूरज
मेरा ! बस मेरा कैसे हो जाए !
मेरी चाहत देख ;
डर गया है सूरज
ओढ़ कोहरा
चुपके से आता है
मैंने प्रणय निवेदन किया तो ?
नदान- है न
जानता नहीं
ये कलयुग है
वरदानों वाली कुंती
अब नहीं होतीं,
तो कर्ण को
खोने का डर !
नहीं ! अब न कुंती
न ही कर्ण -पर
मन किसी कोने में
धूप खिले
क्या अभिलाषा भी
अनुचित ?
मैं भी धूप की कविता !आभा !
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सूरज की धूप
लिखती है
प्रतिदिन ही
कविता
आँचल पे प्रकृति के
चटख कभी गुनगुनी
तो अभी कोहरे से झाँकते हुए
सूरज पढ़ता है
धूप की कविता को
पंछी को प्यार है
सूरज की धूप की
कविता से -
पढ़ लेता है पंछी
पहली किरन की
स्याही से बने
सुनहरे इंगूरी
अक्षर को
उड़ चलता है
आसमानों में
सूरज को छूने
मैं समेटना चाहती हूँ
सूरज को आँचल में
चुरा लूँ सगरी धूप
चुपके से बतियाऊँ
मन के अँधेरे कोने को
जगमग कर लूँ
पर नहीं -
सृष्टि का प्यार है सूरज
मेरा ! बस मेरा कैसे हो जाए !
मेरी चाहत देख ;
डर गया है सूरज
ओढ़ कोहरा
चुपके से आता है
मैंने प्रणय निवेदन किया तो ?
नदान- है न
जानता नहीं
ये कलयुग है
वरदानों वाली कुंती
अब नहीं होतीं,
तो कर्ण को
खोने का डर !
नहीं ! अब न कुंती
न ही कर्ण -पर
मन किसी कोने में
धूप खिले
क्या अभिलाषा भी
अनुचित ?
मैं भी धूप की कविता !आभा !
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