शफ़क के रंग वाला सुर्ख आँचल
बड़े नाजों से जो ओढ़ा था कभी
विजन ने बड़े प्यार से समझाया
फ़क़त साड़ी का पल्लू ही था वो
प्राची के आसमान के आवारा बादल सा वो
फना के बाद भी -चला आता है बुलाने मुझे
समंदर में आसमानों का रंग लिये
बिछोह को मिलन की रीति कहता
निस्सीम नील व्योम से मन का आँचल
जिसमे टांक दिये हैं टिमटिम याद सितारे
शफ़क से आसमानी हुआ जाता है।
सुन आभा !
विकल हृदय मधु रागिनी सुनाता है।........
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